हर चीज में दिव्यता देखना ही देवी की आराधना
पुराण विशुद्ध ज्ञान का भंडार हैं। ये ज्ञान प्रदान करने वाली कई कथाओं से भरे हैं। पुराणों में दुर्गा की शक्ति का चित्रण किया गया है।
देवी की तलवार ज्ञान की तलवार है। यह हमारे अज्ञान के छह मूल तत्वों इच्छा, क्रोध, लोभ, मोह, अभिमान और ईर्ष्या को अलग करती है। जब आत्म.ज्ञान का प्रकाश प्रकट होता है, तो अज्ञान का अंधेरा स्वाभाविक रूप से छंट जाता है। देवी जिन राक्षसों को मारती हैं, वे हमारी नकारात्मक प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन राक्षसी ताकतों को हमारे भीतर से खत्म करने में मदद के लिए दैवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता है। ऐसा कहा जाता है कि दुर्गा सभी देवताओं की दिव्य शक्तियों की संयुक्त ऊर्जा से प्रकट हुई थीं। यहां इसका अर्थ यह है कि हमें गहराई तक जड़ें जमा चुकी हमारी नकारात्मक प्रवृत्तियों को हराने में सक्षम होना होगा और इनकी जड़ों, आत्म-अज्ञान को दूर करना होगा, तभी हम अपने सभी सकारात्मक गुणों को आत्मसात कर पाएंगे। विजयदशमी बुराई पर अच्छाई की,अधर्म पर धर्म की अंतिम जीत का प्रतीक है। उस जीत के लिए हमें ईश्वर की कृपा चाहिए। अपने जीवन में ईश्वर की कृपा लाने के लिए हमें समाज को वापस देने की प्रवृत्ति को जगाने की जरूरत है। हमें सभी में ईश्वर को देखने और दूसरों की करुणापूर्वक सेवा करने की प्रवृत्ति जागृत करनी चाहिए। नवरात्रि के दौरान हम न केवल देवी की पूजा करते हैं, बल्कि ब्रह्मांड में सभी अचेतन वस्तुओं को भी दिव्य के रूप में देखते हैं। पूजा के लिए पत्थर, लकड़ी,बर्तन,हल, चाकू,यहां तक कि हथियार भी रखे जाते हैं। वास्तव में मानव जाति को हमेशा सब कुछ दिव्य रूप में देखने के इस दृष्टिकोण को बनाए रखना चाहिए। यदि हम ऐसा कर सकते हैं, तो हम कभी भी संघर्ष, युद्ध और अन्य प्रकार की हिंसा से ग्रस्त नहीं होंगे,महामारी से भी नहीं।
ईश्वर की रचना में हर चीज का एक लाभकारी उद्देश्य होता है। जब हम वस्तुओं का दुरुपयोग करते हैं, तो हम विनाश लाते हैं। पसंद की स्वतंत्रता, सेवा या विनाश में संलग्न होना, हममें से प्रत्येक के हाथ में है।
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