वर्ल्ड पार्किंसंस डे आज: पार्किंसंस बुजुर्गों की बीमारी, लेकिन अब युवा भी हो रहे शिकार
शुरुआती लक्षण में ही इलाज कर दें शुरू
अक्सर पार्किंसंस के मामले में 60 साल की उम्र के बाद देखे जाते हैं। लगभग दस प्रतिशत 50 साल की उम्र से पहले ही इस बीमारी की जद में आ जाते है।
जयपुर। करीब साठ साल की उम्र के बाद अक्सर होने वाली पार्किंसंस बीमारी एक न्यूरोलॉजिकल मूवमेंट डिसआर्डर है। डोपामीन मस्तिष्क से निकलने वाला एक ऐसा हार्मोन है, जिससे शरीर की बहुत सी क्रियाएं संचालित होती हैं। कुछ स्थितियों में डोपामीन का निकलना कम हो जाता है जिससे यह क्रियाएं धीमी हो जाती हैं और शरीर में एक अजीब से कम्पन की स्थिति बन जाती है, जिसे पार्किंसंस कहा जाता है। इसके शुरुआती लक्षण नजर आते ही इसका इलाज शुरू कर देना चाहिए, नहीं तो समस्या गंभीर हो सकती है। अक्सर पार्किंसंस के मामले में 60 साल की उम्र के बाद देखे जाते हैं। लगभग दस प्रतिशत 50 साल की उम्र से पहले ही इस बीमारी की जद में आ जाते है। इसे यंग आनसेट पार्किंसंस कहते हैं जो बहुत रेयर है और इसके जेनेटिक या पर्यावरणीय कारण हो सकते हैं।
दवाओं से किया जा सकता है कंट्रोल
नारायणा हॉस्पिटल जयपुर के कंसल्टेंट न्यूरोलोजी और मूवमेंट डिसआॅर्डर एक्सपर्ट डॉ. वैभव माथुर ने बताया कि इस बीमारी का निदान डॉक्टर की ओर से मेडिकल इतिहास और न्यूरोलॉजिकल परीक्षण के आधार पर किया जाता है। पार्किंसंस रोग का कोई विशेष चिकित्सा उपचार उपलब्ध नहीं है। सिर्फ दवाओं के माध्यम से लक्षणों को कम करने का प्रयास किया जाता है। इसलिए इस बीमारी के लक्षणों को लेकर सतर्क रहें। शुरुआती स्तर पर ही इसका इलाज करना जरूरी है, जिससे बाद में समस्या अधिक गंभीर न हो।
ये हैं लक्षण
पार्किंसंस का कम्पन आम कम्पन से अलग होता है। इसके तहत व्यक्ति को रेस्टिंग मोड यानी जब वह कोई काम नहीं कर रहा होता है तब उसमें यह कम्पन नजर आता है, लेकिन काम करते वक्त कम्पन गायब हो जाता है।
चलने में दिक्कत, चलते-चलते अचानक रुक जाना, मुड़ने व कोई लक्ष्य क्रॉस करने में बाधा आना।
दैनिक जीवन प्रक्रिया धीमी हो जाना, पहले किसी एक काम को करने में 10 मिनट लेना, फिर 20 मिनट, फिर 30 मिनट या ज्यादा लेना।
व्यक्ति की लेखनी छोटी हो जाना।
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