अस्थमा और एलर्जी के मरीजों के लिए बढ़ी परेशानी : शहर की हवा में घुले परागकण, होलोप्टेलिया इंटीग्रिफोलिया के पौधे से फैलते हैं ये परागकण

चिलबिल पेड़ या बंदर की रोटी के नाम से भी जाना जाता 

अस्थमा और एलर्जी के मरीजों के लिए बढ़ी परेशानी : शहर की हवा में घुले परागकण, होलोप्टेलिया इंटीग्रिफोलिया के पौधे से फैलते हैं ये परागकण

जयपुर के अस्थमा और एलर्जी से जुड़े मरीजों के लिए अब परेशानी ज्यादा बढ़ गई है।

जयपुर। जयपुर के अस्थमा और एलर्जी से जुड़े मरीजों के लिए अब परेशानी ज्यादा बढ़ गई है। इसकी बड़ी वजह है होलोप्टेलिया इंटीग्रिफोलिया पौधा और पेड़, जिसे चिलबिल पेड़ या बंदर की रोटी के नाम से भी जाना जाता है। पौधे के परागकण यानी पोलिन्स इस सीजन में पहली बार जयपुर की हवा में देखे गए हैं, जिससे एलर्जी से ग्रस्त लोगों के लिए परेशानी का मौसम शुरू हो गया। विशेषज्ञों के अनुसार जयपुर में लगभग 10 प्रतिशत अस्थमा रोगी होलोप्टेलिया एलर्जी से प्रभावित होते हैं। चिलबिल पेड़ या बंदर की रोटी के नाम से प्रसिद्ध यह पेड़ जयपुर का सबसे अधिक एलर्जी पैदा करने वाला पौधा माना जाता है। इसके परागकण हवा में एक से दो महीने तक अत्यधिक मात्रा में मौजूद रहते हैं, जिससे एलर्जी और अस्थमा के मरीजों को गंभीर परेशानी हो सकती है। 

बर्कार्ड पोलिन काउंटर से होता है डिटेक्ट :

अस्थमा भवन की निदेशक डॉ. निष्ठा सिंह ने बताया कि होलोप्टेलिया परागकण का पता लगाने के लिए बर्कार्ड पोलिन काउंटर नामक उन्नत उपकरण का उपयोग किया जाता है। यह उपकरण पिछले 15 वर्षो से जयपुर के विद्याधर नगर स्थित अस्थमा भवन की छत पर स्थापित है और रोजाना हवा में मौजूद परागकणों को मापता है। अस्थमा और एलर्जी के मरीजों के लिए राहत भरी खबर यह है कि अस्थमा भवन की वेबसाइट पर यह जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है, ताकि लोग अपने बचाव के लिए पहले से तैयारी कर सकें।

अस्थमा भवन ही है देश में एकमात्र सेंटर :

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डॉ. निष्ठा ने बताया कि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में परागकण गणना नियमित रूप से दैनिक आधार पर की जाती है और यह रीयल टाइम में जनता के लिए वेबसाइटों पर उपलब्ध होती है। भारत में यह महत्वपूर्ण सेवा केवल जयपुर में अस्थमा भवन द्वारा उपलब्ध कराई जा रही है।

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क्या है इन परागकरणों का स्वास्थ्य पर प्रभाव :

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होलोप्टेलिया के परागकणों की संख्या सुबह और शाम के समय चरम पर होती है, इसलिए एलर्जी से प्रभावित व्यक्तियों को इस दौरान विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए। जैस कि सुबह और शाम के समय घर के अंदर रहें, बाहर जाते समय नाक और मुंह को ढ़कने वाला ट्रिपल लेयर्ड मास्क पहनें, ज्यादा पेड़ों वाले क्षेत्रों में जाने से बचें।

संपर्क में आने के बाद ये आते हैं लक्षण :

-नाक बहना और बंद होना
-सांस लेने में तकलीफ और घरघराहट
-आंखों में जलन और त्वचा पर चकत्ते 

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