डॉ. वेदप्रताप वैदिक: हिन्दी का लहराया था परचम

अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिन्दी के क्षेत्र में लंबे समय तक काम किया

डॉ. वेदप्रताप वैदिक: हिन्दी का लहराया था परचम

डॉ. वैदिक एक ऐसे जीवन की दास्तान है जिन्होंने अपने जीवन को बिन्दु से सिन्धु बनाया है। उनके जीवन की दास्तान को पढ़ते हुए जीवन के बारे में एक नई सोच पैदा होती है। जीवन सभी जीते हैं पर सार्थक जीवन जीने की कला बहुत कम व्यक्ति जान पाते हैं।

पत्रकारिता के एक महान् पुरोधा पुरुष, मजबूत कलम एवं निर्भीक वैचारिक क्रांति के सूत्रधार, उत्कृष्ट राष्ट्रवादी, हिन्दी सेवी, ‘भाषा’ के मुख्य सम्पादक, नवभारत टाइम्स के सम्पादक, डॉ. वेदप्रताप वैदिक अब हमारे बीच नहीं रहे। मंगलवार सुबह उनका निधन 78 वर्ष की उम्र में बाथरूम में गिरने की वजह से हो गया। एक संभावनाओं भरा हिन्दी पत्रकारिता का सफर ठहर गया, उनका निधन न केवल पत्रकारिता एवं हिन्दी के लिए बल्कि भारत की राष्टÑवादी सोच के लिए एक गहरा आघात है, अपूरणीय क्षति है। वैदिक का जीवन सफर आदर्शों एवं मूल्यों की पत्रकारिता की ऊंची मीनार है। उनका निधन एक युग की समाप्ति है। वे चित्रता में मित्रता के प्रतीक थे तो गहन मानवीय चेतना के चितेरे जुझारु, निडर, साहसिक एवं प्रखर व्यक्तित्व थे। वे एक ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व थे, जिन्हें पत्रकारिता एवं हिन्दी का यशस्वी योद्धा माना जाता है। उनके परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री हैं। उनकी पत्नी का पहले ही निधन हो गया था।

डॉ. वैदिक ने पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिन्दी के क्षेत्र में लंबे समय तक काम किया। डॉ. वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को इंदौर में हुआ था। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार होने के साथ ही उनकी रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा पर पकड़ रही। डॉ. वैदिक ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के ‘स्कूल आॅफ इंटरनेशनल स्टडीज’ से अंतरराष्टÑीय राजनीति में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। वे भारत के ऐसे पहले विद्वान थे, जिन्होंने अपना अंतरराष्टÑीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा। उन्होंने अपनी पीएचडी के शोधकार्य के दौरान न्यूयॉर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी, मॉस्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल ऑफ ओरिंयटल एंड अफ्रीकन स्टडीज’ और अफगानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया। मेरा सौभाग्य रहा कि अणुव्रत लेखक मंच का राष्ट्रीय संयोजक होने के दौरान उन्हें अणुव्रत लेखक पुरस्कार के लिए चुना गया और महान् आचार्य श्री महाश्रमण के सान्निध्य में 17 एवं 18 अक्टूबर, 2021 को भीलवाड़ा (राजस्थान) में उन्हें प्रदत्त किया गया। दो दिन तक उनके साथ रहने एवं वहां से राजसमंद में अणुव्रत विश्व भारती के अणुव्रत निलयम जाने एवं अवलोकन करने का अवसर मिला। रतलाम ( मध्यप्रदेश ) के राजनेता एवं पत्रकार चैतन्य कश्यप के दिल्ली केन्द्र हेली रोड पर मुझे कुछ समय कार्य करने का अवसर मिला, जहां प्राय: हर दिन डॉ. वैदिक से मुलाकात एवं चर्चा का अवसर मिलता रहा। 

डॉ. वैदिक एक ऐसे जीवन की दास्तान है जिन्होंने अपने जीवन को बिन्दु से सिन्धु बनाया है। उनके जीवन की दास्तान को पढ़ते हुए जीवन के बारे में एक नई सोच पैदा होती है। जीवन सभी जीते हैं पर सार्थक जीवन जीने की कला बहुत कम व्यक्ति जान पाते हैं। डॉ. वैदिक के जीवन कथानक की प्रस्तुति को देखते हुए सुखद आश्चर्य होता है एवं प्रेरणा मिलती है कि किस तरह से दूषित राजनीतिक-सामाजिक परिवेश एवं आधुनिक युग के संकुचित दृष्टिकोण वाले समाज में जमीन से जुड़कर आदर्श जीवन जिया जा सकता है, आदर्श स्थापित किया जा सकता है। और उन आदर्शों के माध्यम से देश की पत्रकारिता, पारिवारिक, सामाजिक, राष्टÑीय और वैयक्तिक जीवन की अनेक सार्थक दिशाएं उद्घाटित की जा सकती हैं। उन्होंने व्यापक संदर्भों में जीवन के सार्थक आयामों को प्रकट किया है, वे आदर्श जीवन का एक अनुकरणीय उदाहरण हैं, मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता, समाजसेवा एवं राजनीति को समर्पित एक लोककर्मी का जीवन वृत्त है। उनके जीवन से कुछ नया करने, कुछ मौलिक सोचने, पत्रकारिता एवं सामाजिक को मूल्य प्रेरित बनाने, सेवा का संसार रचने, सद्प्रवृत्तियों को जागृत करने की प्रेरणा मिलती रहेगी।

डॉ. वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है, जिन्होंने हिन्दी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया, हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डॉ. राममनोहर लोहिया की महान परंपरा को आगे बढ़ाने वाले योद्धाओं में वैदिक का नाम अग्रणी है। पिछले 60 वर्षों में हजारों लेख और भाषण उन्हें लिखे। वे लगभग 10 वर्षों तक पीटीआई भाषा (हिन्दी समाचार समिति) के संस्थापक-संपादक और उसके पहले नवभारत टाइम्स के संपादक (विचारक) रहे थे। फिलहाल राष्टÑीय समाचार पत्रों तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग 200 समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्टÑीय राजनीति पर डॉ. वैदिक के लेख हर दिन प्रकाशित होते रहते थे। वे साल 2014 में खूंखार आतंकी हाफिज सईद से साक्षात्कार से काफी चर्चा में रहे। मुंबई हमलों के सरगना और लश्करे तैय्यबा के आतंकवादी हाफिज सईद से लिये गये इस इंटरव्यू के बाद पूरे देश में काफी हंगामा हुआ और दो सांसदों ने उन्हें गिरफ्तार करके उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने की मांग की थी।  डॉ. वैदिक ने करीब चार साल तक दिल्ली में राजनीति शास्त्र का अध्यापन भी किया। उनकी रुचि दर्शन शास्त्र और राजनीति शास्त्र में भी थी।       

-ललित गर्ग
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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