अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस : आइसलैंड है दुनिया में महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित देश

आखिर कैसे ओर कब रुकेगी महिलाओं के खिलाफ हिंसा?

अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस : आइसलैंड है दुनिया में महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित देश

महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित देशों की लिस्ट में आइसलैंड, फिनलैंड, स्वीडन,नॉर्वे, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड कनाडा,न्यूजीलैंड , नीदरलैंड्स, जर्मनी, लक्समबर्ग, ऑस्ट्रिया प्रमुख है। इन्हें सुरक्षा, लैंगिक समानता, और जीवन स्तर के आधार पर महिलाओं के लिए सुरक्षित माना गया है।

कोटा। देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है। महिलाओं को  सुरक्षित और गरिमापूर्ण जीवन देने में नाकाम हो रहे हैं। महिलाओं पर होने वाली हिंसा को रोकने के लिए प्रतिवर्ष आज के दिन दुनिया भर में अंतरराष्टÑीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाया जाता है। महिला सुरक्षा को लेकर आदर्शवादी बातें की जाती हैं। लेकिन साल दर साल हमारे देश में महिलाएं असुरक्षित होती जा रही हैं। महिलाओं के प्रति हिंसा के मामलों में कमी नहीं हो रही है। दुनिया भर में महिलाएं किसी ना किसी रूप में हिंसा की शिकार हो रही है। भारत में महिलाओं पर हिंसा आम बात है। आए दिन महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा की वारदातें सुर्खियां बनती रहती है। छोटी बच्चियों से लेकर उम्रदराज महिलाएं खौफनाक घटनाओं की शिकार होती रहती है। आजादी के 75 साल बाद भी महिलाएं अपने अधिकारों ,शिक्षा, स्वास्थ्य तथा बराबरी से कोसों दूर है। ऐसे में भारत में हिंसा रहित महिलाओं की दुनिया एक ख्वाब प्रतीत होती है।  जब हम महिलाओं के लिए सुरक्षित देशों की बात करते हैं तो भारत का स्थान उसमें  नजर नहीं आता है। हालांकि महिलाओं के लिए सभी देश सुरक्षित नहीं है। लेकिन ऐसे कई देश है जो महिलाओं के लिए सुरक्षित कहे जाते है।  महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित देशों की लिस्ट में आइसलैंड, फिनलैंड, स्वीडन,नॉर्वे, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, कनाडा,न्यूजीलैंड, नीदरलैंड्स, जर्मनी, लक्समबर्ग, आॅस्ट्रिया प्रमुख है। इन्हें सुरक्षा, लैंगिक समानता, और जीवन स्तर के आधार पर महिलाओं के लिए सुरक्षित माना गया है। जहां रात्रि में भी महिलाएं अकेली घूम सकती है या अजनबियों से बात कर सकती है। आइसलैंड दुनिया का सबसे सुरक्षित देश हैं। यहां कहीं भी चले जाए सुरक्षित महसूस करेंगे। लैंगिक समानता में भी आइसलैंड सबसे आगे है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरेम के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स के अनुसार इसे दुनिया में सबसे अधिक लिंग समानता वाले देश का दर्जा दिया गया है। आइसलैंड ओईसीडी देशों में सबसे कम अपराध दरों में से एक है। यह इतना सुरक्षित है कि पुलिस फायरआर्म्स भी नहीं रखती है। यहां महिलाओं के साथ सम्मान और सम्मानजनक व्यवहार किया जाता है। यहां सभी को उचित आर्थिक अवसर प्राप्त है। यहां समान काम के लिए महिलाओं और पुरूषों को समान रूप से भुगतान किया जाता है।  फिनलैंड में भी अपराध लगभग न के बराबर है। यही कारण है कि द वीमेन पीस एंड सिक्योरिटी इंडेक्स ने फिनलैंड की महिलाओं के लिए सबसे अच्छे देशों में से एक माना है। आज आधुनिक दुनिया में महिलाएं सुरक्षित रहना और सुरक्षित दुनिया चाहती है। हमारे यहां महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा में कमी क्यों नहीं आ रही है। क्यों नहीं हम अपने देश में महिलाओं को सुरक्षित महौल दे पा रहे हैं। इस बारे में दैनिक नवज्योति ने शहर के प्रबुद्धजनों से बात की।

सबसे पहली बात हमारे यहां शिक्षा की कमी है। जब तक सभी शिक्षित नहीं होगें दिमाग डिवेलप नहीं होगा। शिक्षित हो जाएगें तो नजरिए में भी परिवर्तन आएगा। क्या सोचते हैं, क्या करते हैं, किस नजरिए से देखते है सभी में चेंज हो जाएगा। दूसरा, आजकल हर स्कूल में सेक्स एज्यूकेशन को अनिवार्य किया जाना चाहिए। गुड टच, बैड टच की जानकारी स्कूल में दी जाए। इससे भी समाज में सुधार कर सकते है।
- डॉ. जावेद अख्तर, आॅर्थोपेडिक सर्जन

देश में कानून कठोर नहीं बने हैं। सबको पता है क्या होगा? पहली बार तो फैसला होगा नहीं अगर हुआ भी तो 5-7 साल की सजा होगी। नियम कठोर नहीं होने से किसी को डर नहीं है। पुरूष स्वयं को शक्तिशाली समझते हैं कि महिलाओं पर हमारा पूरा हक है। महिलाओं में भी  जागरूकता की कमी है। उन्हें लगता है कि हम हिंसा के खिलाफ आवाज उठाएंगें तो हमारी बदनामी होगी। महिलाएं भी हिंसा के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाती है। जस्टिस में ही 30-35 साल निकल जाएंगे। अगर हार्ड एंड फास्ट फैसला मिल जाए तो इंसान में भय रहेगा। कोर्ट केस ही कई साल चलते है महिलाएं उसमें फंसना नहीं चाहती है। कानून भी बने हैं पर महिलाओं के हित में नहीं है।
- राधिका अग्रवाल, अध्यक्ष, जेसीआई कोटा शक्ति

भारत में दो तरह का कल्चर है ग्रामीण परिवेश की महिलाएं और शहरी क्षेत्र की महिलाएं। ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षा का अभाव है। तब जब तक हम हमारे अधिकारों को नहीं पहचानते उन चीजों को फॉलो करते है जो हमारी परिपाटी में चली आ रही है। चाहे वो सही हो या गलत हो। जहां तक शिक्षित महिलाओं का सवाल है वहां पर घरेलू हिंसा ऐसी होती नहीं है जिस स्तर पर सोचते हैं लेकिन वहां पर कनसेन्ट अलग-अलग हो सकते है। जब कनसेन्ट मैच नहीं होती है तो किसी पॉइन्ट पर आकर हम उसे डिससेटिस्फैक्शन बोल सकते है। डिससेटिस्फैक्शन कभी-कभी हिंसा का रूप ले भी सकता हैं और नहीं भी ले सकता है। अगर शिक्षा के क्षेत्र में थोड़ा और काम किया जाए और म्यूचुअल कन्सर्न सिस्टम बने न्यूक्लियर फैमिली की जगह यूनाइटेड फैमिली में शिफ्ट हो जाए तो ये चीजें कम हो सकती है।
-प्रवीण जैन, उपाध्यक्ष, कोटा यूथ सोसाइटी

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महिलाओं के खिलाफ हिंसा सभी देशों में होती है। एक घटना होती है उस पर कितने दिन तक मीडिया बात करता है, कितने दिन तक उस पर चर्चा होती है। कितने दिन तक वह सुर्खियों में रहता है। वह उसके प्रचार को बहुत ज्यादा बढ़ा देता है। हमारा फोकस नेगेटिव घटनाओं पर है तो वही घटनाएं हमें आस-पास मिलेगी। अगर हम अपना फोकस चेंज कर लें नेगेटिव घटनाएं जो हो रही हैं उनकों तूल देना बंद कर दें। कहीं कोई हिंसा होती है तो उस पर पुलिस का एक्शन स्ट्रांग होना चाहिए उस पर बात कम होनी चाहिए। जब तक हमारा दृष्टिकोण नही बदलेगा भारत का दुनिया में  प्रोजेक्शन ऐसे ही होता रहेगा। आज की तारीख में दुनिया में इमेज भारत की ऐसी है कि यहां पर महिला सुरक्षित नहीं है। अमेरिका जैसे देश में महिलाओं को वोटिंग का अधिकार काफी समय बाद मिला जबकि हमारे देश में महिलाओं को काफी स्ट्रॉग पोजिशन मिली। इतिहास देखें तो हिन्दुस्तान वह देश है जहां पर महिला, पुरूष के बराबर होती थी। घर में भी बच्चों की परवरिश ऐसी होनी चाहिए जहां स्त्री और पुरूष का भेद नहीं हो। बेटी को तो सशक्त बनाए उसे दुनिया से लड़ने की ताकत दें लेकिन लड़के को लड़की का सम्मान करना सिखाएं।
-वैशाली भार्गव, अध्यक्ष, रोटरी क्लब कोटा

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भारत में महिला की छवि नाजुक वाली बनी हुई है। हर चीज में उसे कमजोर दृष्टि से देखा जाता है। हम समानता की बात करते हैं। लड़का-लड़की के अधिकारों की बात करते हैं। शारीरिक दृष्टि से भी उनको समान मानें। जब महिला किसी भी बात मेंं नहीं हट रही हैं तो फिर यह नजरिया कि तुम रहने दो तुम नहीं कर सकती। इस मानसिकता से ऊपर उठना होगा। वर्तमान में समय और परिस्थिाति के अनुसार अबला नारी वाला शब्द बिल्कुल हटाना होगा। पुरूष मानसिकता रहती है कि अकेली महिला जा रही है इसे काबू में कर सकते हैं। भारत में महिला की भी यह मानसिकता बन गई है कि अकेले रात में शायद मुझे नहीं जाना चाहिए। महिला इन सब चीजों से स्वयं निकलकर बाहर आएगी, अपने अंदर हिम्मत लाएंगी तो सामने वाले को भी पता रहेगा कि महिला भी आज क्या बन चुकी है। वह सशक्त नारी है। प्राचीन संस्कारों में देखें तो नारी को देवी का रूप माना गया है। अगर उसके ऊपर अत्याचार होता है तो चंडी का रूप भी धारण कर लेती है। कोई घटना होती है तो इज्जत की बात सिर्फ महिलाओं के लिए क्यों सोचते हैं। जब कोई पुरूष किसी महिला से बलात्कार करता हैं तो क्या उसके घर की इज्जत पर आंच नहीं आती । उस घर की इज्जत की भी धज्जियां उड़ जाती है। महिलाएं वर्तमान में धीरे-धीरे सशक्त हो गई है। लेकिन समाज की मानसिकता को अभी बदलने में समय लगेगा।
-प्रीति अग्रवाल, अध्यक्ष, इनरव्हील क्लब कोटा

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महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कोई विशेष वृद्धि परिलक्षित नहीं हो रही है। मूल रूप से यह सामाजिक इश्यू है। अमूमन प्रयास पुलिस के पूरे रहते है कि सामाजिक इश्यू पर त्वरित कार्रवाई करें। पुलिस इसमें जरूर करती है। रेंज में देखें पोक्सो के जितने भी पुराने केस है उनका तथा महिलाओं से संबंधित अपराध पर जल्दी निपटारा किया जा रहा है। जहां तक मेरा मानना है भारत में महिलाओं का सम्मान बहुत ज्यादा है। ऐसा नहीं है कि भारत में महिलाओं के प्रति बहुत ज्यादा अपराध होते हैं दूसरे देशों में नहीं होते भारत में ज्यादा होते है यह कहना गलत है।
-प्रसन्न कुमार खमेसरा, आईजी रेंज, कोटा

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