गांव में बंटे थे बूंदी के लड्डू, पूरे देश में बड़े त्यौहार जैसा था माहौल
रेडियो पर सुनी थी लोकतांत्रिक भारत की पहली परेड की खबर
इस दिन के लिए देश के लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने कुर्बानियां दी और अपने प्राणों को देश की माटी पर न्यौछावर कर दिया।
कोटा। देश में 26 जनवरी 1950 की सुबह एक नया सूर्योदय हुआ जो भारतवर्ष के आने वाले भविष्य की पटकथा लिखने वाला था। इसी दिन भारत एक नए दौर में प्रवेश कर रहा था जहां देश स्वयं अपने आने वाले कल की दशा और दिशा तय करने वाला था। इस दिन के लिए देश के लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने कुर्बानियां दी और अपने प्राणों को देश की माटी पर न्यौछावर कर दिया। इसे हिंदुस्तान कहें, भारत कहें, इंडिया कहें या फिर आर्यावर्त ये सब नाम जिस भु भाग के हैं वो अब लोकतंत्र बनने जा रहा था। लोकतंत्र जहां देश के नागरिकों का शासन होता है। जहां नागरिक फैसला करते हैं कि उनके लिए देश में कानून की व्यवस्था कौन करेगा और कौन उनके हितों को सुरक्षित रखेगा।
ये पूरे देश का त्यौहार था
मैं कालूलाल बैरवा ये शब्द मेरे हैं जो उपर लिखे हैं, और मैं बात कर रहा हूं देश के लोकतंत्र के पहले दिन की जहां लोग इस नई व्यवस्था लागू होने के लिए पूरे तन मन धन से जुटे थे। देश में अनेकों त्यौहार आते हैं पर ये त्यौहार उन सबसे अलग था क्योंकि ये पूरे देश का त्यौहार था हर धर्म, हर जाति और हर समुदाय का। मैंने अपने गांव ईश्वरपुरा में देखा था उस पहली सुबह को जब हमारा देश भारत से लोकतांत्रिक भारत बना था। लोगों में उत्साह था एक नई शुरूआत का जहां सबको समानता का अधिकार होगा जहां बड़े से बड़े और छोटे से छोटे से इंसान की बात सुनी जाएगी चाहे फिर किसी भी जगह धर्म समुुदाय और जाति से ताल्लुकात रखता हो।
गांव में बंटे थे बूंदी के लड्डू
सुबह के करीब 8 बजे थे सबको खबर हो चुकी थी कि देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद दिल्ली के इरवीन स्टेडियम में झंडा फहराकर भारत के लोकतंत्र की शुरूआत करेंगे। नागरिकों में चर्चा का विषय बस एक ही था की संविधान कैसा होगा क्या नियम रहेंगे, एक लोकतंत्र काम कैसे करता है, देश में चुनाव कैसे होंगे, हम प्रधानमंत्री कैसे चुनेंगे। हमारे गांव में उस दिन बूंदी के लड्डू बंटे थे जो साल में कभी कभार ही बंटा करते थे।
रेडियो पर सुनी देश की पहली परेड की खबर
हमारी बच्चों की टोली भी गांव में देशभक्ति के गीत गाते हुए यहां से वहां परेड निकाल रही थी। गांव के सदस्य एक दूसरे को बधाईयां दे रहे थे, गांव में उस समय सिर्फ एक परिवार के पास ही रेडियो हुआ करता था तो सुबह के करीब 10 बजे गांव के सारे सदस्य एक जगह इकठ्ठा होकर रेडियो पर गणतंत्र दिवस की पल की जानकारी सुन रहे थे। देश के लोकतंत्र की पहली सुबह एक नए युग की शुरूआत थी जिसने देश की तरक्की के नए दरवाजे खोल दिए।

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