प्रदूषण के कारकों पर चर्चा, प्रदूषण ले रहा प्रतिवर्ष 23 लाख की जान

सीओपीडी बीमारी में इंडिया टॉप पर, राजस्थान खतरनाक स्तर पर

प्रदूषण के कारकों पर चर्चा, प्रदूषण ले रहा प्रतिवर्ष 23 लाख की जान

अधिकांश मौत के पीछे छिपा प्रदूषण, 70 फीसदी बीमारियों का संवाहक।

कोटा। दैनिक नवज्योति के कोटा कार्यालय में प्रतिमाह आयोजित होने वाली परिचर्चा की श्रंखला के तहत मंगलवार को प्रदूषण के कारकों पर चर्चा की गई। पॉल्यूशन केन बी डेंजरस फॉर एक्जीसटेन्स ऑफ लिविंग बीइंग विषय पर आयोजित इस परिचर्चा में 17 विषय विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। इनमें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नगर निगम,श्वांस रोग विशेषज्ञ, पर्यावरण विद, इंटेक के कन्वीनर,पर्यावरण संरक्षण कार्य में जुटी संस्थाएं, नदी संरक्षण से जुड़े सदस्य,बायो वेस्ट मैनेजमेंट, परिवहन विभाग, राजस्थान टेक्निकल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर,इनवायरमेंट साइंस,वनस्पति,जमीन,अर्थात जल, थल और नभ के प्रदूषण से बन रहे हालातों पर विशेषज्ञों ने चर्चा की और यह माना कि प्रदूषण को रोकना केवल सरकार के भरोसे नहीं हो सकता। इसकी भयावहता को लोग समझ नहीं रहे हैं। अब जागरुकता नहीं अपितु सख्ती से प्रदूषण नियंत्रण करवाने की जरूरत है अन्यता हालात खतरनाक स्थर पर पहुंच जाएंगे। आने वाली पीढ़ियां इस समस्या के कारण बन रही स्थिति का सामना तक नहीं कर पाएंगी।  प्रस्तुत है परिचर्चा के मुख्य अंश:-

पूरे देश में सीओपीडी बीमारी में राजस्थान अव्वल
एक-एक महीने तक खांसी ठीक नहीं होती,क्योंकि यह एलर्जी में तब्दील हो गई। जिसका मुख्य कारण पॉल्यूशन इम्पैक्ट है। कोहरे के कारण प्रदूषण के कण वायुमंडल में नहीं जा पाते और हवा में ही रहते हैं, जो सांस के साथ शरीर में प्रवेश करते हैं जो बीमारियों का कारण बनता है। धुएं में अनगिनत कैमिकल्स होते हैं, जो हवा के साथ शरीर में जाने से दमा, अस्थमा, एलर्जी, खांसी, आंखों में जलन, दिमाग, गुर्दे, फेफड़े के कैंसर, सांस का अटैक व दिल से संबंधित बीमारियों का खतरा रहता है। हालांकि, दमा बीड़ी पीने से होता है लेकिन यह रोग उन लोगों को भी होता है जो बीड़ी नहीं पीते। यह बीमारी मुख्यत: पॉल्यूशन से होती है। पूरी दुनिया में सीओपीडी बीमारी में इंडिया टॉप पर है और भारत में राजस्थान अव्वल है। इस बीमारी के मरीज पूरी दुनिया के कई देशों के मुकाबले राजस्थान में सबसे ज्यादा हैं।  मुख्य कारण 70% पॉल्यूशन है। हर साल  23 लाख मौत वायु प्रदूषण से होती है। सीओपीडी बीमारी फेफड़ों को हमेशा के लिए डेमेज कर सकती है।  - डॉ. राजेंद्र ताखर, श्वांस रोग विशेषज्ञ, मेडिकल कॉलेज कोटा 

प्रदूषण नियंत्रण सरकार की प्राथमिकता में ही नहीं
पॉल्यूशन कंट्रोल नियमों की पालना के लिए जो संसाधनों की आवश्यकता होती है वो पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को सरकार उपलब्ध नहीं करवा रही। पर्यावरण विभाग को विकास में व्यवधान मानते हुए पर्यावरण कानून व नियमों को दिन-प्रतिदिन कमजोर करने पर तुली है। जिसके उदारहण शहरभर में देखने को मिल रहे हैं। चंबल नदी में गिरते सीवरेज, चंद्रलोही व नालों में इंडस्ट्री का कैमिकलयुक्त  वाटर गिर रहा है। सरकार पम्प स्टोरेज प्रोजेक्ट लगाकर प्रदेशभर में 4 हजार हैक्टेयर वनभूमि में फैला जंगल को तबाह करने पर तुली है। बरसों पुराना जंगल खत्म होने से इंसान ही नहीं जानवरों व पक्षियों का अस्तित्व भी संकट में आ जाएगा।
- तपेश्वर सिंह भाटी, पर्यावरणविद् एवं एडवोकेट

पॉल्यूशन के खिलाफ सख्ती की जरूरत
शहर का सीवरेज बिना ट्रीटमेंट के चंबल में गिर रहा है। जिससे चंबल नदी व घड़ियाल सेंचूरी प्रदूषित हो रही है। जल प्रदूषण रोकने की दिशा में प्रभावी पहल नहीं हो पा रही, क्योंकि आम आदमी इससे कनेक्ट नहीं हो रहा। जबकि, इसे जनजागरण आंदोलन बनाकर लोगों को जागरूक करना चाहिए कि पॉल्यूशन किस तरह से हमारा जीवन बर्बाद कर रहा है। जब लोग जागरूक होंगे तो सरकारी मशीनरी प्रदूषण कंट्रोल करने को प्रभावी कदम उठाने को मज् ाबूर होगी। यह प्रयास स्वस्थ समाज के निर्माण में मील का पत्थर साबित होगा। 
- डॉ. अमित व्यास, संयोजक चिकित्सा प्रकोष्ठ भाजपा, पूर्व अध्यक्ष आईएमए

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जल-मिट्टी प्रदूषण ज्यादा घातक
प्रदूषण का मुख्य कारण वाहनों व इंडस्ट्रीज से निकलने वाला धुआं है। अन्य कारक भी जीवन के लिए उतने ही घातक है, जितना वायु प्रदूषण। पानी और मिट्टी का पॉल्यूशन हमारी खाद्य शृंखला में शामिल हो जाते हैं, जो भोजन के रूप में शरीर में जाते हैं और कैंसर तक की बीमारियों का खतरा उत्पन्न हो जाता है। पानी के जरिए पॉल्यूशन पॉटिकल्स मिट्टी में आते हैं और फसलों के द्वारा हमारे खाद्य पदार्थ में आ जाते हैं। वायु प्रदूषण तो दिखाई देता है लेकिन जल व मिट्टी का पॉलयूशन दिखाई नहीं देता। जबकि, यह प्रदूषण शरीर के लिए ज्यादा घातक होता है। वहीं, रेडिएशन भी शरीर को कई तरह से बीमारियों के जाल में जकड़ता है। इनसे बचाव के लिए सरकार को प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। 
- पूनम जायसवाल, प्रोफेसर बोटनी, जेडीबी साइंस कॉलेज

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वाहनों से सबसे अधिक प्रदूषण
कोटा समेत प्रदेश के बड़े शहरों  में आईआईटी जोधपुर की टीम ने प्रदूषण को लेकर सर्वे किया था। जिसमें यह बात सामने आई कि कोटा में  सबसे अधिक वायु प्रदूषण वाहनों से हो रहा है। वैसे यहां उद्योगों से भी प्रदूषण तो हो रहा है लेकिन वह इतना अधिक नहीं है। ऐसे में सड़कों पर दौड़ रहे पुराने वाहनों पर रोक लगाने की जरूरत है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समय-समय पर कार्रवाई करता रहता है। 
- डॉ. रिंकु सिंघल, वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

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अस्पताल में रखे 4 रंग के वेस्ट डस्टबिन के प्रति जागरूक करना चाहिए
अस्पताल में 4 रंग के अलग-अलग डस्टबिन रखे होते हैं, जिसमें काले रंग का डस्टबिन जनरल वेस्ट के लिए होता है और शेष नीला, पीला और सफेद रंग का डस्टबिन मेडिकल बायोवेस्ट के लिए होता है। यह बात लोगों को पता होनी चाहिए। इसके लिए जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। अक्सर जानकारी के अभाव में तीमारदार मरीज की मरहम पट्टी, दवा, इंजेक्शन, स्केल्टर को जनरल वेस्ट के डस्टबिन में पटक देते हैं। यह वेस्ट नगर निगम के डम्पिंग यार्ड में जाता है। जहां संक्रमण का खतरा  बना रहता है। मेडिकल बायोवेस्ट के निस्तारण के लिए निर्धारित तापमान में जलाया जाता है, इसका प्लांट झालावाड़ में है। वहीं, अस्पतालों से निकलने वाला वाटर वेस्ट को ईपीपी व एसटीपी द्वारा ट्रीटमेंट किए जाने की आवश्यकता है। अब मेडिकल कॉलेज में एसटीपी का निर्माण हो चुका है। 
- डॉ. प्रवीण कुमार, नोडल आॅफियर बायो मेडिकल वेस्ट 

मौत का प्रतिशत बढ़ा रहा प्रदूषण 
चार बड़े विश्वविद्यालयों की टीम ने रिसर्च किया है। जिसमें सामने आया कि देश  में पीएम 2.5 सबसे अधिक खतरनाक स्थिति है।  देश में हर साल करीब 23 लाख लोगों की मौत हो रही है। जिसमें पीएम 2.5 के कारण मृत्यु दर 5 फीसदी बढ़ जाती है। वायु प्रदूषण का इतना अधिक खतरनाक असर होता है कि नॉन स्माकर भी रोजाना सामान्य तौर पर 3 से 4 सिगरेट का धुंआ रोजाना अपने शरीर में ले रहे है। प्रदूषण का स्तर अधिक होने पर यह  मात्रा दोगुनी तक हो जाती है। शहर में सबसे अधिक प्रदूषण चौराहों पर है। प्रदूषण के कारण कई तरह की बीमारियां लोगों में हो रही है। जिसके बारे में लोगों को पता ही नहीं है। 
- डॉ. केवल कृष्ण डंग श्वांस व अस्थमा रोग विशेषज्ञ

इलेक्ट्रिक वाहनों का बढ़े चलन
15 साल से अधिक पुराने वाहनों से अधिक वायु प्रदूषण होता है। इस कारण से उन वाहनों को हटाया जा रहा है। आने वाले समय में अधिकतर इलेक्ट्रिक वाहनों का ही उपयोग अधिक होगा। परिवहन विभाग के पास प्रदूषण फेलाने वाले वाहनों पर कार्रवाई के लिए 18 स् कवायर्ड वैन है। लेकिन उनमें स्टॉफ की कमी है। इसकी टीम को अन्य स्थानों पर काम में लेने से पूरी तरह से कार्रवाई नहीं  हो पाती।  
- राजीव त्यागी, अतिरिक्त क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी कोटा 

हार्ट अटैक व स्ट्रॉक का कारण प्रदूषण
वायु प्रदूषण मनुष्य के  लिए सबसे अधिक खतरनाक है। चौराहे पर खड़ा ट्रैफिक का सिपाही इससे सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है। प्रदूषण के कारण केवल  अस्थमा  रोग ही नहीं होता। यह जन्म लेने वाले बच्चे से लेकर युवा तक को प्रभावित कर रहा है। इन दिनों जो हष्ट पुष्ट  व सैर करने वाले लोगों की अचानक मौत हो रही है। इसमें हार्ट अटैक व स्ट्रॉक का सबसे बड़ा कारण प्रदूषण है। इसे रोकने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों का अधिक उपयोग हो। साथ ही पार्किंग स्थानों पर उनके चार्जिंग पॉइंट दिए जाएं। 
- डॉ. सुधीर गुप्ता, नेत्र विशेषज्ञ, संयोजक हम लोग

एंटी स्मॉग गन का नियमित संचालन
वायु प्रदूषण के कारण धूल के करण हवा में रहकर लोगों को प्रभावित करते है। इसके लिए नगर निगम के माध्यम से सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्रों व चौराहों पर एंटी स्मॉग गन से पानी का छिड़काव किया जा रहा है।जिससे धूल के कण नीचे बैठने से धीरे तौर पर लोगों  पर असर नहींडाल रहे। वहीं आने वाले समय मे‘कोटा में निगम के माध्यम से 100 इलेक्ट्रिक बसें आने वाली है। जिससे शहर के प्रदूषण स्तर को कम करने में मदद मिलेगी।  
- दीपक मेहरा, पर्यावरण विशेषज्ञ

थर्मल को बंद करना होगा
शहर में सबसे अधिक प्रदूषण थर्मल के कारण हो रहा है। प्रदूषण नियंत्रण के लिए इसे बंद किया जाना चाहिए। जब कई बड़े शहरों में थर्मल बंद किए जा सकते है तो यहां क्योंनहीं हो सकता। इसकी इकाइयों को बार-बार बंद भी तो किया जाता है। इसके स्थान पर सौर ऊर्जा का अधिक उपयोग हो। शहरों  में ग्रीन एनर्जी का अधिक उपयोग होगा तो प्रदूषण पर कंट्रोल किया जा सकता है। वाहन इलेक्ट्रिक हों और हर पार्किंग में इसके चार्जिंग स्टेशन व पाइंट बनाए जाएं। चार्जिंग के हिसाब से उनका यूपीआई से चार्ज लिया जाएगा तो प्रदूषण पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा सकता है। 
- राजू गुप्ता, सेवानिवृत्त सीईओ

जागरूकता की जरुरत
शहर में बढ़ता प्रदूषण सभी के लिए खतरनाक है। प्रदूषण से होने वाले नुकसान के बारे में जानते तो सभी है लेकिन लोगों में उससे बचने के प्रति जागरूकता की कमी है। लोग प्रदूषण की भयावयता को समझ नहीं पा रहे है। जागरूक होंगे तो प्रदूषण को रोकने व कम करने में सहयोग करेंगे।  
- डॉ. अभि गर्ग, वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

पुरानी इमारतें व मॉन्यूमेंट भी प्रभावित
शहर में प्रदूषण का कारण थर्मल है। इसे बंद किया जाना चाहिए। साथ ही इससे निकलने वाले फ्लाईएश और भी अधिक खतरनाक है। फ्लाई एश को जोराबाई तालाब में भर दिया। जिससे वहां पक्षियों का आना बंद हो गया है। मछलियों के मरने से उनकी संख्या भी कम हो गई है।  वायु प्रदूषण न केवल प्राणियों को प्रभावित कर रहा है वरन् इससे पुरानी इमारतें व मॉन्यूमेंट तक प्रदूषित हो रहे है। जिससे 500 साल तक टिकने वाली इमारतें 100 साल भी नहीं टिक रही है। उनका रंग फीका हो रहा है। प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे। 
- नखिलेश सेठी, संयोजक, इनटेक 

कोयले की जगह गैस पर बने बिजली 
थर्मल पावर प्लांट कितना प्रदूषण कर रहा है, इसके आंकड़े सार्वजनिक कर पब्लिक को बताना चाहिए। दिखने में तो पॉल्यूशन ज्यादा नजर आता है लेकिन उसके मैजरमेंट क्या आ रहे हैं, इससे लोगों को पता लगेगा कि थर्मल से कितना पॉल्यूशन हो रहा है। इसके अलावा थर्मल की जो यूनिट पुरानी हो गई है, उसे गैस से कनेक्ट किया जाए। गैस की पाइप लाइन को बॉयलर से जोड़ा जाए तो बिजली बनाने के लिए कोयले की निर्भरता खत्म होगी और प्रदूषण भी नहीं होगा। इसके लिए सरकार बजट का प्रावधान करे। वहीं, सौलर को प्रमोट करने की आवश्यकता है। लेकिन समस्या यह है कि सौलर दिन में उपलब्ध होता है, रात को नहीं। ऐसे में सरकार बिजली की रेट  दिन में कम और रात को थोड़ी ज्यादा रख दे। इससे लोग सौलर की बिजली का उपयोग करने को प्रेरित हो सकेंगे। 
- डॉ. आनंद चतुर्वेदी, प्रोफेसर मेकैनिकल हैड इंजीनियरिंग, आरटीयू

जीवन के लिए खतरा बन रही पॉलिथीन
सिंगल यूज्ड पॉलिथीन के उपयोग पर सरकार ने बैन लगा रखा है, लेकिन बाजार में इसका असर नहीं दिखता। जबकि, पॉलिथीन जीवन के लिए  खतरा है। मिट्टी में फेंकी गई पॉलिथीन से मृदा में रहने वाले सुक्ष्मजीवों को नुकसान पहुंचाती है। क्योंकि, इसमें ऐसे रसायन होते हैं जो मिट्टी के कणों के भीतर पौधों व जीवों के लिए जहरीले हैं और  फसलों के द्वारा यह जहर हमारे फूड चैन में शामिल हो रहा है। वहीं, पानी को भी प्रदूषित कर रही है। जिससे जीवन चक्र गंभीर बीमारियों की जद में आ गया। इसे रोकने की शुरुआत हमें घर से ही करनी होगी। 
- प्रियंका गुप्ता, फाउंडर एंड प्रेसीडेंट अभिलाषा क्लब 

सुंदरता के नाम पर शहर में लग रहे एलर्जिक पौधे 
शहर में सुदंरता के नाम पर बाहर से लाई गई विभिन्न प्रजातियों के पौधे लगा दिए गए। जिनमें कोनोकार्पस, लेंटाना, पार्थेनियम हिस्टेरोपफोरस, बबूल सहित कई प्लांट शामिल हैं, जो दिखने में जितने सुंदर हैं उतने ही दुष्परिणाम भी हैं। असल में यह प्लांट एलर्जिक है। वहीं, एयर पॉल्यूशन कंट्रोल करने में इनकी भूमिका नगण्य है। इनकी जगह पीपल, आंवला, बरगद, नीम, धौंक सहित नेचुरल उगने वाले पौधे ज्यादा से ज्यादा लगाए जाना चाहिए, जो एयर पॉल्यूशन को कंट्रोल करने में कारगर होते हैं।  
- डॉ. मृदुला खंडेलवाल, एसोसिएट प्रोफेसर बोटनी, कोटा यूनिवर्सिटी

पौधे लगाने से पहले विशेषज्ञों की राय लेना आवश्यक
हाड़ौती में पौधरोपण किया जाए तो नेगेटिव स्पीसीज की जगह इंडिजेन्स प्लांट ही लगाना चाहिए। एक्जोटिक प्लांट जैसे कोनोकार्पस, लेंटाना, बबूल सहित अन्य प्रजातियों के पौधे न लगाए जाए। इसके अलावा प्लांटेशन में ऐसे पौधे भी लगाए जाए, जिससे पक्षियों को भोजन  मिल सके। क्योंकि, ईको सिस्टम में पक्षियों का महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वहीं, जब भी सामाजिक वानिकी की जाए तो विशेषज्ञों की सलाह जरूर लेनी चाहिए ताकि, पौधे लगाने के उद्देश्यों की पूर्ति हो सके। 
- डॉ. पृथ्वीपाल सिंह सिरोहिया, वनौषधि विशेषज्ञ

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