अरावली विवाद: पर्यावरण एक्टिविस्ट हितेंद्र गांधी ने सीजेआई और राष्ट्रपति को लिखा पत्र, उठाए गंभीर सवाल

अरावली की परिभाषा पर सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार की मांग

अरावली विवाद: पर्यावरण एक्टिविस्ट हितेंद्र गांधी ने सीजेआई और राष्ट्रपति को लिखा पत्र, उठाए गंभीर सवाल

वकील और पर्यावरण एक्टिविस्ट हितेंद्र गांधी ने भारत के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट से अरावली के बारे में अपने फैसले पर फिर से विचार करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अब सिर्फ़ वही ज़मीनें जो स्थानीय ज़मीन से 100 मीटर या उससे ज़्यादा ऊंची हैं, उन्हें ही "अरावली" माना जाएगा - जिससे विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया है।

नई दिल्ली। अरावली पर्वतमाला की परिभाषा को लेकर सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश पर देशभर में बहस तेज हो गई है। वकील और पर्यावरण एक्टिविस्ट हितेंद्र गांधी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की अपील की है। यह पत्र भारत के राष्ट्रपति को भी भेजा गया है। गांधी ने चेतावनी दी है कि ऊंचाई पर आधारित अरावली की संकीर्ण परिभाषा उत्तर-पश्चिम भारत में पर्यावरण संरक्षण को गंभीर रूप से कमजोर कर सकती है।

गौरतलब है कि पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अब केवल वही भूमि “अरावली” मानी जाएगी, जो अपने आसपास की स्थानीय जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची हो। इस फैसले के बाद राजनीतिक हलकों और पर्यावरणविदों में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस परिभाषा से अरावली रेंज के करीब 90 प्रतिशत हिस्से को कानूनी संरक्षण से बाहर किया जा सकता है।

पर्यावरणविदों ने आशंका जताई है कि इससे खनन गतिविधियों, रियल एस्टेट परियोजनाओं और अवैध कब्जों को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे क्षेत्र में अपरिवर्तनीय पारिस्थितिक क्षति होगी। अरावली को मरुस्थलीकरण रोकने, भूजल रिचार्ज बढ़ाने और प्रदूषण से राहत दिलाने वाली प्राकृतिक ढाल माना जाता है। यदि इसकी सुरक्षा कमजोर हुई, तो पानी की कमी, जैव विविधता के नुकसान और बढ़ते प्रदूषण की समस्या और गंभीर हो सकती है।

अपने पत्र में हितेंद्र गांधी ने 20 नवंबर को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अरावली प्रणाली को एक पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण प्राकृतिक ढाल के रूप में पहचानने की दिशा में “महत्वपूर्ण और स्वागत योग्य कदम” बताया। हालांकि, उन्होंने आदेश में अपनाई गई ऑपरेशनल परिभाषा पर गहरी चिंता जताई। गांधी का कहना है कि केवल 100 मीटर या उससे अधिक की स्थानीय ऊंचाई को मानदंड बनाना वैज्ञानिक और पर्यावरणीय दृष्टि से अपर्याप्त है।

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उन्होंने तर्क दिया कि अरावली परिदृश्य के कई ऐसे हिस्से हैं जो ऊंचाई की इस संख्यात्मक सीमा को पूरा नहीं करते, लेकिन फिर भी पारिस्थितिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन क्षेत्रों को बाहर करने से पूरी अरावली प्रणाली की कार्यक्षमता और संरक्षण उद्देश्य को नुकसान पहुंच सकता है। गांधी ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि वह व्यापक पारिस्थितिक मानकों के आधार पर अरावली की परिभाषा पर पुनर्विचार करे।

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