एसयू 30 एमकेआई को रूसी आर-37एम मिसाइल से लैस करेगा भारत, हाइपरसोनिक स्पीड से हमला करने की क्षमता

भारतीय वायुसेना के विमानों की बीवीआर लड़ाई में रेंज बढ़ेगी

एसयू 30 एमकेआई को रूसी आर-37एम मिसाइल से लैस करेगा भारत, हाइपरसोनिक स्पीड से हमला करने की क्षमता

भारतीय वायुसेना बहुत जल्द अपने एसयू-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों में रूसी आर-37एम हाइपरसोनिक एयर टू एयर मिसाइल को इंटीग्रेट कर सकती है

मॉस्को। भारतीय वायुसेना बहुत जल्द अपने एसयू-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों में रूसी आर-37एम हाइपरसोनिक एयर टू एयर मिसाइल को इंटीग्रेट कर सकती है। डिफेंस सिक्योरिटी एशिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि आर-37एम एक दुर्जेय रूसी मिसाइल है, जिसे इंटीग्रेट करने से भारतीय वायुसेना के विमानों की बीवीआर लड़ाई में रेंज काफी ज्यादा बढ़ जाएगी। रूस की आर-37एम एयर टू एयर मिसाइल को नाटो देशों ने एए-13 एक्सहेड कोडनेम दिया हुआ है। 

रिपोर्ट में दिल्ली के विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि भारत ने अपने प्रतिद्वंदियों चीन और पाकिस्तान के बियॉन्ड विजुअल रेंज खतरों ने निपटने के लिए रूसी हाइपरसोनिक मिसाइल पर भरोसा जताया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि रूस ने भारत को एक जबरदस्त पैकेज का प्रस्ताव दिया है, जिसमें आर-37एम मिसाइल का भारत में ही उत्पादन शामिल है।

रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय एसयू-30एमकेआई लड़ाकू विमान के साथ साथ मिग-29 लड़ाकू विमानों को भी आर-37एम मिसाइल से लैस किया जा सकेगा। यह मिसाइल दुनिया की सबसे लंबी दूरी की एयर-टू-एयर मिसाइलों में से एक है और भारत के लिए यह कदम सिर्फ एक हथियार तैनाती नहीं, बल्कि हवाई रणनीति में बदलाव का प्रतीक है। सूत्रों के मुताबिक रूस ने इस डील को और आकर्षक बनाने के लिए स्थानीय को-प्रोडक्शन और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का प्रस्ताव भी दिया है, जो भारत की मेक इन इंडिया और 130 अरब डॉलर के डिफेंस मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम के मुताबिक है।

आर-37एम मिसाइल की विशेषताएं

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 आर-37एम का वर्जन : एयर टू एयर मिसाइल 
 डवलपर : रूस की मशहूर Vympel Design Bureau ने डेवलप किया
 मिसाइल की फायरिंग रेंज : 300 किलोमीटर के करीब  है।
 मिसाइल की टर्मिनल स्पीड : है, जो मैक 6 यानि आवाज की रफ्तार से 6 गुना ज्यादा (विनाशकारी हाइपरसोनिक स्पीड)
 मिसाइल का आकार : 4.2 मीटर लंबी और 
 वजन : 600 किलोग्राम।

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भारत से बड़ा रणनीतिक साझेदार नहीं
मॉस्को के रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में पुष्टि की है कि 1 नवंबर 2024 को एसयू-30एसएम और एसयू-35एस जेट ने यूक्रेनी लड़ाकू विमानों को मार गिराने के लिए आर-37एम का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया था। अक्टूबर 2022 में युद्ध के मैदान की रिपोर्टें सामने आईं थी कि रूस की पांचवीं पीढ़ी के एसयू-57 से लॉन्च किए गए आर-37एम मिसाइल ने एक यूक्रेनी एसयू-27 को मार गिराया गया था। हालांकि आर-37एम को मूल रूप से मिग-31 जैसे भारी इंटरसेप्टर के लिए बनाया गया था, जिसके बड़े आकार की वजह से इस 4.2 मीटर लंबी और 600 किलोग्राम वजनी मिसाइल को ढोना सरल होता है। लेकिन एसयू-30एमकेआई और मिग-29 जैसे विमानों में इसे इंटीग्रेट करना थोड़ा मुश्किल होगा। इसके लिए भारत को एवियोनिक्स और रडार सिस्टम को अपग्रेड करना होगा।  भारत और रूस के बीच तकनीकी साझेदारी को देखते हुए ऐसा करना संभव माना जा रहा है। 

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डिफेंस सेक्टर पर नजर रखने वाली वेबसाइटों का कहना है कि आर-37एम की टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और भारत में निर्माण यूक्रेन युद्ध की वजह से आसान हो गया है, क्योंकि रूस के लिए पश्चिमी देशों के दरवाजे बंद हैं और भारत से बड़ा उसके पास कोई और रणनीतिक साझेदार नहीं है।

भारत में 200-300 मिलियन डॉलर तक की लागत
अगर भारत इसका उत्पादन करता है तो यह मिसाइल भारत में 200-300 मिलियन डॉलर तक की लागत वाली स्वदेशी मिसाइल सप्लाई चेन को जन्म दे सकता है। इससे न सिर्फ रोजगार और टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन होगा, बल्कि भारत की लंबी दूरी की एयर डिफेंस नीति को आत्मनिर्भरता भी मिलेगी। आर-37एम की तैनाती के साथ भारतीय वायुसेना की मार करने की क्षमता सैकड़ों किलोमीटर और गहरा हो जाएगा। डिफेंस वेबसाइट का मानना है कि इससे पाकिस्तान की बीवीआर क्षमता की रीढ़ टूट सकती है। और उसे पीएल-21 जैसी अगली पीढ़ी की मिसाइलों की तलाश करने हुए चीन से फिर मदद मांगना पड़ सकता है। इसके अलावा एसयू-30एमकेआई जैसे प्लेटफॉर्म को आर-37एम से लैस करना उसे 4.5 जनरेशन के सुपर पावर प्लेटफॉर्म में बदल देगा, जो वजन, रेंज, पेलोड और सेंसर फ्यूजन के लिहाज से किसी भी आधुनिक लड़ाकू जेट को चुनौती दे सकता है।

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