मंदिर में शाकाहारी मगरमच्छ : ना मांस खाता, ना मछली, केवल प्रसाद ही ग्रहण करता, श्रद्धालुओं को नहीं पहुंचाता नुकसान

तुलु शिल्पकला और भित्तिचित्रों की अद्भुत विरासत

मंदिर में शाकाहारी मगरमच्छ : ना मांस खाता, ना मछली, केवल प्रसाद ही ग्रहण करता, श्रद्धालुओं को नहीं पहुंचाता नुकसान

केरल में कासरगोड़ जिले में स्थित अनंतपद्मनाभ स्वामी मंदिर न केवल अपनी भव्य वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां मौजूद शाकाहारी मगरमच्छ ‘बबिया’ के कारण भी दुनियाभर के श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है।

जयपुर। केरल में कासरगोड़ जिले में स्थित अनंतपद्मनाभ स्वामी मंदिर न केवल अपनी भव्य वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां मौजूद शाकाहारी मगरमच्छ ‘बबिया’ के कारण भी दुनियाभर के श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है। इस मंदिर की अनूठी बनावट इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती है। माना जाता है कि प्राचीन काल में मंदिर की संरचना बहुत विशाल थी, लेकिन समय के साथ इसमें कई परिवर्तन हुए। आज मंदिर का गर्भगृह एक तालाब के बीच स्थित है और भक्तों को वहां पहुंचने के लिए एक छोटे पुल से होकर गुजरना पड़ता है। हालांकि अभी मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य चल रहा है। मंदिर प्रशासन का कहना है कि गर्भगृह में जाने के लिए लोहे के पुल का निर्माण कराया जा रहा है। मंदिर के चारों ओर बारहमासी झरनों से बना तालाब है, जो कभी सूखता नहीं है।

तुलु शिल्पकला और भित्तिचित्रों की अद्भुत विरासत
मंदिर की दीवारों पर बनी नक्काशी और भित्ति चित्र इसकी ऐतिहासिकता तथा कलात्मक भव्यता को दर्शाते हैं। मंदिर की दीवारों पर तुलु शिल्पकारों द्वारा बनाई गई दशावतारम (भगवान विष्णु के दस अवतारों) की कहानियां उकेरी गई हैं। साथ ही 17वीं शताब्दी के भित्ति चित्र भी यहां मौजूद हैं, जो तुलु चित्रकला की उत्कृष्टता का प्रमाण हैं।

गुप्त मार्ग और पौराणिक महत्व
इस मंदिर के संबंध में एक रोचक बात ये भी है कि इसके गर्भगृह से तिरुवनंतपुरम तक एक गुप्त मार्ग था, जिसे अब बंद कर दिया गया है। कहा जाता है कि इसी मार्ग के माध्यम से प्राचीन काल में मंदिर से जुड़े संत और राजाओं का आवागमन होता था। आज इस स्थान पर एक गोपुरम (प्रवेश द्वार) बना दिया गया है।

ब्रिटिश अधिकारी और बबिया की पुन: वापसी
मंदिर प्रशासन से मिली एक रोचक जानकारी के अनुसार ब्रिटिश शासनकाल में एक अधिकारी ने तालाब में मौजूद मगरमच्छ को गोली मार दी थी, लेकिन इस घटना के कुछ ही दिनों बाद तालाब में एक और मगरमच्छ प्रकट हो गया, जिसे आज ‘बबिया’ के रूप में पूजा जाता है। इस मगरमच्छ को मंदिर के पुजारी नियमित रूप से चावल का प्रसाद खिलाते हैं और यह उसे बिना कोई अंश छोड़े पूरा ग्रहण कर लेता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह मगरमच्छ भगवान विष्णु का संरक्षक है और किसी भी श्रद्धालु को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता। 

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आध्यात्मिकता और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम
केरला पर्यटन विभाग से जुड़े स्टोरी टेलर रजीश राघवन ने बताया कि अनंतपुरा मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शांति प्राप्त करने का स्थान भी है। इसके चारों ओर का वातावरण, ऐतिहासिक महत्व और प्राकृतिक सुंदरता इसे एक अद्वितीय स्थान बनाती है। यह मंदिर भगवान पद्मनाभस्वामी के मूल स्थान के रूप में भी प्रसिद्ध है और इसे ‘धरती पर वैकुंठ’ के रूप में देखा जाता है। एक मगरमच्छ की मृत्यु के बाद दूसरा मगरमच्छ कहां से आता है, ये अभी तक एक पहेली बना हुआ है। 

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