सार्वभौमिक सोच के प्रेरक आचार्य विनोबा भावे

विनोबा भावे का जन्म  11 सितम्बर 1895 को हुआ था

सार्वभौमिक सोच के प्रेरक आचार्य विनोबा भावे

आचार्य विनोबा भावे ने यही संकल्प लिया था कि वे पूरे भारत का भ्रमण करेंगे, नगर-नगर, ग्राम-ग्राम जाएंगे तथा दान में भू-दान लेंगे ताकि जमीन का वितरण उन भूमिहीन किसानों में किया जा सकें, जिनके पास जमीन का अभाव है और जो बड़ी मुश्किल से अपना जीवन यापन कर पाते हैं।

देशी की सर्वव्यापक भावना के चिंतन को धरातल पर उतारने वाले महान संत आचार्य विनोबा भावे अपराजय व्यक्तित्व के मालिक थे। आचार्य विनोबा भावे ने महात्मा गांधी के विचारों के साथ सनातन परम्परा के चितंन को साकार करने के लिए भूदान, डाकूओं के आत्मसमर्पण तथा जय जगत के विचारों द्वारा वैश्विक समास्याओं को अहिंसक तरीके से समाधान निकालने के जीवन्त उदाहरण प्रस्तुत किया। आचार्य विनोबा भावे का जन्म  11 सितम्बर 1895 को हुआ था। भारतरत्न से सम्मानित आचार्य विनोबा भावे का मूल नाम विनायक नरहरि भावे था । आज का दिन चार बड़ी घटनाओं के लिए जाना जाता है। पहली घटना आज से 126 साल पहले वर्ष 1893 में हुई थी। जब अमेरिका के शिकागो में महान युग दृष्टा स्वामी विवेकानंद ने अपने समय के ऐतिहासिक विश्व धर्म संसद में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए मानवता से भरा युगानुकूल भाषण दिया था। भारतीय दर्शन तथा धर्म की सार्वभौमिक सोच ने सारे विश्व को सभी धर्मों की आत्मा अध्यात्म की उच्चतम अवस्था का ज्ञान कराया था। दूसरी घटना 11 सितम्बर 1906 में युग पुरूष महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में अपने अहिंसा आंदोलन को सत्याग्रह का नाम दिया था। आगे चलकर दुनिया ने कहा कि हमने एक मोहन के चक्रधारी के विराट रूप में तथा दूसरे मोहन को चरखाधारी के रूप में दर्शन किए हैं। सत्याग्रह के इस सफल प्रयोग ने कुछ वर्षों पश्चात भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाई थी। भारत की आजादी के बाद सत्याग्रह की इस आंधी में 54 देशों ने अंग्रेजी शासन को अपने-अपने देश से उखाड़ फेंका। तीसरी बड़ी घटना 18 साल पहले वर्ष 2001 में हुई थी। जब न्यूयार्क के वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर अब तक का सबसे बड़ा आतंकवादी हमला हुआ था। इस हमले में अनेक देशों के हजारों बेकसूर लोग मारे गए थे।

भारत के घोष वाक्य सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया: सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् दु:ख भाग्भवेत। शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥ अथर्ववेद में उल्लिखित शांति पाठ का हिंदी पद्यानुवाद:. आज के इस अशांति भरे वातावरण में जहां हर कोई परेशान है हर किसी को कोई न कोई तकलीफ  है, अधिकांश लोग दुखी हैं, सभी सुखी हों, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दु:ख का भागी न बने। ऐसे में आइये मिलकर सबके कल्याण के लिए ईश्वर से प्रार्थना करें।  तीन महान संन्यासियों ने धरती पर विश्व शान्ति के अग्रदूत तीन महान संन्यासियों  ने भारत भूमि में जन्म लेकर दुनिया को सहनशीलता, सत्याग्रह तथा जय जगत का पाठ पढ़ाया। 19वीं सदी में धरती खून से लाल हो रही थी। तो 20वीं सदी मानव सभ्यता के इतिहास में जापान के हिरोशिया तथा नाकाशाकी शहरों पर अमेरिका द्वारा गिराए गए दो परमाणु बमों का भयानक विनाश भी हुआ। 21वीं सदी की वैश्विक चुनौतियों को हम आचार्य विनोबा भावे के दिखाए मार्ग से हल किया जाए । विनोबा भावे सही मायने में महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे। स्वामी विवेकानंद के सहनशीलता तथा सर्व-धर्म समभाव के विचार को गांधी तथा विनोबा ने आगे बढ़ाया। वे अपने आश्रम में सर्व-धर्म प्रार्थना करते थे। महात्मा गांधी के पश्चात् सामान्य जनता की सुध लेने और उनके दु:ख-दर्द बांटने के लिए यदि किसी महापुरूष ने सफल आन्दोलन चलाया तो सबसे पहले आचार्य विनोबा भावे का नाम आता है।
आचार्य विनोबा भावे ने यही संकल्प लिया था कि वे पूरे भारत का भ्रमण करेंगे, नगर-नगर, ग्राम-ग्राम जाएंगे तथा दान में भू-दान लेंगे ताकि जमीन का वितरण उन भूमिहीन किसानों में किया जा सकें, जिनके पास जमीन का अभाव है और जो बड़ी मुश्किल से अपना जीवन यापन कर पाते हैं। अपने संकल्प की पूर्ति के लिए महाराष्टÑ में जन्मा यह दुबला-पतला सन्त लोकमंगल की कामना से सारे भारत में घूमा। गरीबों को सिर ढकने के लिए आवास तथा खेती के लिए जमीन की व्यवस्था कराई। इस पवित्र कार्य में जमींदार लोग भी गरीबों को दिल खोलकर जमीन देने के लिए आगे आये। यह संसार की अपनी तरह की अनूठी अहिंसक क्रान्ति है। विनोबा भावे के अनमोल प्रेरणादायी कथन जिसने मन नहीं जीता वह ईश्वर की सृष्टि का रहस्य नहीं समझ सकता। डूबने वाले के साथ सहानुभूति का अर्थ यह नहीं की उसके साथ डूब जाओ, बल्कि तैरकर उसे बचने का प्रयास करो। पढ़ना एक गुना, चिंतन दो गुना और आचरण चौगुना। गरीब वह नहीं है, जिसके पास धन कम है, बल्कि धनवान होते हुए भी जिसकी इच्छा कम नहीं हुई है वह सबसे बड़ा गरीब है। बलवान बनने के लिए जरुरी बात है संयम। बुद्धि की स्थिरता के बिना कोई भी आदर्श पूरा नहीं होता। तुम्हारा भाग्य तुम्हारे हाथ में है। जो शक्ति और सहयोग तुम चाहते हो, वह सब तुम्हारे भीतर मौजूद है। सबको हाथ की पांच अंगुलियों के समान रहना चाहिए। विचार का चिराग बुझ जाने पर आचार अंधा हो जाता है। कर्म वह दर्पण है, जिसमें हमारा प्रतिबिम्ब दिखता है। जब तक फल न मिले, तब तक साधना जारी रखनी चाहिए।

-अंजु अग्निहोत्री
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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