जैविक आतंकवाद का बढ़ता खतरा : वैश्विक एकजुटता की जरूरत

वैश्विक चिंता बढ़ी 

जैविक आतंकवाद का बढ़ता खतरा : वैश्विक एकजुटता की जरूरत

बायोटेररिज्म यानी जैविक आतंकवाद एक ऐसा खतरा है, जिसमें जीवाणु, वायरस, विषैले पदार्थ या अन्य जैविक एजेंटों का इस्तेमाल इंसानों,पशु-पक्षियों या फसलों को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाता है।

बायोटेररिज्म यानी जैविक आतंकवाद एक ऐसा खतरा है, जिसमें जीवाणु, वायरस, विषैले पदार्थ या अन्य जैविक एजेंटों का इस्तेमाल इंसानों,पशु-पक्षियों या फसलों को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाता है। यह पारंपरिक आतंकवाद से बहुत ज्यादा खतरनाक हो सकता है क्योंकि जैविक एजेंट हवा, पानी, खाद्य पदार्थों या सीधे संपर्क से तेजी से फैल सकते हैं तथा लोगों का जीवन प्रभावित कर सकते हैं। जैविक आतंकवाद को आधुनिक समय का सबसे बड़ा खतरा माना जा रहा है। जीवाणुओं और विषाणुओं का इस्तेमाल करके खतरनाक बीमारियां फैलाई जा सकती हैं। आतंकवाद के बढ़ते उग्र स्वरूप और जैव प्रौद्योगिकी में हो रहे विकास ने इस खतरे को और अधिक गंभीर बना दिया है। कुछ आतंकवादी संगठन, सिरफिरे लोग तथा तानाशाह इन जैविक हथियारों को हासिल करने और उनका दुरुपयोग करने की कोशिश कर रहे हैं। यह खतरा इसलिए भी चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि जैविक हमलों का पूर्वानुमान लगाना और प्रतिक्रिया देना मुश्किल होता है।

जैविक हथियारों का खतरा :

जैविक आतंकवाद के सबसे संभावित एजेंट जीवाणु, विषाणु और टॉक्सिन होते हैं। जैसे एंथ्रेक्स जैसी बीमारी बैसिलस एंथ्रासिस नामक बैक्टीरिया से होती है, जो अधिकतर पशुओं में पाया जाता है,लेकिन इंसानों में भी संक्रमण फैला सकता है। जैविक हथियारों का खतरा कपोलकल्पित नहीं है। इतिहास में जैविक हथियारों का प्रयोग भी दर्ज है। उदाहरण के लिए, मध्यकालीन युग में तुर्की और मंगोल सैनिक संक्रमित पशुओं के शवों को शत्रु नगरों में फेंक कर बीमारी फैलाने की कोशिश करते थे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान ने चीन के खिलाफ इस तरह का प्रयोग किया था। आधुनिक काल में जैविक आतंकवाद का सबसे चर्चित मामला 2001 में अमेरिका में एंथ्रेक्स के संक्रमण का है। संक्रमित पत्रों के माध्यम से एंथ्रेक्स फैलाया गया, जिसमें कई लोगों की मौत हुई। इस घटना के बाद जैविक सुरक्षा और जैव आक्रमण से रक्षा की तरफ विश्व का ध्यान एक बार फिर गया। हालांकि, आतंकी संगठनों द्वारा जैविक हथियारों के इस्तेमाल के मामले अब भी दुर्लभ हैं, लेकिन आतंकी संगठनों पर जैविक हथियारों के विकास और संभावित प्रयोग का संदेह हमेशा बना रहता है।

वैश्विक चिंता बढ़ी :

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कोरोना वायरस महामारी के बाद जैविक आतंकवाद को लेकर वैश्विक चिंता बढ़ी है। अब संक्रामक रोगों को महामारी को हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जाने के जोखिम को समझा जाने लगा है। जैविक आतंकवाद के हमले से दुनिया को होने वाले नुकसान का ठीक-ठीक आकलन भी कठिन है, क्योंकि इसके प्रभाव लंबे समय तक चलने वाले हो सकते हैं। जैविक हथियारों से जान का ही नुकसान नहीं होता, बल्कि सामाजिक-आर्थिक स्थिरता पर भी गहरा असर पड़ता है। घायल या बीमार व्यक्तियों की संख्या इतनी अधिक हो सकती है कि अस्पताल और स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा जाए। केवल जैविक एजेंटों के फैलने की क्षमता ही चिंता का विषय नहीं है, बल्कि जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रही उन्नत तकनीकों के शैतानी इस्तेमाल की आशंका भी बनी हुई है। जैविक आतंकवाद मानवता के लिए एक गहरा और जटिल खतरा है। यही वजह है कि भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने हाल ही जैविक हथियार संधि की 50वीं वर्षगांठ से जुड़े सम्मेलन के अवसर पर जैविक आतंकवाद के मसले को उठाया और कहा कि यह एक गंभीर खतरा है।

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जैविक हथियार संधि :

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इसके लिए पूरी अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को तैयार रहना होगा। उन्होंने ग्लोबल बायोसिक्योरिटी फ्रेंमवर्क को मॉडर्न बनाने और उसे मजबूत करने की अपील की। बीडब्ल्यूसी को प्रभावी बनाए रखने के लिए संधि को आधुनिक विज्ञान और वैश्विक क्षमताओं के अनुरूप अपडेट करना आवश्यक हो गया है। जैविक हथियार संधि एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संधि है जिसे 1975 में लागू किया गया था। इसका उद्देश्य बैक्टीरिया, वायरस और विषाक्त पदार्थों के उत्पादन, भंडारण, हस्तांतरण और उपयोग को पूरी तरह से रोकना है। यह संधि जैविक हथियारों के विकास और उपयोग को प्रतिबंधित करने वाली बहुपक्षीय निरस्त्रीकरण संधि है। बीडब्ल्यूसी ने ऐसे मामलों को रोकने के लिए एक नैतिक और कानूनी लाइन खींची है और संदेश दिया है कि बीमारी को हथियार के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। पचास वर्ष बाद भी बीडब्ल्यूसी के सामने कई चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती प्रणालीगत खामी है। जैसे कि इसमें कोई प्रभावी अनुपालन तंत्र नहीं है, कोई स्थायी तकनीकी निकाय नहीं है और नए वैज्ञानिक विकास को ट्रैक करने का कोई सिस्टम नहीं है। इस वजह से आधुनिक जैविक आतंकवाद के खतरों से निपटना कठिन हो रहा है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस :

आधुनिक विज्ञान और तकनीक, जैसे जीन संपादन, संश्लेषण जीव विज्ञान और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने जैविक हथियारों के निर्माण को आसान और अधिक खतरनाक बना दिया है। इस तकनीकी प्रगति के साथ, जैविक आतंकवाद के खतरे में वृद्धि हुई है, क्योंकि अब आतंकी समूह भी आसानी से जैव हथियार विकसित कर सकते हैं। इसलिए जैविक सुरक्षा और निगरानी प्रणालियां अत्यंत आवश्यक हो गई हैं। इस संदर्भ में बीडब्ल्यूसी की एक और बड़ी कमजोरी है कि इसमें देशों के बीच अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी निरीक्षण तंत्र नहीं है। यह एक अच्छी बात है कि इंटरनेशनल बायोसिक्योरिटी एंड बायोसेफ्टी इनिशिएटिव फॉर साइंस जैसे संगठन आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग से होने वाले जोखिमों को कम करने के लिए काम कर रहे हैं। विभिन्न देशों ने जैव सुरक्षा के नियम एवं विनियम बनाए हैं, कठिन सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू किए हैं और अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाया है। यह केवल एक देश या क्षेत्र तक सीमित नहीं, बल्कि वैश्विक सुरक्षा का मुद्दा है। इसलिए सभी देशों को मिलकर इस खतरे से निपटने के लिए ऐसी प्रभावी रणनीति बनानी होगी, जो आधुनिक तकनीकी नियंत्रण, कड़े नियमों, जागरूकता, शोध एवं वैश्विक सहयोग पर आधारित हो। तब ही हम इस खतरे से सुरक्षा सुनिश्चित कर मानवता की रक्षा कर सकेंगे।

-ज्ञान चंद पाटनी
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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