जाने राज काज में क्या है खास

जाने राज काज में क्या है खास

चर्चाएं पावरफुल होने की
सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वाली पार्टी के दफ्तर में पावरफुल को लेकर इन दिनों कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं। चर्चाएं भी बोर्ड और निगमों में होने वाली राजनीतिक नियुक्तियों में पावरफुल को लेकर है। कुछ दिनों पहले ही कुर्सी संभालने वाले राठौड़जी जब भी दफ्तर में आते हैं, तो चर्चाएं जोर पकड़ लेती हैं। पिछले दिनों एयरपोर्ट पर एक लिफाफा हवा में लहराने के बाद तो चर्चाओं ने और भी जोर पकड़ लिया था। अब बिना सिर पैर की बातें बनाने वाले भगवा वाले भाइयों को कौन समझाए कि पावरफुल तो वो ही होता है, जो सरकार चलाता है।
कुण्ठा में हैं नए नेता
पिछले दिनों सूबे की सबसे बड़ी पंचायत की जाजम पर प्रतिपक्ष में जो लुका छिपी का खेल चला, वह कइयों के समझ के बाहर था। ना पक्ष के साथ ही हां पक्ष लॉबी में भी चर्चा रही कि प्रतिपक्ष खेमे में पीछे की लाइनों में बैठने वाले भाई लोग कुण्ठा से ही भरे रहे। वे फ्रन्ट लाइन के नेताओं की मर्जी के बिना जुबान तक नहीं खोल सके। एक बारगी तो हालात यहां तक बने कि उनमें वरिष्ठों के खिलाफ विद्रोह की भावना भी पैदा हुई। चर्चा है कि फ्रन्ट लाइन में बैठने वाले नेता कतई नहीं चाहते थे कि सदन में भ्रष्टाचार के मामले उठाए जाएं। उनको डर था कि कहीं वे पुराने प्रकरणों के फेर में नहीं आ जाएं। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि प्रतिपक्ष की आगे दो पंक्तियों को लक्ष्मणगढ़ और अलवर वाले वाले भाई साहबों ने पूरी तरह कवर कर लिया था। तभी तो उन्हीं के व्यंग्य बाणों को आधार बना कर सामने वालों ने लपेट- लपेट कर मारने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
हौसलों की उड़ान का जोश थमा
गुजरे जमाने में परों से नहीं हौसलों से उड़ान भरने वाली हाथ पार्टी के भाई साहबों का जोश अब कुछ ठण्डा नजर आ रहा है। सदन में 67 का आंकड़ा रखने वाले भाइयों ने राज्यसभा चुनाव से लगभग दूरियां बना ली। मंगाए गए दो फार्म भी अभी मुड़े के मुडेÞ हुए हैं। अब उनको कौन समझाए कि 39 साल पहले 1980 में जसवंतसिंह को राज्यसभा में भेजते समय भगवा वालों के पास केवल 32 और 1986 में दूसरी बार मात्र 38 का ही आंकड़ा था, लेकिन येनकेन प्रकारेण बाबोसा ने अपने हौसलों से लड़ाई को जीतकर दिखा दिया था।
या फिर कोई और
इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के ठिकाने पर नए सदर को लेकर दो नाम 55 दिनों से काफी चर्चा में है। एक खेमे वालों ने बाड़मेर वाले हरीश जी के नाम को आगे कर रखा है, तो छह महीने पहले अपर हाउस में जा चुकी गांधी मैडम का ग्रुप बीकानेर वाले पंडित जी के गीत गा रहे हैं। इन दोनों के अलावा एक तीसरा खेमा भी है, जो सुपर पावरफुल है, लेकिन अभी साइलेंट है। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि सुपर पावरफुल खेमे की चली तो सदर की इस कुर्सी पर कोई तीसरा बैठेगा, जो परशुरामजी का वंशज तो होगा, लेकिन उसका सूर्यनगरी से दूर-दूर तक ताल्लुक नहीं होगा।
एक जुमला यह भी
राज का काज करने वालों की जुबान पर आजकल दो नाम चढ़े हुए हैं। इनमें एक सबसे बड़े सरकारी साहब हैं, तो दूसरे वे अफसर हैं, जिन्होंने राज के खजाने की चाबी संभाल रखी है। दोनों की तारीफ करने वालों की संख्या भी कम नहीं है। बड़े साहब किसी फाइल को अटकाने में कम ही विश्वास करते हंैं। सरकार के खजाने का मामला इस बार भी उल्टा है। विभागों के सचिवों को खुद फोन कर फाइल लेकर आने की ताकीद करते हैं। खजाने वाले अफसर साहब की इस दरियादिली से राज-काज निपटाने वाले वे अफसर कायल हैं, जो पहले फाइलों के साथ पुराने वालों  के यहां चक्कर लगाते थक चुके हैं।
    (यह लेखक के अपने विचार हैं)

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