शरद पूर्णिमा देती है निरोगी काया और धन-संपदा का आशीर्वाद
यूं तो हर पूर्णिमा का महत्व होता है, लेकिन शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है। आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं।
इस व्रत को आश्विन पूर्णिमा, कोजगारी पूर्णिमा और कौमुदी व्रत के नाम से भी जानते हैं। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। इसे अमृत काल भी कहा जाता है। कहते हैं कि इस दिन महालक्ष्मी का जन्म हुआ था। मां लक्ष्मी समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुई थीं। शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा कि रोशनी को अमृत समान माना गया है। मान्यता है कि इस दिन चंद्र दर्शन और पूजन से निरोगी काया की प्राप्ति होती है। इस दिन मां लक्ष्मी के पूजन से धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
आयुर्वेद में शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की रोशनी को अमृत समान माना गया है। इस दिन रात्रि में चंद्र दर्शन करने और चंद्रमा का त्राटक करने से नेत्र विकार दूर होते हैं।
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की रोशनी में बैठने से शरीर के सभी रोगाणुओं का नाश होता है तथा सांस संबंधी बीमारियों में भी लाभ मिलता है।
शरद पूर्णिमा के दिन दूध और चावल की खीर को बना कर साफ कपड़े से ढक कर रात भर के लिए चंद्रमा की रोशनी में रख देना चाहिए। सबरे इस खीर को खाने से रोग प्रतिरोधकता में वृद्धि होती है।
शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन कार्तिकेय भगवान के पूजन से योग्य वर मिलता है।
शरद पूर्णिमा को मां लक्ष्मी का जन्मदिन माना जाता है। इस दिन रात्रि जागरण और मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप किया जाता है।
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