फ्रांस राष्ट्रपति चुनाव : मैक्रों का जादू फिर चला

रूस-यूक्रेन युद्ध दौरान संतुलन को बनाए रखने की चुनौतियां

फ्रांस राष्ट्रपति चुनाव : मैक्रों का जादू फिर चला

चुनाव जीतने के बाद अब उनके सामने गठबंधन को बनाए रखने, जनता से किए गए वादों को पूरा करने, जलवायु नीति का नवनिर्माण, महंगाई और अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाना, यूरोपीय संघ के महत्वाकांक्षी उद्देश्यों को हासिल करना, रूस-यूक्रेन युद्ध दौरान संतुलन को बनाए रखने की चुनौतियां भी मुंह बायें खड़ी हैं।

चुनाव जीतने के बाद अब उनके सामने गठबंधन को बनाए रखने, जनता से किए गए वादों को पूरा करने, जलवायु नीति का नवनिर्माण, महंगाई और अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाना, यूरोपीय संघ के महत्वाकांक्षी उद्देश्यों को हासिल करना, रूस-यूक्रेन युद्ध दौरान संतुलन को बनाए रखने की चुनौतियां भी मुंह बायें खड़ी हैं। रूस के मौजूदा राष्ट्रपति इमेनुएल मैक्रों ने राष्ट्रपति चुनाव में फिर जीत हासिल कर ली है। इस जीत के साथ उन्होंने वर्ष 2002 के बाद  दूसरी बार देश का राष्टÑपति बनने का ऐतिहासिक गौरव भी हासिल कर लिया है। उन्होंने अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी, धुर दक्षिण पंथी नेशनल रैली पार्टी की प्रत्याशी मरीन ले पेन को लगातार दूसरी बार भी शिकस्त दी। चुनाव के दूसरे चरण में मैक्रों को जहां 586 फीसदी मत हासिल हुए, तो पेन को सिर्फ 42 फीसदी मत मिले। चुनाव पूर्व हुए तमाम चुनावी सर्वेक्षणों में पहले और दूसरे चरण दोनों में कड़े मुकाबलों का पूर्वानुमान लगाया गया था। जो काफी हद तक सटीक रहा। पहले दौर में जहां मैक्रों और पेन में मतों का अंतर मात्र तीन फीसदी रहा, जो दूसरे चरण में बढ़कर सोलह फीसदी रहा। मैक्रों की इस बार की जीत में मुस्लिमों के प्रति की गई नरमपंथी घोषणाओं का भी असर भी माना जा रहा है। उन्हें दूसरे दौर के चुनावों में एक करोड़ सत्यासी लाख उनहत्तर हजार आठ सौ नौ मत मिले। जबकि मरीन ले पेन को एक करोड़ बत्तीस लाख सत्यानवें हजार सात सौ अट्ठाईस हजार मत मिले। जबकि देश में कुल मतदाताओं की संख्या चार करोड़ सत्यासी लाख है।

मैक्रों ने मुस्लिमों के लिए अलग निकाय बनाने की घोषणा की थी। तो पेन ने सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी। प्रतिबंध भी ऐसा कि हिजाब पहनने पर जुर्माना लगाया जाएगा जिस तरह कार में बेल्ट सीट नहीं लगाने पर किया जाता है। मैक्रों का मानना है पूरे पश्चिमी यूरोप में सबसे अधिक मुस्लिम फ्रांस में रहते हैं। ऐसे में व्यावहारिक नीतियां लागू करनी होंगी। दक्षिणपंथी कठोर नीतियों से भय पैदा होगा, जो बाद में गुस्से में तब्दील हो सकता है। इससे फ्रांस की एकजुटता पर असर पड़ सकता है। मैक्रों की इस जीत के कई मायने हैं। एक तो फ्रांस के पिछले बीस वर्षों के राजनीतिक इतिहास में वे जैक्स चिराग के बाद ऐसे शख्स रहे, जो लगातार दूसरी बार देश के राष्ट्रपति बनने में सफल रहे हैं। दूसरा-ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने के बाद फ्रांस का कद इस संघ में काफी अहम हो गया है। कारण यह देश यूरोप में दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था वाला जो है।  वर्ष 2017 से पूर्व नौसिखिया की छवि से हटकर उन्होंने अपनी कूटनीतिक सक्रियता के साथ स्वयं की छवि को एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित किया है। खासकर यूक्रेन-रूस के बीच युद्ध को समाप्त करने के प्रयासों में वे गहराई से जुड़े रहे।

चुनाव जीतने के बाद अब उनके सामने गठबंधन को बनाए रखने, जनता से किए गए वादों को पूरा करने, जलवायु नीति का नवनिर्माण, महंगाई और अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाना, यूरोपीय संघ के महत्वाकांक्षी उद्देश्यों को हासिल करना, रूस-यूक्रेन युद्ध दौरान संतुलन को बनाए रखने की चुनौतियां भी मुंह बायें खड़ी हैं।फ्रांस की मध्यम मार्गी ला रिपब्लिकन एन मार्च पार्टी से जुड़े मैक्रों भारत के समर्थक हैं। भारत को सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बनाने के पक्षधर रहे हैं। कोरोना महामारी, रफाल विमान डील, सामरिक और कारोबारी रणनीति के क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच सहयोग का वातावरण बना। हालांकि परमाणु पनडुब्बी डील को लेकर आस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ संबंधों में तनाव की स्थितियां भी बनीं।

मैक्रो ने फ्रांस के संभ्रांत स्कूल इकोले नेशनल डी‘एडमिनिस्ट्रेशन में पढ़ाई की। वह पहले सिविल सर्वेंट थे। फिर कुछ वर्षों के लिए रोथ्सचाइल्ड में एक बैंकर के रूप में कार्य किया। उसके बाद वे समाजवादी राष्ट्रपति फ्रांसिस ओलांद के आर्थिक सलाहकार थे। वह 2014 से 2016 तक ओलांद की सरकार में अर्थ व्यवस्था मंत्री नियुक्त किए गए। में राजनीतिक परिदृष्य में सामने आए। राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा। अपनी प्रतिद्वंद्वी मरीन ले पेन को बत्तीस फीसदी मतों से पिछली बार शिकस्त दी थी। इस बार यह जीत सोलह फीसदी के अंतर से रही, जबकि पहले चरण में दोनों प्रमुख प्रत्याशियों के बीच मतों का अंतर मात्र तीन फीसदी ही था। पहले चरण में कुल बारह प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे। प्रथम चरण में पहले दो स्थानों पर पहुंचे मैक्रों और पेन के बीच दूसरे चरण के चुनाव में मुकाबला रहा। समझा जाता है कि तीसरे स्थान पर रहे समाजवादी उम्मीदवार जीन-ल्यूक मेलेनचॉन के समर्थकों का अधिक हिस्सा मैक्रों के पक्ष में रहा। हालांकि चुनाव के दूसरे चरण के प्रचार दौरान वामपंथियों ने मैक्रों और पेन दोनों को हराने को लेकर देशभर में रैलियां निकालकर विरोध प्रदर्शन भी किए थे। मैक्रों की जीत के समर्थन में जहां उनके समर्थक जश्न मना रहे हैं, तो कई जगह पर विरोध-प्रदर्शन और पुलिस से झड़पों के समाचार भी मिल रहे हैं। इस चुनाव के साथ पेन की इस पद पर यह लगातार तीसरी चुनावी हार है। यदि जीत गई होती तो पहली महिला राष्ट्रपति होतीं। वे अवैध अप्रवासियों को खदेड़ने और इस्लामी कट्टरपंथ पर लगाम लगाने की समर्थक हैं।

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- (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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