12 साल बाद भी बाघों से आबाद नहीं हो सका मुकुंदरा

विश्व बाघ दिवस कल: मुकुंदरा ने खो दिए सात टाइगर

12 साल बाद भी बाघों से आबाद नहीं हो सका मुकुंदरा

एक दशक से उपेक्षा का दंश झेल रहा एमएचटीआर ।

कोटा। टाइगर रिजर्व घोषित होने के 12 साल बाद भी मुकुंदरा आबाद नहीं हो सका। जबकि, रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व 2 साल में ही 5 बाघों से आबाद हो गया। अफसरों की निष्क्रियता से मुकुंदरा अब तक 7 टाइगर खो चुका है। वर्तमान में दो बाघ के भरोसे अपना वजूद बचाने को जूझ रहा है। हैरानी की बात यह है, एनटीसीए से मुकुंदरा में दो बाघिन और एक बाघ लाने की परमिशन मिल चुकी है, इसके बावजूद वन अधिकारी एक साल बाद भी नहीं ला सके। विशेषज्ञों का तर्क है, मुकुंदरा में अब तक जो अधिकारी रहे उनमें जंगल को पनपाने की इच्छा शक्ति का अभाव रहा है। जिसका नतीजा यह रहा वर्ष 2020 में बाघों की मौत सिलसिला शुरू हुआ, जो 5 बाघों की मौत के साथ थमा। इसी बीच मुकुंदरा का पहला टाइगर एमटी-1 जंगल से अचानक कहीं गायब हो गया। जिसका आज तक कोई सुराग नहीं लग सका।

एक साल में ही 5 बाघों की मौत, 1 लापता
मुकुंदरा में वर्ष 2020 में बाघों की मौत का सिलसिला शुरू हुआ। बाघ एमटी-1 दरा के 82 हैक्टेयर एनक्लोजर से 20 अगस्त 2020 को अचानक गायब हो गया। जिसका आज तक पता नहीं चल सका। विभाग उसे अब भी लापता मान रहा है। जबकि, विशेषज्ञों के अनुसार वह जिंदा नहीं है। इसी तरह बाघ एमटी-3 की 23 जुलाई 2020 को बीमारी के कारण मौत हो गई। इसके बाद 12 दिन बाद 3 अगस्त को बाघिन एमटी-2 की भी मौत हो गई। जबकि, 6 माह पहले ही उसने 2 शावकों को जन्म दिया था, जो भी अकाल मृत्यु का शिकार हो गए। इस तरह एक ही वर्ष में 6 बाघ मुकुंदरा ने खो दिए। 

रिजर्व बनने के 5 साल बाद मिला पहला टाइगर
9 अप्रेल 2013 को टाइगर रिजर्व घोषित किए जाने के बाद मुकुंदरा को पहला टाइगर मिलने में ही 5 साल लगे थे। वर्ष 2018 में बाघ एमटी-1 को रामगढ़ से शिफ्ट किया गया था। इन पांच सालों में अधिकारियों ने बाघ लाने की कोशिश नहीं की। जब एमटी-1 खुद रणथम्भौर से निकलकर रामगढ़ पहुंचा तो ट्रैंकुलाइज कर एमएचटीआर में छोड़ा गया था। जबकि, इसके ठीक उलट जुलाई 2022 में रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व नोटिफाइड हुआ और इसी वर्ष में बाघ आरवीटीआर-1 के लिए बाघिन आरवीटीआर-2 को शिफ्ट कर दिया गया। बाघ लाने की यह फुर्ति मुकुंदरा के लिए नहीं की गई।

रिलोकेट के लिए बने अलग टीम
गांवों को रीलोकेट करने का काम डीसीएफ के पास रहता है, लेकिन उनके पास पहले से ही रिजर्व के कई काम होते हैं, जिससे गांवों के रिलोकेशन के काम में देरी हो जाती है। इसके लिए पूरी अलग टीम सरकार को बनानी चाहिए। जिससे लोगों का रिलोकेशन जल्द से जल्द हो सके। साथ ही ग्रामीणों के साथ चौपाल लगाकर सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश होनी चाहिए।
- रवि नागर, वाइल्ड लाइफ रिसर्चर

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राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव
मुकुंदरा के आबाद न होने में राजनेतिक इच्छा शक्ति का अभाव है। वर्ष 2020 के बाद से बाघों को बसाने की गति मंद पड़ गई। वहीं, स्टाफ को टाइगर मॉनिटरिंग के लिए गुर सिखाने की आवश्यकता है। सरिस्का और रणथंभौर से मुकुंदरा के स्टाफ को ट्रेनिंग दिलाने की जरूरत है, ताकि टाइगर रिजर्व की बेसिक नॉलेज मिल सके।
- तपेशवर सिंह भाटी, अध्यक्ष पर्यावरण एवं मुकुंदरा समिति

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रामगढ़ की तरह हो बाघ बसाने की फुर्ति
मुकुंदरा के पिछड़ने में वन अधिकारियों में इच्छाशक्ति का अभाव भी जिम्मेदार है। यहां 12 साल बाद भी 2 बाघ से ज्यादा नहीं हो सके। जबकि, इसके ठीक उलट रामगढ़ में दो साल में ही बाघों का कुनबा 5 हो गया। वहां एक बाघ पर दो बाघिन है और मुकुंदरा में एक ही है। जबकि, दूसरी बाघिन को लाने की हरी झंडी मिल चुकी है, इसके बावजूद एक साल से टाइग्रेस नहीं ला सके।                     
- देवव्रत सिंह हाड़ा, अध्यक्ष पगमार्क फाउंडेशन

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यह रही कमियां
टाइगर व प्रेबेस लाने में देरी 
मुकुंदरा में बाघों को बसाने में त्वरित कार्यवाही का अभाव रहा है। जब सरिस्का टाइगर विहीन हो गया था, तब उसे आबाद करने के लिए एक ही साल में 5 से 7 बाघ शिफ्ट किए थे और यहां एनटीसीए से दो बाघिन और एक बाघ लाने की परमिशन मिले 1 साल बीत गया फिर भी बाघ-बाघिन नहीं लाए। वहीं, भरतपुर से 500 चीतल लाने थे, जो पांच साल में भी पूरे नहीं ला पाए।  एमटी-5 का जोड़ा बनाने के लिए अनमैच्योर ढाई साल की बाघिन ले आए।     
- दौलत सिंह, वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट  

12 सालों में भी विस्थापित नहीं हुए गांव
मुकुंदरा में बसे गांवों का विस्थापन में लेट लतीफी भी मुख्य कारण है। जंगल में 14 गांव बसे हैं। जिसमें से अब तक करीब 4 गांवों का ही विस्थापन हो सका। 10 गांवों में अब भी आबादी  है। जिनके मवेशी जंगल चराई करते हैं, जिससे बाघ का हैबीटॉट डिर्स्टब होता है। वहीं, इंसानी दखल भी बढ़ रहा है।            
- एएच जैदी, नेचर प्रमोटर

इनका कहना
मुकुंदरा को आबाद करने के प्रयास जारी हैं। एनटीसीए से एक बाघ और दो बाघिन लाने की परमिशन मिल चुकी है। जल्द ही एक और बाघिन लाई जाएगी। तैयारियां पूरी कर ली गई है। मुकुंदरा आदर्श स्थिति में है। यहां वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास हैल्दी और सुरक्षित है। प्रेबेस भी पर्याप्त है। 
- अभिमन्यू सहारण, डीएफओ, मुकुंदरा टाइगर रिजर्व

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