प्रदेश के शहरी निकायों से निकल रहा 8000 टन कचरा : 3280 टन का नहीं होता निस्तारण, पिछड़ने का कारण संसाधनों की कमी
काफी हद तक लोगों को राहत नहीं मिल सकी है
निकायों में एसबीएम के तहत कचरे के पहाड़ों को खत्म करने का काम हाथ में लिया गया, लेकिन अभी इस काम में भी काफी हद तक लोगों को राहत नहीं मिल सकी है।
जयपुर। स्वच्छ भारत मिशन शहरी के तहत कचरा कलेक्शन, परिवहन और निस्तारण को लेकर कई तरह के प्रोजेक्ट स्वीकृत हुए, लेकिन फिर भी राजस्थान के शहरी क्षेत्रों में लोगों की उम्मीदें अधूरी रह गई। यानी कचरा कलेक्शन के बाद निस्तारण की प्रक्रिया दूसरे राज्यों की तुलना में काफी कम रही। प्रदेश के शहरों से हर दिन निकलने वाले कचरे का केवल 59 प्रतिशत ही निस्तारण किया जा रहा है, जबकि दूसरे राज्यों में यह आंकड़ा 80 फीसदी तक पार कर चुका है। निकायों में एसबीएम के तहत कचरे के पहाड़ों को खत्म करने का काम हाथ में लिया गया, लेकिन अभी इस काम में भी काफी हद तक लोगों को राहत नहीं मिल सकी है।
अन्य राज्यों से तुलना
देश के कई राज्यों ने ठोस कचरा प्रबंधन में बेहतर कार्य किया है। महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में कचरा निस्तारण का ग्राफ 80-85 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। इसके अलावा केरल और कर्नाटक ने भी अपने ठोस कचरा प्रबंधन के मॉडल को प्रभावी तरीके से लागू किया है। राजस्थान के पिछड़ने का कारण संसाधनों की कमी, प्रशासनिक कमी और जागरूकता की कमी को बताया जा रहा है।
ये जरूरी
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार के प्रयास तब तक प्रभावी नहीं होंगे, जब तक कि नागरिक इसमें भागीदारी नहीं करेंगे। कचरे का पृथककरण (सेग्रिगेशन) और सही स्थान पर निस्तारण का कार्य आम जनता के सहयोग के बिना संभव नहीं है। राजस्थान के कई शहरों में लैंडफिल साइट्स भरी हुई हैं, जिससे आसपास के क्षेत्रों में कई तरह का प्रदूषण हो रहा है।

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