35वें राष्ट्रीय युवा समारोह के दूसरे दिन डॉ. प्रेम भंडारी की ग़ज़ल ने जीता दिल
वासिफुद्दीन डागर, पिनाज मसानी और प्रेम भंडारी ने दिए प्रतिभागियों को टिप्स
सुर संगम संस्थान और जवाहर कला केंद्र की ओर से कला एवं संस्कृति विभाग के सहयोग से आयोजित किए जा रहे 35वें राष्ट्रीय युवा संगीत समारोह के दूसरे दिन डॉ. प्रेम भंडारी की ग़ज़ल ने दिल जीत लिया
जयपुर। सुर संगम संस्थान और जवाहर कला केंद्र की ओर से कला एवं संस्कृति विभाग के सहयोग से आयोजित किए जा रहे 35वें राष्ट्रीय युवा संगीत समारोह के दूसरे दिन पद्श्री उस्ताद वासिफुद्दीन डागर, पद्मश्री पिनाज मसानी और डॉ. प्रेम भंडारी ने समारोह में अपनी सांगीतिक प्रतिभा का प्रदर्शन करने आए प्रतिभागियों को संगीत के संस्कार दिए साथ ही प्रस्तुति को और अधिक प्रभावी बनाने के टिप्स भी दिए। इससे पूर्व सुबह 10 बजे से शाम 6.00 बजे तक अलग-अलग शहर से आए हुए युवाओं ने शास्त्रीय, लोक और उपशास्त्रीय संगीत में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया साथ ही निर्णायकों के सवालों के जवाब भी दिए। दूसरे दिन प्रतियोगियों में कड़ी प्रतिस्पर्धा नजर आई।
डॉ प्रेम भंडारी की ग़ज़ल ने जीता दिल, शाम को आयोजित हुई गीतों भरी शाम
प्रतिस्पर्धा के समापन के बाद शाम को निर्णायकों द्वारा शास्त्रीय, उप शास्त्रीय, लोक और सुगम संगीत की श्रेणियों में से चयनित 13 प्रतिभागियों ने प्रस्तुति दी। इस मौके पर मुख्य निर्णायकों में से एक उदयपुर के वरिष्ठ ग़ज़ल गायक डॉ. प्रेम भंडारी ने आयोजकों के आग्रह पर मंच संभाला और साहिर लुधियानवी की बहुत ही अर्थपूर्ण और मार्मिक ग़ज़ल " जंग टलती रहे तो बेहतर है, हम सभी के आंगन में शमा जलती रहे तो बेहतर है' पेश करके वहां मौजूद संगीत प्रेमियों का दिल जीत लिया I भंडारी ने इसके बाद एक और ग़ज़ल "चाहत नहीं है कोई परेशान क्या करें, मेरे लिबास से मेरी पहचान क्या करें" सुनाकर वहां मौजूद संगीत के विद्यार्थियों को सुर, लय और ताल के सही मायने समझाये I
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