शुरू होने से पहले हारी भीख मांगने के खिलाफ लड़ाई, कोटा में भिक्षावृत्ति में लिप्त 265 लोग हैं चिन्हित
भिक्षावृत्ति मुक्त कोटा अभियान पहले चरण तक ही सिमट कर रह गया
इंदौर की तर्ज पर भीख मांगने वालों के खिलाफ लड़ाई तो कोटा शहर ने भी शुरू की लेकिन मैदान में ताल ठोकने से पहले ही कोटा बाहर हो गया
कोटा। इंदौर की तर्ज पर भीख मांगने वालों के खिलाफ लड़ाई तो कोटा शहर ने भी शुरू की लेकिन मैदान में ताल ठोकने से पहले ही कोटा बाहर हो गया। हम बात कर रहे हैं भिक्षावृत्ति मुक्त कोटा अभियान की। राज्य की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने आदेश जारी किया था। जिस पर काम तो शुरु हुआ लेकिन वह काम पहले चरण से आगे ही नहीं बढ़ सका। कोटा में भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों का सर्वे करने का काम सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग को दिया गया था। विभाग की ओर से सर्वे भी कराया गया। जिसमें 265 लोगों को ही चिन्हित किया गया। उसके बाद यह अभियान आगे नहीं बढ़ सका।
इंदौर में तीन चरणों में किया गया काम
इंदौर को भिक्षावृत्ति से मुक्त बनाने के लिए तीन चरणों में काम किया गया। परामर्श, बचाव व प्रवर्तन के तहत वहां भिक्षावृत्ति में लिप्त 8500 लोगों का सर्वे किया गया। फरवरी 2024 में शुरु किए गए इस अभियान के तहत परामर्श, बचाव व पुनर्वास तक का सफर दिसम्बर 2024 तक चला। जिसमें कुल 470 को पुनर्वास तक पहुंचाया गया। उसी तरह से कोटा शहर में भी चिन्हित भिखारियों का बचाव व पुनर्वास किया जा सकता है। लेकिन यहां सिर्फ एक विभाग द्वारा भिखारियों का सर्वे कर इतिश्री कर ली गई। जबकि सर्वे के बाद नगर निगम को अगला काम करना था। ऐसे चिन्हित भिखारियों को भीख मांगने से रोकने के लिए उनके खाने और रहने की व्यवस्था रैन बसेरों में की जानी थी। जबकि ऐसा अभी तक भी नहीं किया गया है।
कुछ फ्रोफेशन की तरह मांग रहे भीख
भीख मांगने वाले सभी भिखारी हों ऐसा नहीं है। शहर में विशेष उत्सव या पर्व के समय बाहर से लोग भीख मांगने आते हैं। इनमें मध्य प्रदेश के लोग ज्यादा होते हैं। कुछ दिन कमाई कर यह लौट जाते हैं। इसी तरह से कुछ लोग वार के हिसाब से भगवान की फोटो लिए चलते हैं और भीख मांग कर अपना धंधा करते हैं। यह लोग मंगलवार को बजरंग बली की फोटो लिए घूमते हैं तो शनिवार को तेल से भरा कमंडल लेकर भीख मांगने निकल पड़ते हैं। एक एनजीओ के अनुसार कुछ भिखारी ऐसे भी हैं जिनके बैंक खातों में अच्छे पैसे हैं। फिर भी पूरे परिवार सहित झुग्गियों में रहते हैं।
धार्मिक स्थलों पर अधिक
शहर के प्रमुख व बड़े मंदिर खड़े गणेशजी, गोदावरी धाम, रंगबाड़ी बालाजी, शनि मंदिर, टिपटा स्थित सांई बाबा मंदिर, नयापुरा स्थित बालाजी मंदिर, स्टेशन का राम मंदिर समेत अन्य मंदिरों में इनकी भीड़ देखी जा सकती है। इसके अलावा किशोर सागर तालाब के किनारे व झालावाड़ रोड और गीता भवन समेत कई अन्य स्थानों पर भी इनकी भीड़ देखी जा सकती है। साथ ही कचौरी की दुकानों पर भी इन्हें भीख मांगते हुए दिनभर देखा जा सकता है।
दो हजार भिखारियों की निकाली थी रैली
कर्मयोगी सेवा संस्थान के संस्थापक राजाराम जैन कर्मयोगी ने बताया कि कोटा में भिक्षावृत्ति में लिप्त लोगों की संख्या हजारों में है। वर्ष 2003 में ही वे करीब दो हजार भिखारियों की रैली कोटा में निकाल चुके हैं। उन्होंने हर क्षेत्र में सर्वे कर रखा है। तत्कालीन जिला कलक्टर ओ.पी. बुनकर के समय में उनकी संस्था को भिखारियों के उन्मूलन की दिशा में काम करने को कहा। उन्होंने काम भी किया लेकिन प्रशासन का सहयोग नहीं मिलने से वह काम आगे नहीं बढ़ सका।
मंडाना में बनाया था स्कूल
जानकारों के अनुसार कोटा के मंडाना में प्रशासन द्वारा लाखों रुपए की लागत से स्कूल का भवन बनाया था। यह स्कूल केवल भिक्षावृत्ति में लिप्त परिवारों के बच्चों के लिए था। शुरुआत में तो इस स्कूल में भिक्षावृत्ति में लिप्त परिवारों के बच्चे पढ़े। लेकिन वर्तमान में स्कूल का नाम तो पुराना ही चल रहा है। अब यह कक्षा 12 वें तक क्रमोन्नत हो गया है। इसमें भिक्षावृत्ति परिवारों के नहीं सामान्य परिवारों के बच्चे पढ़ रहे हैं। यह स्कूल कक्षा 6 से संचालित हो रहा है।
2012 में बना था एक्ट
राजस्थान में 2012 में भिखारी पुनर्वास अधिनियम बनाया गया था जिसका उद्देश्य भिखावृति को खत्म करना था। इसके लिए ऐसे लोगों का सर्वेकर उन्हें पुनर्वास केन्द्र में रखने का था। सभी जिलों में इसके लिए कमेटी भी बनी लेकिन कार्य आगे नहीं बढ़ पाया।
कोटा में सिर्फ सर्वे हुआ, जयपुर में पुनर्वास केन्द्र
कोटा में भिखारियों के सर्वे के निर्देश थे। जिसके तहत विभाग ने पूर्व में सर्वे किया गया। जिसमें 265 को चिन्हित किया गया। लेकिन उसके बाद आगे क्या करना है उस संबंध में कोई दिशा निर्देश नहीं मिले। वहीं अभी जयपुर में पायलट प्रोजेक्ट के तहत राज्य स्तरीय पुनर्वास केन्द्र संचालित हो रहा है। जिसमें वर्तमान में 75 भिखारी रह रहे हैं।
- सविता कृष्णैया, संयुक्त निदेशक सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग
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