जानें राज-काज में क्या है खास

जानें राज-काज में क्या है खास

जानिए प्रदेश की वो खबरें जो सुर्खियों से गायब हो जाती है।

चर्चा में फिर बड़े साहब
सूबे की ब्यूरोक्रेसी में बड़े साहब एक बार फिर चर्चा में है। चर्चा का सब्जेक्ट भी छोटी-मोटी नहीं बल्कि अजयमेरु में स्थित अफसरों का सलेक्शन करने वाली बड़ी कुर्सी से ताल्लुकात रखता है, जो अभी 29 जनवरी तक टेम्परेरी भरी गई है। कुर्सी को टेम्परेरी भरने के बाद बड़ी चौपड़ से सचिवालय तक चर्चा है कि जोधपुर वाले अशोकजी भाई साहब ने सोच समझ कर इस कुर्सी को वृश्चिक राशि वाले साहब के लिए टेम्परेरी रखा है, जो चार जनवरी को षष्ठीपूर्ति कर रहे हैं। वैसे तो पाली की धरती से ताल्लुकात रखने वाले साहब भी तकदीर के धनी हैं, अब तक उनकी हर मुराद पूरी हुई है। उनकी कुंभ राशि वाली अर्द्धांगनि पहले से ही अजयमेरु में आसीन हैं, जो अपने साहब के लिए कुर्सी छोड़ने में एक पल भी नहीं गवारा नहीं करेंगी।


पीछा नहीं छोड़ रहा बगावत का भूत

हाथ वाले कुछ भाई लोग राज में कुर्सी मिलने के बाद भी परेशान हैं। परेशानी का कारण और कोई नहीं, बल्कि बगावत का भूत है, जो सारे टोने-टोटके करने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ रहा। डेढ़ साल से झेल रहे इस भूत का इलाज लालकिले वाले नगरी में बड़े देवरे से भी कराया गया, मगर भूत है कि पीछा छोड़ने का नाम ही ले रहा। अब देखो ना जब हाथ वाले भाई लोग एक जाजम पर बैठते हैं, तो बगावत का भूत जाग जाता है, और उनकी जुबान पर आ जाता है। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि दूसरों पर मूठ छोड़ने के लिए बुलाए स्याणै कभी उल्टे भी पड़ जाते हैं। जब सामने वाले पर चिरमी, आलपिन और भभूत का असर नहीं पड़ता है, तो बुलाने वाले पर ही स्याणपत दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। डेढ़ साल पहले लगा बगावत का यह भूत भी भाई लोगों पर पूरे दो साल असर दिखाए बिना नहीं रहेगा।


हिसाब रेस ए वेटिंग सीएम का

पिछले तीन साल से ठाले बैठे भगवा वाले भाई लोग भी खुद को बिजी रखने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। और तो और अपनी पार्टी के वेटिंग सीएम को लेकर जोड़-बाकी और गुणा-भाग करने में ही खुद को इतना व्यस्त कर लिया कि घर वालों के भी सगे नहीं हैं। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा के ठिकाने पर आने वाले विजिटर्स को भी अपनी गणित के हिसाब से समझाने की कोशिश किए बिना नहीं रहते। अब उनकी गणित की मानें तो दो महीने पहले तक कुर्सी की दौड़ में आगे चल रहे दोनों बन्ना पीछे हो गए और अब एक महिला सांसद और आमेर वाले भाईसाहब रेस में हैं। लेकिन इनके भी दौड़ से आउट होने के बाद में क्या होगा, उसे जानते तो सब हैं, मगर अनजान डर की वजह से चुप रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं। अब समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।


कुछ तो गड़बड़ है

हाथ वाले भाई लोग भी बड़े अजीब हैं। कब क्या कर बैठें, उनको भी पता नहीं रहता। लग जाए तो तीर वरना तुक्का तो है ही। अब देखो ना भाई लोगों ने 16 महीने तक दो-दो हाथ करने के बाद हाथ तो मिला लिए, मगर बीच में गैप रखे बिना नहीं रहे। गैप भी ऐसा कि मन में आए जब हाथ खींचने में जोर नहीं आए। इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के ठिकाने पर खुचरफुसर है कि टूटे दिलों को जोड़ना इतना आसान नहीं है, जितना ऊपरवाले सोच रहे हैं। रस्सी जल गई, मगर बल नहीं निकला, तभी तो जुबानी जंग थमने का नाम ही नहीं ले रही। और तो और किसी न किसी बहाने अड़ंगा लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। हाथ वाले भाई लोगों में सब कुछ ठीक नहीं है, कुछ तो गड़बड़ है।


एक जुमला यह भी
पिंकसिटी में शनि की रात से एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि कॉमनमैन को टच करने को लेकर है। कॉमनमैन को टच करने की कला हर किसी को नहीं आती। अब देखो ना, शनि की रात को भगवा वाली मैडम ने गुलाबीनगरी में चांदपोल वाले हनुमानजी के ढोक देने के बाद जो कॉमनमैन को टच किया, उसको लेकर धुरविरोधी भी तारीफ किए बिना नहीं रहे। चाहे मैडम की इस कला से उनकी रातों की नींद और दिन का चैन ही उड़ रहा हो।

      एल. एल. शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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