अनमोल विरासत प्रदेश का दूसरा रोमन शैली जलसेतु

1875 में हुआ था इस रोमन शैली के जलसेतु का निर्माण, संरक्षण की है दरकार

अनमोल विरासत प्रदेश का दूसरा रोमन शैली जलसेतु

झालावाड़ में विश्व विरासत गागरोन किला, कोलवी की गुफाएं, दहलनपुर सहित ऐसी दर्जनों प्राचीन धरोहर हैं ।

झालावाड़। राजस्थान का झालावाड़ जिला अपनी ऐतिहासिक विरासतों एवं प्राकृतिक वातावरण के कारण काफी प्रसिद्ध है, यहां पर रोमन शैली से बना हुआ जलसेतु भी मौजूद है, जिसको एक अनमोल विरासत माना जा रहा है। यह झालावाड़ जिले की एक ऐसी विरासत है, जिसे अब तक लोग देखते तो रहे किंतु यह तथ्य उजागर नहीं हुए कि आखिर यह चीज क्या है। इसको देखने वाले यही समझा करते थे कि शायद यह कोई पत्थरों का बना अधूरा ढांचा है जो पूरा नहीं हो पाया होगा। यह अपने प्रकार की एक ऐसी संरचना है जो राजस्थान में मात्र दो ही हैं। वहीं पूरे देश में भी इनकी संख्या आधा दर्जन से काम ही बताई जाती है। ऐसे में यह बात यकीनी तौर पर कहीं जा सकती है कि यदि प्रशासन और राजस्थान सरकार झालावाड़ की इस विरासत को ठीक से सहेज कर सजा और संवार दे तो यह पर्यटन क्षेत्र में भी मील का पत्थर साबित हो सकती है, क्योंकि झालावाड़ में विश्व विरासत गागरोन किला, कोलवी की गुफाएं, दहलनपुर सहित ऐसी दर्जनों प्राचीन धरोहर हैं जो पर्यटकों को लुभाती आ रही है। हमारी टीम ने जब इस प्राचीन ढांचे की गहनता से पड़ताल की और जानकारी इकट्ठा करना शुरू किया तो वर्ष 1875 में बने इस ढांचे से जुड़े तथ्य बेहद रोचक और चोंकाने वाले हैं।

1875 में हुआ निर्माण
झालावाड़ के गांवड़ी का तालाब के किनारे से शुरू होकर मामा भांजा चौराहे के समीप खत्म होने वाला यह ढांचा रोमन शैली पर बना हुआ एक एक्वाडक्ट है, जिसको साधारण भाषा में रोमन एक्वाडक्ट कहा जाता है। रोमन एक्वाडक्ट यानी रोमन जल सेतुओं के बारे में हमें कई जगहों पर पढ़ने को मिल जाता है। रोम इटली स्पेन इत्यादि देशों में यह जलसेतु पानी को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए बनाए जाते थे जो आज भी काम में आ रहे हैं। झालावाड़ के इस रोमन एक्वाडक्ट की यदि बात करें तो इसका निर्माण तत्कालीन शासक पृथ्वी सिंह द्वारा राजमहल के पास स्थित चंद्र सरोवर के किनारे वर्ष 1875 में करवाया गया था। चंद्र सरोवर को आज गांवड़ी का तालाब के नाम से जाना जाता है। इस जल सेतु का निर्माण गांवड़ी के तालाब से माधव विलास पैलेस, भवानी क्लब और राज परिवार की छोटी कोठी तक पानी ले जाने के लिए करवाया गया था। माधव विलास पैलेस इन दिनों झालावाड़ के जिला कलेक्टर का निवास हुआ करता है। झालावाड़ का यह पूरा एक्वाडक्ट जिसकी लंबाई लगभग 1 किलोमीटर है यह है 70 मेहराबों पर टिका हुआ है। एक्वाडक्ट की शुरूआत गांवड़ी का तालाब से होती है, जहां एक कुआं बनाया गया है, जिस पर एक इमारत नुमा ढांचे का निर्माण किया गया है, जहां से रहट के माध्यम से पानी लिफ्ट करके इस एक्वाडक्ट के ऊपरी छोर तक लाया जाता था, जहां से यह पानी गुरुत्वाकर्षण बल का इस्तेमाल करते हुए अंतिम छोर तक पहुंचता था।

राजस्थान का दूसरा एक्वाडक्ट
राजस्थान में बना हुआ यह दूसरा एक्वाडक्ट है, राजस्थान में पहला एक्वाडक्ट वर्ष 1845 में अलवर जिले की सिलीसेढ़ झील पर बनाया गया था। विशेषज्ञ और वैज्ञानिक बताते हैं कि झालावाड़ का यह एक्वाडक्ट अलवर के एक्वाडक्ट के 30 वर्षों बाद बनाया गया तथा इसमें अलवर के मुकाबले अधिक उन्नत तकनीक का इस्तेमाल हुआ। पूरे देश की यदि बात करें तो मात्र आधा दर्जन रोमन एक्वाडक्ट यहां होने की बात सामने आती है, जिनमें से सबसे बड़ा रोमन एक्वाडक्ट तमिलनाडु में मौजूद है।

उल्टा साइफन सिस्टम
इस एक्वाडक्ट का निर्माण जिस दौर में झालावाड़ के शासको द्वारा करवाया गया, उसे दौर में किसी भी प्रकार की आधुनिक तकनीक और बिजली मौजूद नहीं थी। ऐसे में जिन तकनीकों का इस्तेमाल जिसको बनाने में किया गया। वह वाकई चौंकाने वाली है। इस एक्वाडक्ट के मध्य से एक रास्ता भी गुजरता है जिसको बंद होने से बचाने के लिए यहां उल्टे साइफन सिस्टम का इस्तेमाल किया गया है। रास्ते के दोनों तरफ यह एक्वाडक्ट नजर आता है जहां एक तरफ से इसमें पानी आता था और फिर यह पानी पाइप के माध्यम से रास्ते के नीचे से गुजरता और फिर दूसरी तरफ लेवल डाउन होने के कारण वापस पाइप द्वारा ऊपर चढ़ जाता और आगे एक्वाडक्ट में बहता हुआ अपने मुकाम तक पहुंचता था।

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संरक्षण की दरकार
झालावाड़ शहर में स्थित इस एक्वाडक्ट को इतिहास विद और पुरातत्व विज्ञानी नायाब ढांचा बताते हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन द्वारा इस पर ध्यान नहीं दिए जाने के चलते यह अब सामाजिक तत्वों एवं अतिकर्मियों का निशान बनता जा रहा है। इसके कुछ हिस्से को भू माफियाओं द्वारा अपनी कॉलोनी के रास्ते निकालने के लिए तोड़ने की कोशिश की जा रही है, तो वहीं लगभग आधे हिस्से में लोगों ने अपनी मनमर्जी से इसको क्षतिग्रस्त करके रास्ते निकाल लिए हैं। एक निजी शिक्षण संस्थान ने तो इसको जमींदोज ही कर दिया है तथा इसको नष्ट करके रास्ता बना लिया है, तथा अपनी चारदीवारी भी इसके ऊपर ही खड़ी कर दी है, जिसको लेकर प्रशासन की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं की गई है, जबकि झालावाड़ नगर परिषद स्पष्ट रूप से कह चुकी है कि इस ढांचे के आसपास किसी भी प्रमाण प्रकार के निर्माण या इस पर से रास्ता निकालने की स्वीकृति उसने किसी को भी नहीं दी है।

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झालावाड़ का यह रोमन एक्वाडक्ट राजस्थान में दूसरा एक्वाडक्ट है तथा पूरे देश में इनकी संख्या बहुत थोड़ी सी है झालावाड़ का यह एक्वाडक्ट 1875 में बना था, इसको संरक्षित किए जाने की सख्त जरूरत है। 
 - राजपाल शर्मा, जिला संयोजक, इंटेक

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झालावाड़ के इस एक्वाडक्ट को दुरुस्त करवाने के प्रयास किया जा रहे हैं, जल्दी ही इसको लेकर कार्य योजना बनाई जाएगी एवं उसके संरक्षण के काम को आगे बढ़ाया जाएगा। 
 - अजय सिंह राठौड़, जिला कलक्टर, झालावाड़

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