सतरंगी सियासत

सतरंगी सियासत

नए संसद भवन का लोकार्पण भारतीय लोकतंत्र के लिए मील का पत्थर बन गया। आजादी के अमृतकाल में नई संसद का बनना अपने आप में इतिहास। लेकिन कांग्रेस समेत डेढ़ दर्जन विपक्षी दलों ने यहां भी पीएम मोदी को नहीं छोड़ा।

यहां भी रार!
नए संसद भवन का लोकार्पण भारतीय लोकतंत्र के लिए मील का पत्थर बन गया। आजादी के अमृतकाल में नई संसद का बनना अपने आप में इतिहास। लेकिन कांग्रेस समेत डेढ़ दर्जन विपक्षी दलों ने यहां भी पीएम मोदी को नहीं छोड़ा। कहा, पीएम क्यों? लोकार्पण राष्ट्रपति से क्यों नहीं करवाया? कांग्रेस को शुरू से नई संसद पर आपत्ति। मामला कोर्ट में भी पहुंचा। लेकिन उसने तमाम आपत्तियों को खारिज कर दिया। असल में, माजरा कुछ और। पुराना संसद भवन अंग्रेजों द्वारा बनाया गया। लेकिन अब भविष्य की आवश्यकताओं के लिहाज से मुफिद नहीं। सरकार का यही मजबूत तर्क। फिर साल 2026 में देश की तमाम विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों का पुनर्गठन प्रस्तावित। सो, दोनों सदनों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। उस लिहाज से बड़ा संसद भवन चाहिए। फिर पीएम मोदी के नाम यह इमारत दशकों तक रहने वाली। सो, कांग्रेस चुप कैसे रहेगी?

झलक तो नहीं?
वसुंधरा राजे हालिया संपन्न प्रदेश भाजपा कार्यसमिति की बैठक से नदारद रहीं। वैसे प्रदेश संगठन में नेतृत्व परिवर्तन हो चुका। सो, अब क्या? सो, राजे नाराज या बात कुछ और? लेकिन भाजपा के लिए यह शुभ संकेत नहीं। क्योंकि चुनाव नजदीक और सभी का एकजुटता के साथ चुनावी मैदान में उतरना अहम। फिर बातें तो होंगी ही। अब जल्द ही पीएम मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा के राजस्थान दौरे बढ़ने वाले। जबकि सीपी जोशी प्रदेश के हर कोने को नापने में लगे हुए। आखिर उन्हें भी तो नेतृत्व से टास्क मिला होगा। लेकिन एक सवाल। भाजपा नेतृत्व राजे को देख रहा या राजे अभी इंतजार कर रहीं? क्योंकि भाजपा में सीएम पद के आधा दर्जन से ज्यादा दावेदार अपनी दावेदारी लेकर घूम रहे। प्रदेश में भी और नई दिल्ली के भी चककर काट रहे। ऐसी चर्चा। इनमें से नंबर किसका लगेगा?

यही तो कांग्रेस!
कांग्रेस आलाकमान के लिए इधर कुआं उधर खाई वाले हालात। दिल्ली में ह्यआपह्ण की सरकार के मामले में प्रदेश इकाई की मानें या संप्रग गठबंधन की सोचे। इधर आम चुनाव पर नजर, उधर दिल्ली इकाई की केजरीवाल पर घोर आपत्ति। डीपीसीसी की राय। केजरीवाल का साथ नहीं दे। ह्यआपह्ण ने ही कांग्रेस का वोट खा लिया। यही मौका। फिर नहीं आएगा। केन्द्र ने बिल्कुल ठीक किया। ह्यआपह्ण पर अंकुश जरुरी। असल में, कांग्रेस केजरीवाल को झटका देने की तैयारी में। मोदी सरकार द्वारा लाए जाने वाले अध्यादेश का राज्यसभा में समर्थन नहीं करेगी। ऐसा उसके बयानों और संकेतों से लग रहा। दिल्ली के कांग्रेस नेताओं का केजरीवाल के खिलाफ आलाकमान से आग्रह। आप को कोई सहयोग नहीं करें। इधर, केसी वेणुगोपाल का ट्वीट- देखेंगे, सभी से राय लेंगे। पार्टी जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं करेगी। यही तो कांग्रेस। ऐसे ही उलझाकर रखती।

शुरूआत!
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार में रार की शुरूआत हो चुकी। एमबी पाटिल कह रहे। सिद्धारमैया पांच साल सीएम रहेंगे। जबकि डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के भाई डीके सुरेश ने इस पर आपत्ति जताई। मतलब सिर मुंडाते ही ओले पड़ने की नौतब। यही हाल बीते साढ़े चार साल से राजस्थान और छत्तीसगढ़ में। कर्नाटक में यह रार कहां जाकर रूकेगी। फिलहाल कहना मुश्किल। डीके शिवकुमार चुप रहेंगे। इसमें संदेह। उनके अड़ने से ही केवल एक डिप्टी सीएम रखा गया। उन्होंने सीएम का नाम घोषित करने का कार्यक्रम पांच दिन लंबा खिंचवा दिया। आलाकमान से यह बात मनवाने में भी सफल रहे कि फिलहाल वही कर्नाटक के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने रहेंगे। उधर, सीएम सिद्धारमैया की आयु 72 हो चुकी। लग रहा, उन्हें अगले आम चुनाव तक पार्टी आलाकमान कुर्सी पर बैठाए रखेगा। उसके बाद डीके वायदा याद दिलाते रहेंगे। और यदि नहीं माना गया तो?

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पाला तय!
नए संसद भवन का लोकार्पण हो गया। पीएम मोदी ने इसे भव्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने इसमें आम जनता को भी भागीदार बनाया। जब खुद मोदी ने एक विडियो जारी किया। कहा, आप अपनी आवाज में इसे सोशल मीडिया पर साझा करें। कुछ को वह स्वयं भी साझा करेंगे। सो, लागों ने जमकर इसे शेयर किया। हां, मोदी सरकार ने इसे देश के लोकतंत्र, भारत की पहचान, संस्कृति एवं गुलामी के चिन्हों से आजादी से जोड़ा। वहीं, विपक्ष भी आपत्ति जताने से बाज नहीं आया। पूछा, पीएम ही क्यों, आदिवासी महिला राष्ट्रपति से नए संसद भवन का लोकार्पण क्यों नहीं करवाया गया? सो, करीब 20 दलों ने कार्यक्रम का बहिष्कार किया। इसके साथ ही मानो अगले आम चुनाव के लिए पक्ष एवं विपक्ष के बीच पाला खिंच गया। हां, कुछ क्षेत्रीय दल ऐसे भी। जो इस विवाद में तटस्थ रहे।

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वहीं, पहुंच गए!  
पाकिस्तान में सेना का शिकंजा लगातार कसता जा रहा। पूर्व पीएम इमरान खान की पीटीआई के कार्यकर्ता सेना के खिलाफ सड़कों पर क्या उतरे। सेना सफाई अभियान में जुट गई। शायद इमरान खान को इसका इलहाम नहीं रहा होगा। अब उनके खास सिपहसालार भी एक-एक करके पीटीआई छोड़ रहे। कुछ तो राजनीति को ही अलविदा कह रहे। इधर, इमरान का दावा। सब कुछ सेना के दबाव में हो रहा। वैसे, सरकार के जरिए सेना ने उन्हें आॅफर दिया। लंदन या दुबई चले जाएं। लेकिन देश छोड़ना होगा। जिससे इमरान ने इनकार कर दिया। अब तो जेल ही बची। क्योंकि उन पर आर्मी एक्ट के तहत मुकदमा चलेगा। सो, पाक में भले ही शाहबाज शरीफ की सरकार। लेकिन पूरी व्यवस्था पर नियंत्रण केवल पाक सेना का। मतलब वहीं आ पहुंचे। जहां से कभी शुरूआत हुई थी। फिर काहे का संविधान, काहे का लोकतंत्र?

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काश, मौजूद रहते!
भले ही राजनीतिक कारणों से 20 विपक्षी दलों ने देश के नए संसद भवन के लोकार्पण समारोह का बहिष्कार किया हो। लेकिन समारोह इतना भव्य एवं ऐतिहासिक रहा कि उनकी कमी सभी को अखरी। वैसे यह किसी नेता या सरकार का कार्यक्रम नहीं। बल्कि जनभावना का प्रकटीकरण। जिसमें जनता की भी अपनी भागीदारी। काश, ऐसे मौके पर तमाम राजनीतिक दल मौजूद रहते। क्योंकि समारोह में समाज जीवन से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों के कई दिग्गज जुटे थे। यहां तक कि विदेशों के राजदूत एवं राजनयिक भी। नहीं थे तो विपक्ष के नेता। खासकर प्रमुख विपक्षी कांग्रेस के। न पूर्व पीएम मनमोहन सिंह, न कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी। भारत में हर विचार को तवज्जो दी जाती रही। सो, वामपंथियों का भी ऐसे अवसर पर नदारद रहना, थोड़ा असहज करने वाला। आखिर संसद देश की 140 करोड़ की जनता का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था।

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