कागजों में कार्रवाई, निर्देश हो रहे धुआं-धुआं

खेतों में आग पर नहीं लगाम

कागजों में कार्रवाई, निर्देश हो रहे धुआं-धुआं

फसल कटाई के बाद अवशेषों को जला रहे किसान।

कोटा। कृषि अवशेषों में आग लगाने के मामलों में यूं तो राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने संबंधित किसानों पर सख्ती से कार्रवाई के निर्देश जारी कर रखे हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर इन निर्देशों की पालना नहीं हो रही है। खेतों की सफाई के नाम पर आए दिन किसान खेतों की नौलाइयों (फसल अवशेष) में आग लगा रहे है। जिससे दमकलकर्मियों के साथ पुलिस एवं प्रशासन की भी मशक्कत बढ़ रही है। पूर्व में ऐसे मामलों में प्रशासन ने काफी सख्ती दिखाई थी, अब कार्रवाई ठंडे बस्ते में है। ऐसे में किसानों द्वारा धड़ल्ले से नौलाइयां जलाई जा रही है। नौलाइयों का धुआं स्वच्छ वायु को भी प्रदूषित कर रहा है। इस पर रोक लगाने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।

खेत खाली होते ही लगा रहे आग
जिले में इस समय गेहूं फसल की कटाई के बाद अधिकांश खेत खाली हो चुके हैं। खेत खाली होते ही किसान नौलाइयों को आग के हवाले कर रहे हैं। जिससे वायु प्रदूषण तेजी से फैल रहा है। जबकि एनजीटी की सेंट्रल बैंच ने सख्ती से आदेश जारी कर खेतों में फसल के अवशेषों में आग लगाने के मामले में संबंधित किसानों पर सख्ती से कार्रवाई के निर्देश जारी कर रखे है, लेकिन जिले में इसकी सख्ती से पालना नहीं होने से खेतों में आग लगने की घटनाओं पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। 

जुर्माना राशि बढ़ाई, फिर भी नहीं डर
कृषि अवशेषों में आग लगाने के मामलों में अब सरकार ने सम्बंधित किसानों पर जुर्माना राशि दोगुना कर दी है। इसके बावजूद किसानों को कार्रवाई का डर नहीं है। खेतों में फसलों के अवशिष्ट (चारा, भूसा, लकडी के डंठल) को जलाने पर कृषि विभाग ने प्रतिबंध लगा रखा है।  बढ़ते प्रदूषण की वजह से यह निर्णय किया गया है। अब सरकार ने 2 एकड़ से कम जमीन वाले किसानों पर जुर्माना राशि 2500 से बढ़ाकर 5000,  2 से 5 एकड़ वालों पर 5000 से बढ़ाकर 10000 और इससे अधिक रकबा वाले किसानों पर 15000 से बढ़ाकर 30000 कर दी गई, लेकिन सख्त कार्रवाई नहीं होने से खेतों में आग लगाने की घटनाओं पर रोक नहीं लग पा रही है।

दो साल से नहीं हो पाई कार्रवाई
कोटा सम्भाग में पिछले तीन साल में पराली में आग लगाने की घटनाएं तो ज्यादा हुई है, लेकिन विभाग के पास रिकॉर्डेड केवल 16 घटनाएं ही है। साल 2021 में 4 घटनाओं पर 10 हजार, साल 2022 में 7 घटनाओं पर 20 हजार रुपए किसानों से जुर्माना वसूला गया था। साल 2023 में भी 5 घटनाएं सामने आई थी, लेकिन मामला जांच तक ही सीमित रह गया और सम्बंधित किसानों से जुर्माना वसूल नहीं हो पाया। दो साल से एक भी कार्रवाई नहीं हो पाई है। जिससे खेतों में आग लगाने की घटनाएं जारी हैं।

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खेतों को ही नुकसान
कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसारखेत में आग लगाने से हानिकारक गैस मीथेन, कार्बन मोनो आॅक्साइड, सल्फर डाईआॅक्साइड, नाइट्रस आॅक्साइड उत्सर्जन होता है। इस गैसों के निकलने से वातारण तो प्रभावित होता ही है। साथ ही, कैंसर, अस्थमा व प्रदूषण संबंधित बीमारियां पनपती हैं। फसल के अवशेषों को जलाने से भूमि के मित्र कीट और केंचुआ नष्ट हो जाते हैं, जिसके  कारण कीटों व फफूंद को नियंत्रित करने के लिए जहरीले कीटनाशकों का उपयोग करना पड़ता है। इससे मिट्टी प्रदूषित होकर किसानों पर उत्पादन लागत भी बढ़ जाती है।

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इस बार चारे का संकट होने के कारण कई किसानों ने गेहूं की कटाई के बाद शेष डंठलों को मशीन से भूसा बनाने के काम में लिया है। हालांकि कुछ किसान नौलाइयों को जला रहे हैं। इस सम्बंध में किसानों को खुद ही जागरूक होना होगा, ताकि पर्यावरण को नुकसान नहीं हो।
- गोरधनलाल मीणा, किसान

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खेतों में नौलाइयां जलाने पर जुर्माने का प्रावधान किया गया है। इस सम्बंध में जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में निगरानी भी रखी जा रही है। अन्य जिलों की तुलना में यहां के किसान फसल अवशेषों को भूसा बनाने के काम में ज्यादा लेते हैं। फिर भी यदि नौलाइयां जलाने की जानकारी मिलेगी तो कार्रवाई की जाएगी।
- आतिश कुमार शर्मा, संयुक्त निदेशक, कृषि विभाग 

खेतों में आग लगाने की घटनाओं से वायु प्रदूषित हो जाती है। इससे मीथेन गैस, कार्बन मोनो आॅक्साइड, सल्फर डाईआॅक्साइड, नाइट्रस आॅक्साइड का तेजी से उत्सर्जन होता है। जिससे आसपास के क्षेत्र की हवा प्रदूषित हो जाती है और वायु प्रदूषण का ग्राफ तेजी से बढ़ता है। 
- राजू गुप्ता, पर्यावरणविद्

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