राजस्व न्यायालयों के संगठन और संरचना की संवैधानिकता पर खड़े किए सवाल
मण्डल की एकलपीठ ने समीक्षा के लिए हाईकोर्ट को किया रैफर, मण्डल के इतिहास में ऐसा पहली बार
ट्रांसफर प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करते हुए रैफरेंस बनाकर मण्डल के रजिस्ट्रार को हाईकोर्ट को रैफर करने के निर्देश दिए
अजमेर। प्रदेश के राजस्व न्यायालयों के संगठन एवं संरचना की संवैधानिकता पर भी अब सवाल खड़े हो गए हैं। खुद राजस्व मण्डल के न्यायिक सदस्य अविनाश चौधरी की एकलपीठ ने मंगलवार को एक ट्रांसफर प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करते हुए रैफरेंस बनाकर मण्डल के रजिस्ट्रार को हाईकोर्ट को रैफर करने के निर्देश दिए। मण्डल के इतिहास में पहली बार किसी पीठ ने इस पर प्रश्नचिन्ह लगाकर समीक्षा के लिए हाईकोर्ट को प्रस्तुत किया है। इससे पहले हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कोई समीक्षा के लिए प्रश्न प्रस्तुत नहीं किए गए। चौधरी की एकलपीठ ने भरतपुर जिले की सैह तहसील के नगला गांव के प्रार्थी राजेन्द्र पुत्र मंगल जाटव बनाम देवेन्द्र सिंह परमार उप जिला कलक्टर एवं जगदीश पुत्र मंगल जाटव व अन्य द्वारा प्रस्तुत मुंतकिली प्रार्थना पत्र की सुनवाई करते हुए पीठासीन अधिकारी से पैरावाइज टिप्पणी मंगवाने और विपक्षीगण को नोटिस जारी करने के आदेश दिए।
यह बनाया प्रश्न
क्या राजस्थान राज्य के राजस्व न्यायालयों का संगठन एवं संरचना, भारतीय संविधान के मूलभूत तत्व कार्यपालिका व न्यायपालिका के बीच शक्तियों का पृथक्करण एवं न्यायपालिका की स्वतंत्रता के मानकों के अनुरुप है। ऐसे में क्या भू-राजस्व अधिनियम 1956 के अध्याय 3, 4 और 5 व राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 के अध्याय 15 में राजस्व न्यायालयों के संगठन व संरचना संबंधी उपबंध संवैधानिक हैं?
मण्डल में 7 हजार से ज्यादा ट्रांसफर एप्लीकेशन
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि वर्तमान में राजस्व मण्डल में ट्रांसफर एप्लीकेशन के करीब 7 हजार से ज्यादा प्रकरण लम्बित हैं, जबकि हाईकोर्ट में अधीनस्थ न्यायालयों के पीठासीन अधिकारियों के विरुद्ध लम्बित प्रकरण नगण्य हैं। यह भी तब है जब हाईकोर्ट के अधीनस्थ सिविल व दांडिक न्यायालयों की संख्या राजस्व न्यायालयों से कहीं ज्यादा है। इससे आम जनता का राजस्व न्यायालयों के प्रति असंतोष तो प्रतिबिम्बित होता ही है, साथ ही राजस्व न्यायालयों के संस्थानिक ढांचे पर भी सोचने को मजबूर करता है।
कार्यपालिका और न्यायिक शक्तियों का मिश्रण भी समस्या
उन्होंने निर्णय में उल्लेख किया है कि मण्डल में प्रस्तुत होने वाली ट्रांसफर एप्लीकेशन में अधीनस्थ न्यायालय के पीठासीन अधिकारी पर प्रतिपक्षी द्वारा राजनीतिक पहुंच वाला व्यक्ति बताते हुए न्याय की उम्मीद नहीं होने के जो आधार बताए जाते हैं, इस पर गहनता से विचार किया जाए तो इसके पीछे कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्तियों के मिश्रण से ही समस्या उत्पन्न होती है। चूंकि पीठासीन अधिकारियों के पास न्यायिक व प्रशासनिक शक्तियां एक साथ होती हैं।
मण्डल की एलबी परीक्षण के लिए सक्षम नहीं
एकलपीठ ने यह भी टिप्पणी की है कि भू-राजस्व अधिनियम 1956 की धारा 11 में राजस्व मण्डल की एकलपीठ को कोई रैफरेंस मण्डल की लार्जर बैंच को ही भेजने का प्रावधान है, लेकिन मण्डल की लार्जर बैंच किसी उपबंध की संवैधानिकता का परीक्षण करने के लिए सक्षम नहीं है। हाईकोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट ही इसके लिए सक्षम हैं। ऐसी स्थिति में लार्जर बैंच को रैफरेंस भेजने का कोई औचित्य नहीं है। सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 113 के अनुसार कोई भी अधीनस्थ न्यायालय किसी उपबन्ध की संवैधानिकता के संबंध में कोई रैफरेंस हाईकोर्ट को भेज सकते हैं। हालांकि मण्डल प्रशासनिक रूप से हाईकोर्ट के अधीनस्थ नहीं है, लेकिन न्यायिक मामलों में हाईकोर्ट के अधीनस्थ ही माना जाएगा।
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