High Court ने राष्ट्रीय मरु अभयारण्य संरक्षण मामले में जारी किया स्टे

इको सेंसेटिव जोन घोषित करने के लिए याचिका पेश

High Court ने राष्ट्रीय मरु अभयारण्य संरक्षण मामले में जारी किया स्टे

राज्य सरकार, कलक्टर और उप वन संरक्षक वन्यजीव राष्ट्रीय मरू उद्यान से जवाब तलब 

जैसलमेर। राष्ट्रीय मरू अभ्यारण्य जैसलमेर के संरक्षण को लेकर हाईकोर्ट ने स्टे जारी किया। याचिकाकर्ता हेमसिंह राठौड़ की ओर से अधिवक्ता मानस रणछोड़ खत्री ने राष्ट्रीय मरू अभ्यारण्य जैसलमेर के संरक्षण के लिए वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 एवं पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के प्रावधानों के तहत इको सेंसेटिव जोन घोषित करने के लिए याचिका पेश की।

राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर की ओर से 11 अगस्त, 2023 को राष्ट्रीय मरू अभ्यारण्य के संरक्षण के लिए प्रस्तुत याचिका पर नोटिस जारी कर राज्य सरकार, जिला कलक्टर जैसलमेर एवं उप वन संरक्षक वन्यजीव राष्ट्रीय मरू उद्यान जैसलमेर से जवाब तलब किया। याचिका में न्यायालय के समक्ष आग्रह किया, कि राष्ट्रीय मरू अभ्यारण्य जैसलमेर भारत का एकमात्र उद्यान एवं अभयारण्य है, जिसमें मरुस्थलीय वन्य जीव, प्राणी व प्रजातियां पाई जाती है। भौगोलिक स्थिति अनुसार विभिन्न प्रजाति के कीड़े, उभयचर, सरिसृप, पक्षियों एवं जानवरों की सैकड़ों प्रजातियां हैं, जो अब विलुप्त होने की कगार पर आ चुकी हैं। जिसमें राज्य पक्षी गोडावण, गहरे पीले रंग का गरुड़, छाबेदार गरुड़, बाज प्रजाति शामिल हैं।

अधिवक्ता ने बताया कि केंद्रीय सरकार की ओर से वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की सूची संख्या 1 में मरुस्थलीय वन्य जीव की कई प्रजातियों को क्रिटिकली एंडेंजर्ड स्पीशीज की श्रेणी में शामिल किया गया है, जिसमें राज्य पक्षी गोडावण भी शामिल है। जिसको संरक्षित करने के लिए तुरंत प्रभाव से आवश्यक कदम नहीं उठाए गए, तो भविष्य में उक्त प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी और मरुस्थलीय वन्यजीव पर्यावरण को होने वाले नुकसान की पूर्ति संभव नहीं होगी। राष्ट्रीय मरू अभ्यारण को राजपत्र में प्रकाशित किए जाने की अधिसूचना 6 अगस्त, 1980 में राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित की गई, जिसमें जैसलमेर के 34 राजस्व गांव जिनका क्षेत्रफल 1946 वर्ग किलोमीटर है एवं बाड़मेर जिले के 39 राजस्व गांव को मिलाकर कुल क्षेत्रफल 3162 वर्ग किलोमीटर अधिसूचित है।

अभ्यारण घोषित किए जाने के बाद 19 मई,1981 को लगभग 300 वर्ग किलोमीटर के श्रेत्र को राष्ट्रीय मरू उद्यान घोषित करने की अधिसूचना सूचना प्रकाशित की गई, जिसका प्रमुख कारण राज्य पक्षी गोड़ावण का संरक्षण है, लेकिन सरकार राज्य पक्षी गोडावण एवं अन्य जीव प्रजातियों का संरक्षण करने में विफल रही है। ऐसी स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संपूर्ण भारत में अभ्यारण्य एवं राष्ट्रीय उद्यान के निकट बफर जोन यानी इको सेंसेटिव जोन जिसमें निषिद्ध, विनियमित एवं अनुज्ञेय गतिविधियों को दर्शा कर आदेश पारित किया गया है। जिसके अनुरूप वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया की ओर से10 नवंबर, 2018 को विलुप्त होने की कगार पर राज्य पक्षी गोडवाण एवं अन्य वन्य जीवों का सर्वे कर प्रजनन क्षेत्र, उड़ान क्षेत्र व प्रवास एवं भौगोलिक दशा को ध्यान में रख 157 किलोमीटर का इको सेंसेटिव जोन घोषित किए जाने का प्रस्ताव प्रेषित किया गया। 

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प्रस्तावित इको सेंसेटिव जोन यहां तक फैला
प्रस्तावित इको सेंसेटिव जोन का क्षेत्र ग्राम सम, सालखा, कुछड़ी, हाबुर, मोकल, नाचना लोहारकी से रामदेवरा की ओर फैला हुआ है, जिसमें पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज शामिल नहीं हैं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी एमके रणजीत सिंह की ओर से प्रस्तुत याचिका पर कमेटी का गठन कर रिपोर्ट न्यायालय पेश करने का आदेश पारित किया गया है। राजस्थान उच्च न्यायालय की ोर से गत 5 अगस्त को याचिकाकर्ता के पक्ष में स्टे आदेश पारित कर सरकार को पाबंद किया कि याचिका में वर्णित बिंदुओं पर कोई निर्णय नहीं लें। मामला न्यायालय में आगामी सुनवाई के लिए विचारधीन है।

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