गरीब बच्चों का जीवन संवार रहे शिक्षा के कर्मवीर

स्वयं के खर्चे पर वंचित वर्ग के बच्चों को स्कूलों में पढ़ा रहे, बस्तियों में जाकर माता-पिता को कर रहे जागरूक

गरीब बच्चों का जीवन संवार रहे शिक्षा के कर्मवीर

समाज में ऐसे कई सारथी हैं, जो न केवल अशिक्षा के भंवर में फंसी जिंदगी में शिक्षा की रोशनी बिखेर रहे हैं। बल्कि सामाजिक तानाबाना भी बुन रहे हैं। बात हो रही हैं उन शिक्षकों व शिक्षा के कद्रदानों की जो स्वयं के खर्चे पर गरीब तबके के बच्चों को पढ़ा रहे हैं। स्कूलों में एडमिशन से लेकर यूनिफॉर्म, पैन, पेंसिल, कॉपी-किताबे सहित अन्य जरूरत की चीजें मुहैया करवा रहे हैं।

कोटा। हमारी आंखों के सामने वंचित वर्ग के बच्चों की कई तस्वीरें हैं, जिनमें बाल मजदूरी करते, हाथ में पाना पेचकस लिए, चाय की कैटली थामे व पिन्नी बिनते बच्चे दिखते हैं। विपरित परिस्थितियां व आर्थिक चुनौतियों से जूझते ये बच्चे अपनी पारिवारिक स्थिति से जीत नहीं पाते और पढ़ाई छोड़ काम करने में जुट जाते हैं। लेकिन, जिंदगी की दोराहों में कुछ लोग ऐसे भी मिल जाते हैं, जो उस वक्त मदद करते हैं, जब हमें किसी की मदद की सख्त जरूरत होती है। क्योंकि, उनकी मदद से मझधार में फंसी जिंदगी को नई दिशा मिलती है। समाज में ऐसे कई सारथी हैं, जो न केवल अशिक्षा के भंवर में फंसी जिंदगी में शिक्षा की रोशनी बिखेर रहे हैं। बल्कि सामाजिक तानाबाना भी बुन रहे हैं। दरअसल, यहां बात हो रही हैं उन शिक्षकों व शिक्षा के कद्रदानों की जो स्वयं के खर्चे पर गरीब तबके के बच्चों को पढ़ा रहे हैं। वहीं, स्कूलों में एडमिशन से लेकर यूनिफॉर्म, पैन, पेंसिल, कॉपी-किताबे सहित अन्य जरूरत की चीजें मुहैया करवा रहे हैं। 

35 बच्चों का भविष्य संवार रही अनुभूति 
कोचिंग इंस्टीटयूट में आईआईटी की तैयारी कराने वाली प्रोफेसर अनुभूति दीक्षित आरकेपुरम में सामाजिक संस्थान से जुड़ी है। यहां 35 से 40 बच्चों को नि:शुल्क साइंस की कोचिंग दे रहीं है। इनके पढ़ाए बच्चे 10वीं बोर्ड में 70 प्रतिशत से उपर अंक लाकर खूब नाम रोशन कर रहे हैं। अनुभूति बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ गणित, बॉडी लैंग्वेज, जिंदगी जीने की कला, बातचीत करने का लहजा, कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी, और संस्कार के अलावा नैतिक शिक्षा का भी ज्ञान दे रहीं है। इसके अलावा बीमार बच्चों का भी खुद अपने खर्चे पर इलाज करवातीं है। अनुभूति कहतीं हैं, हर दिन हर पल, कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में अशिक्षा टकरा ही जाती है। जिन नन्हें कंधों पर स्कूल बैग का भार होना चाहिए, उन कंधों पर दो वक्त की रोटी कमाने का बोझ था। पिन्नी बीनते बच्चों को देख मन विचलित हो गया। सोचने पर मजबूर हो गईं कि ये वर्ग समाज का हिस्सा होते हुए भी मुख्य धारा से क्यों दूर है। इसका कारण, शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी है। इनके माता-पिता को अंदाजा भी नहीं है कि उनके जीवन में रोशनी सिर्फ शिक्षा के जरिए ही आ सकती है। झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक कर रहे है।   

पढ़ाई की टूटती डोर को जोड़ रहे 
शिक्षा विभाग में यूडीसी भारत पाराशर टूटती शिक्षा की डोर जोड़ रहे हैं। वे स्वयं खर्चे पर एक दर्जन बच्चों को सरकारी व प्राइवेट स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। पाराशर आटीई विभाग के प्रभारी हैं। जिन बच्चों को प्राइवेट स्कूलों ने आरटीई के दायरे से बाहर कर एडमिशन नहीं दिया, भारत ने उन्हीं बच्चों का उसी स्कूल में खुद की जेब से फीस भर एडमिशन करा दिया। पढ़ाई-लिखाई से लेकर स्टेशनरी का खर्चा भी उठा रहे हैं। मोबाइल, मैकेनिक व चाय की दुकान पर काम करते बच्चों को देख दिल पसीज गया। उनके अभिभावकों से बात कर स्कूल भेजने को राजी किया। जहां पैसा रुकावट बना वहां पाराशर ढाल बनकर खड़े हो गए। छोटी उम्र में ही भारत के सिर से पिता का साया उठ गया था। 4 बहन-भाई की जिम्मेदारी मां के कंधों पर थी। वे, स्कूल में नौकरी करती और पाई-पाई जोड़ बच्चों के सपने बुनती। तंगहाली में भी जरूरतमंदों की मदद को तैयार रहती। विपरित परिस्थितियों में परिवार पालने की चुनौति और टूटती शिक्षा की डोर जोड़ने का मां का जुनून ने वंचित वर्ग की मदद को प्रेरित किया। पाराशर कहते हैं, हर बच्चे को शिक्षा का अधिकार है। समाज में व्याप्त बुराइयों का कारण अशिक्षा है,  गरीब या वंचित वर्ग के बच्चे आर्थिक कमजोरी के कारण पढ़ नहीं पाते और पैसे कमाने के लालच में कई गलत काम करते हैं. कोई नशाखोरी में फंसकर रह जाता हैं, तो कोई पन्नी बीनकर अपना पेट पालता है. इन बच्चों को भी अच्छा जीवन जीने का अधिकार है। ऐसे में उन बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए सबको मिलकर पहल करनी चाहिए। जिससे की ये बच्चे पढ़कर खुद व परिवार को बेहतर जीवन दे सकें।

दो छात्राओं को गोद लेकर करवा रहे बीएड
गुमानपुरा स्थित राजकीय सीनियर सैकण्डरी स्कूल में कॉमर्स व्याख्याता अश्वनी गौतम कहते हैं, प्रतिभा अभावों से जूझ सकती हैं लेकिन टूट नहीं सकती। थोड़ी सी मदद हो तो आसमान भी छू सकती हैं। गौतम ने आर्थिक रूप से कमजोर दो छात्राओं को गोद लेकर न केवल पढ़ा रहे हैं बल्कि स्वयं के खर्चे पर बीएड भी करवा रहे हैं। गौतम ने बताया कि वर्ष 2007 से 2012 तक अर्जुनपुरा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में पदस्थापित थे। 9वीं कक्षा में गीता (परिवर्तित नाम) की छात्रा थी, उसके पिता चाय की थडी लगाते थे, आर्थिक स्थिति कमजोर होने से वे बच्ची को आगे पढ़ाना नहीं चाहते थे। लेकिन गीता पढ़ने में होशियार थी। मैंने उसके पिता से बात कर छात्रा को गोद लिया और अपने खर्चे पर कक्षा 9वीं से एमएससी करवाई। अब जयपुर से बीएड करवा रहे हैं। इसी तरह वर्ष 2015 में गुमानपुरा स्कूल में ट्रांसफर हुआ तो यहां भी 9वीं कक्षा में छात्रा भावना (परिवर्तित नाम) थी। उसके पिता और भाई नहीं थे। घर की जिम्मेदारी मां पर थी। आर्थिक स्थिति दयनीय थी। ऐसे में भावना को गोद लेकर 12वीं तक की पढ़ाई करवाई। अब उसे धाकड़खेड़ी स्थित हितकारी कॉलेज से बीए-बीएड करवा रहे हैं। 

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42 बेटियों की भरी फीस, कॉपी-किताबें भी दिलाई 
छावनी रामचन्द्रपुरा स्थित राजकीय सीनियर सैकण्डरी स्कूल में उर्दू की व्याख्याता शमसुन निसा अब तक करीब 42 से ज्यादा बेटियों की शिक्षा में मदद कर चुकी हैं, जिनमें से दो छात्राएं आज शिक्षक बन चुकी हैं। निसा कहती हैं, तंगहाली व फीस जमा नहीं करवा पाने पर मासूम की आंखों में समाज में अपना वजूद खोने का डर, चेहरे पर लाचारी व बहते आंसू देख कलेजा मुंह को आ गया। उसी वक्त ठान लिया, कुछ भी हो मासूमों को शिक्षा से दूर नहीं होने दूंगी। बेटियों की सफलता देख हौसला बढ़। अब यही प्रयास रहता है कि कोई बेटी पैसों के अभाव में पढ़ाई नहीं छोड़े। कैथून के राजकीय विद्यालय में कुछ बेटियो ने फीस न भर पाने के चलते पढ़ाई छोड़ दी थी, जब इसका पता चला तो मैंने फीस भर उन्हें फिर से स्कूल लेकर आई। 

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गोल्ड मेडल हासिल कर शिखर तक पहुंची प्रतिभा 
जेडीबी साइंस कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. संजय भार्गव वैसे तो हर समय विद्यार्थियों की मदद को तैयार रहते हैं लेकिन जीवन में एक पल ऐसा भी आया, जिससे उनका शिक्षक होना सार्थक हो गया। भार्गव वर्ष 2017 में राजकीय कन्या महाविद्यालय झालावाड़ में प्राचार्य थे। उस वक्त एमए होम साइंस की छात्रा प्रियंका ब्रजवासी के पास फीस जमा कराने को पैसे नहीं थे। उनकी पारिवारिक परिस्थितियां विपरीत थी, लेकिन छात्रा प्रतिभाशाली थी। इस पर उन्होंने जेब से छात्रा की फीस भरी और आगे बढ़ने को प्रेरित किया। 8 फरवरी 2022 को कोटा यूनिवर्सिटी में आयोजित दीक्षांत समारोह में प्रियंका को एमए होम साइंस में स्वर्ण पदक मिला और जिले में कलक्टर ने सम्मानित किया। प्राचार्य संजय भार्गव ने कहा, जब बच्ची को स्वर्ण पदक मिला तो मेरा शिक्षक होना सार्थक हो गया। 

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