एक खतरनाक बारिश ने बना दिया श्वानों का संरक्षक
अपने खर्चे पर पशु चिकित्सालय में स्ट्रीट डॉग्स का करवाते हैं इलाज
बिना किसी की मदद के स्ट्रीट डॉग्स की केयर करने का उनका मिशन जारी हैं।
कोटा। सड़क पर रहने वाले श्वान जो खुले आसमान के नीचे रहते हैं जिनका कोई मालिक नहीं है, उन्हें खाना-पानी देना, उनकी चिकित्सा का ध्यान रखना,उन्हें प्यार व सुरक्षा देने का सराहनीय काम कर रहे है शहर के राकेश वर्मा । वह सड़क पर रहने वाले श्वानों की नि:स्वार्थ भाव से सेवा करते हैं । उनका यह जुड़ाव सड़क के श्वानों के साथ इस कदर गहरा हो चुका है कि सर्दी, गर्मी, या बारिश कोई भी मौसम हो, हमेशा उनका ध्यान रखते है। जब भी किसी स्ट्रीट डॉग को स्वास्थ्य संबंधित समस्या होती है, तो उसे अपने खर्चे पर पशु चिकित्सालय में इलाज करवाते हैं। वर्मा की दुकान बैंड बॉक्स, गुमानपुरा में स्थित है, वहीं 10-11 स्ट्रीट डॉग्स आसपास रहते हैं । स्ट्रीट डॉग्स से अपने जुड़ाव को वह कहते है शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। हालांकि, इस नेक कार्य में आज तक शहर की किसी संस्था ने उनका सहयोग तो दूर संपर्क तक नहीं किया, फिर भी वे बिना किसी मदद के अपने मिशन को जारी रखे हुए हैं।
स्ट्रीट डॉग्स से जुड़ी कहानी
वह बताते है श्वानों से लगाव शुरू से था। वर्ष 2017 में उन्होंने जर्मन शेफर्ड नस्ल की श्वान डेजी को घर में पाला उससे गहरा जुड़ाव हो गया। उसे रणथंभौर गणेश जी , सांवरिया सेठ, इन्द्रगढ़ माताजी के दर्शन भी करवाएं। दर्शनों के लिए हाथ में उठाकर दूर से दर्शन करवाते थे। वे बताते हैं, इसी तरह स्ट्रीट डॉग गिल्ली जो अब अपने बच्चे के साथ उनके घर में रहती है उसे तब अपनाया जब 21 जुलाई 2024 को वह बारिश की रात में गंभीर हालत में सड़क पर मिली उसे तुरंत उठाकर अस्पताल ले गए । 15-20 दिन तक रोज अस्पताल इलाज के लिए ले जाते बाद में गिल्ली ठीक हो गई। तब राकेश और उनकी पत्नी पूजा ने तय किया कि वे गिल्ली को उसी स्थान पर छोड़ने के बजाय अपने घर रखेंगे।जब वह ठीक हो गई तो उसे खड़ेगणेश जी के दर्शन कराने लेकर गए।
लॉकडाउनसे शुरू हुआ देखभाल का सिलसिला
राकेश वर्मा का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान जब पाबंदियां थीं रात 8 बजे बाजार बंद हो जाते थे, तब एक रात बारिश के दौरान दुकान के पास नाली में दो श्वान थीं जिन्होंने 6-6 बच्चों को जन्म दिया था। तब उन्होंने उन श्वानों को बाहर निकालकर फुटपाथ पर रखा और दुकानों के टीनशेड के नीचे इस तरह व्यवस्था की कि वे भीगें नहीं। उस समय तो आसपास के दुकानदारों ने मदद की उनके , दूध, ब्रेड लाते, लेकिन फिर बाद में सारी जिम्मेदारी हमने ही संभाली।
शेरू से विशेष लगाव
उनका शेरू से गहरा लगाव है क्योंकि उसे उसके बचपन से पाला है। एक दिन शेरू सड़क पर गिरा हुआ था और उसे किसी कार ने टक्कर मार दी थी। उसे नाली से बाहर निकाला उसके हिप बोन में फ्रैक्चर था और बगल में घाव भी था। शेरू का इलाज कराया, घाव ठीक हो गया, लेकिन फ्रैक्चर का आॅपरेशन नहीं हो सका, इसलिए वह ठीक से नहीं चल पाता। बावजूद इसके, रात कहीं भी रहे सुबह दुकान पर पहुंच जाता है।
डॉग्स के नाम
इन डॉग्स के नाम भी रखे हैं, जैसे शेरू, रानी, गिल्ली, मुखी आदि। वह इन डॉग्स को एंटी रेबीज इंजेक्शन भी लगवाते हैं और उनका इलाज कराते हैं। खाने के लिए वह इन्हें टोस्ट की टुकड़ी, रोटी, दूध, और ब्रेड देते हैं, लेकिन मीठा नहीं देते। उनका कहना है, मैं खुद ही इन डॉग्स की देखभाल करता हूँ। कभी किसी से मदद नहीं मांगी, जो बन पड़ता है वह करता हूँ। परमात्मा देता है, हम तो सिर्फ माध्यम हैं। कई बार इन डॉग्स के कीड़े निकालते समय कभी दांत लग गया या डॉक्टर से इलाज करवाने गए उस दौरान पकड़ना पड़ता है तो इनके दांत या पंजा लग गया तो सुरक्षा के लिए अपने रेबीज के इंजेक्शन भी लगवाता हूं।हालांकि कभी भी ये ख्याल नहीं आया कि इनके दांत या पंजा लगा मैंने इंजेक्शन लगवाएं कि इन्हें अब नहीं संभालूं इनसे ज्यादा खतरनाक तो इंसान हो रहे है। इंसान -इंसान को मार रहे है। ये तो फ्री के चौकीदार है।
कस्टमर्स को डॉग्स से बचाने का तरीका
वर्मा की दुकान में जब कस्टमर्स आते हैं, तो उन्हें डर लगता है डॉग्स दुकान में आ कर बैठ जाते है ऐसे में वर्मा ने एक तरीका निकाला है वह एक लोहे के डंडे को बजाते हैं, और डॉग्स यह समझ जाते हैं कि उन्हें अब दुकान से बाहर जाना है।

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