अगर आपको है हर समय दूसरों से असुरक्षा, हर व्यक्ति पर शक तो आप हो सकते हैं सिजोफ्रेनिया के शिकार
वर्ल्ड सिजोफ्रेनिया डे आज, एक प्रकार की मानसिक बीमारी है सिजोफ्रेनिया, हर 300 में से एक व्यक्ति है इसका शिकार
सिजोफ्रेनिया के इलाज में सिर्फ दवाइयां ही नहीं बल्कि आस पास के लोगों की मदद भी बहुत जरूरी है।
जयपुर। अगर कोई व्यक्ति बिना किसी वजह हर बात या व्यक्ति पर शक करता है और अपनी दुनिया में खोया रहता है। वह ऐसी चीजे देख या सुन सकता है, जो वास्तव में होती ही नहीं हैं। उसे हमेशा यही लगता है कि कोई उसके खिलाफ साजिश कर रहा है या उसे नुकसान पहुंचाना चाहता है, तो सावधान हो जाएं, यह सिजोफ्रेनिया बीमारी के लक्षण हैं, जोकि एक मनोरोग है।
यह बीमारी हर 300 में से एक व्यक्ति को हो सकती है। सिजोफ्रेनिया के इलाज में सिर्फ दवाइयां ही नहीं बल्कि आस पास के लोगों की मदद भी बहुत जरूरी है। हालांकि जागरूकता के अभाव में घर के सदस्य भी इसे बीमारी न मानकर झाड़फूंक कराने लगते हैं। इससे रोगी की हालत और खराब हो जाती है। ज्यादातर मामलों में बीमारी 16 से 30 वर्ष की उम्र में ही हो जाती है और धीरे-धीरे पीड़ित हर बात और हर व्यक्ति पर शक करने लगता है।
ये हैं लक्षण
• दूसरों पर शक करना
• काल्पनिक बातें सुनाई देना और दृश्य दिखाई देना।
• डरे हुए या अकेले में रहना पसंद करना।
• थोड़ी-थोड़ी देर में मूड बदलना।
• हिंसक व्यवहार।
• अवसाद के लक्षण दिखना।
• शरीरिक सक्रियता प्रभावित होना और सुस्त रहना।
• भ्रम की स्थिति में रहना और अजीब चीजें महसूस करना जबकि इसमें कुछ भी सच नहीं होता।
समय पर पहचान और अपनों के प्यार से इलाज
वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. अखिलेश जैन ने बताया कि इस बीमारी की समय पर पहचान होने पर दवाओं व व्यावहारिक थैरेपी से नियंत्रित किया जा सकता है। नशे के सेवन बंद कर व तनाव से दूर रहकर भी इसमें बहुत राहत पाई जा सकती है। इसका कोई सटीक मेडिकल टेस्ट नहीं है। इसलिए चिकित्सक रोगी की केस हिस्ट्री, मानसिक स्थिति और लक्षणों के आधार पर इलाज करते हैं। परिवार का सहयोग इस बीमारी को नियंत्रित करने में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। मरीज के परिजन, दोस्त उसे भावनात्मक रूप से सहयोग करें। साथ ही एंटी साइकोटिक दवाओं का इसके इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। ईसीटी थैरेपी, काउंसलिंग आदि भी इसके इलाज में अहम है।
मरीज पर भरोसा कर उसे आत्मनिर्भर बनाएं
वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सुनील शर्मा ने बताया कि इस बीमारी में मरीज पर भरोसा करते हुए उसे धीरे धीरे आत्मनिर्भर बनाना चाहिए जिससे वह खुद अपनी सोच पर नियंत्रण पा सके। उसके साथ बहस न करें, उसका ध्यान मनोरंजक गतिविधियों में बंटाएं। इस तरह के आपसी सहयोग से इस बीमारी का इलाज काफी आसान हो जाता है।
Comment List