विश्व जनसंख्या दिवस और जनगणना
यूगोस्लाविया के जागरेख में मातेज गैसकर को पांच अरब की संख्या वाला बच्चा माना गया।
विश्व में तेजी से बढ़ती आबादी और इससे जुड़ी समस्याओं पर ध्यान आकर्षित करन के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से वर्ष 1989 से 11 जुलाई विश्व जनसंख्या दिवस मनाए जाने की घोषणा की गई थी।
विश्व में तेजी से बढ़ती आबादी और इससे जुड़ी समस्याओं पर ध्यान आकर्षित करन के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से वर्ष 1989 से 11 जुलाई विश्व जनसंख्या दिवस मनाए जाने की घोषणा की गई थी। आबादी के अन्तर्गत विशेष नंबर पर जन्में शिशुओं को अन्तरराष्ट्रीय संस्था की ओर से विशेष सम्मान की परम्परा रही है। दरअसल, 11 जुलाई 1987 को तत्कालीन यूगोस्लाविया के जागरेख में मातेज गैसकर को पांच अरब की संख्या वाला बच्चा माना गया। विचार-विमर्श के क्रम में दो वर्ष पश्चात 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाने की परम्परा आरंभ हुई। जनसंख्या दिवस मनाए जाने के साथ-साथ जनगणना का विशिष्ट महत्व हैं जनगणना से किसी भी देश की कमोबेश वास्तविक जनसंख्या का तथ्यात्मक आंकलन किया जाता है। देश की समूची जनसंख्या एवं उसकी जनांकिकीय विशिष्टताओं के प्रतीक रूप में जनगणना की मान्यता है।
इससे शासन-प्रशासन को विशेष रूप से सामाजिक, आर्थिक एवं क्षेत्रीय नियोजन तथा नीति संबंधी निर्णय लेने के लिए आवश्यक सूचनाएं उपलब्ध होती है। दूसरे अर्थों में दस साल के अन्तराल में की जाने वाली जनगणना में समूची जनसंख्या का अगणक एवं आयु, लिंग, भाषा, शिक्षा, रोजगार प्रवास, परिवार का आकार, प्रजननशीलता, आमदनी, व्यवसाय, धर्म एवं जाति के अनुसार उसके वितरण के संदर्भ में व्यापक जानकारी प्राप्त की जाती है। जनगणना से संबंधित तैयारियां आधार वर्ष से तीन वर्ष पहले प्रारंभ की जाती है। मकान सूचीकरण तथा मकानों की गणना परिवार अनुसूची तथा जनगणना का प्रगणन काल इत्यादि विभिन्न कदम निर्धारित समय चक्र के अनुसार उठाए जाते हैं। जनगणना के लिए व्यापक प्रशासन तंत्र की व्यवस्था की जाती है।
भारत में प्राचीन काल में कई सुव्यवस्थित राज्यों में जनगणना की जाती थी। चाणक्य के अर्थशास्त्र ग्र्रंथ में चन्द्रगुप्त मौर्य एवं सम्राट अशोक के शासनकाल में इसके प्रमाण उपलब्ध हैं। इसी प्रकार शेरशाहसूरी तथा मुगल काल के दौरान समय की शासन व्यवस्था और आवश्यकतानुसार जनगणना कार्य प्रचलन में था। ब्रिटिश शासन में 1872 में अलग-अलग समय पर विभिन्न राज्यों में जनगणना की गई। इसमें एकरूपता का अभाव था। इसलिए 1881 से जनगणना का काम विधिवत तौर पर आरंभ हुआ और दस वर्ष के अंतराल पर नियमित रूप से जनगणना की जाने लगी। वर्ष 1931 में भारत में पहली बार जाति धर्म आधार पर की गई जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक किए गए थे। द्वितीय विश्व युद्ध के चलते 1941 में निर्धारित समय पर जनगणना नहीं हो सकी। यूपीए सरकार के समय जातीय आधार पर जनगणना कराने के निर्णय पर काफी बावेला मचा।स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 1951 में पहली जनगणना करवाई गई थी। जनगणना का कार्य दो चरणों में किया जाता है। जनगणना दशक वर्ष के आरंभ से करीब छ: माह पूर्व प्राय: अप्रैल से जून माह की अवधि में राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों में मकान नंबर एवं सूचीकरण का कार्य सम्पन्न किया जाता है।
दूसरे चरण में फरवरी माह में जनगणना की गणना का कार्य होता है। जन्म और मृत्यु संबंधी आंकड़ों के साथ जनगणना से संबंधित सारणियां तैयार कर उनका विश्लेषण किया जाता है। कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी से भारत में दशकीय जनगणना से संबंधित क्रियाकलापों पर विपरीत प्रभाव हुआ है। लेकिन जनगणना का कार्य तो सम्पन्न किया जाना है। स्वाभाविक रूप से इसके समय चक्र में काफी फेरबदल किया जाना है। इस बार की जाने वाली गणना में तथा आंकड़ों में संकलन के लिए मोबाइल एप का विशेष प्रयोग किया जाएगा। जनगणना कार्य की निगरानी और प्रबंधन पोर्टल की व्यवस्था की गई है। जनगणना से संबंधित लगभग 60 प्रतिशत कार्य आॅनलाईन किया जाना है। जनगणना कानून 1948 एवं जनगणना नियम 1990 जनगणना के लिए वैधानिक फ्रेमवर्क उपलब्ध कराता है। नागरिक कानून 1955 तथा नागरिकता नियम 2003 के अन्तर्गत राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) पहली बार 2010 में तैयार किया गया था। इसे आधार कार्ड से जोड़ने के पश्चात 2015 में अपडेट किया गया। केन्द्र सरकार ने गत 24 दिसंबर को जनगणना कार्य की मंजूरी दी। जनगणना कार्य पर 8754-23 करोड़ रुपये तथा राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (असम को छोड़कर) के लिए 3941.45 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।जनगणना कार्य सोलह भाषाओं में किया जाएगा।
जनगणना प्रगणक इकतीस प्रश्नों के माध्यम से हर परिवार के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। लगभग तीस लाख कार्मिकों को इस कार्य में जुटाया जाएगा। जनगणना प्रश्नावली से मकान की स्थिति, पानी, बिजली, शौचालय, टेलीफोन, इंटरनेट, मोबाईल, लेपटॉप, वाहन, रसोई गैस, बैंक खाता इत्यादि सूचनाएं प्राप्त की जाएंगी। इनसे प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण से सामाजिक आर्थिक स्थिति का सहज संकलन हो सकेगा। विश्व में तेजी से बढ़ रही आबादी तथा संसाधनों की उपलब्धता में कमी है, हालात भयावह हो रहे हैं। इसलिए हमें जनसंख्या स्थिरीकरण और स्थायी विकास के लक्ष्य की दिशा में अग्र्रसर होना है। भारत में प्राचीन काल में कई सुव्यवस्थित राज्यों में जनगणना की जाती थी। चाणक्य के अर्थशास्त्र ग्र्रंथ में चन्द्रगुप्त मौर्य एवं सम्राट अशोक के शासनकाल में इसके प्रमाण उपलब्ध हैं। इसी प्रकार शेरशाहसूरी तथा मुगल काल के दौरान समय की शासन व्यवस्था और आवश्यकतानुसार जनगणना कार्य प्रचलन में था। ब्रिटिश शासन में 1872 में अलग-अलग समय पर विभिन्न राज्यों में जनगणना की गई।
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