कांग्रेस प्रत्याशियों का 3 सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष, भीतरघात का डर बरकरार
गठबंधन नहीं करना कांग्रेस का दूरगामी निर्णय
कई सीटों पर स्थानीय नेताओं में आपसी गुटबाजी बनी हुई है। टिकट वितरण के बाद अन्य दावेदारों से देवली-उनियारा, चौरासी, सलूम्बर जैसी सीटों पर भीतरघात की आशंका भी बनी हुई है।
जयपुर। प्रदेश की सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव में प्रत्याशी घोषित करने के बाद कांग्रेस के सामने तीन बड़ी चुनौतियां बनी हुई हैं। स्थानीय स्तर पर गुटबाजी, भीतरघात की आशंका और और स्थानीय स्तर पर संगठनात्मक कमजोरी कांग्रेस के सामने बनी हुई हैं। इसके अलावा तीन सीटों पर त्रिकोणीय संघर्ष बना हुआ है। अब आगामी दिनों में पीसीसी चीफ गोविन्द सिंह डोटासरा की रणनीति के आधार पर चुनावी मुकाबला आगे बढ़ पाएगा।
इन उपचुनाव में कांग्रेस उन सीटों को हर हाल में बचाना चाहती है, जिन पर उनके विधायक थे। इनमें दौसा, देवली-उनियारा, झुंझुंनू, रामगढ़ शामिल हैं। खींवसर, चौरासी और सलूम्बर में कांग्रेस ने इस बार प्रयोग किए हैं, जिनकी सफलता का पार्टी को इंतजार बना हुआ है। हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा के मजबूत मनोबल के सामने कांग्रेस को फिलहाल तीन कमजोरियां नजर आ रही है। कई सीटों पर स्थानीय नेताओं में आपसी गुटबाजी बनी हुई है। टिकट वितरण के बाद अन्य दावेदारों से देवली-उनियारा, चौरासी, सलूम्बर जैसी सीटों पर भीतरघात की आशंका भी बनी हुई है। बूथ और मंडल स्तर पर संगठनात्मक कमजोरी से चुनावी माइक्रो मैनेजमेंट करने की परेशानी भी सामने आ रही है।
गठबंधन नहीं करना कांग्रेस का दूरगामी निर्णय
रामगढ़ सीट पर कांग्रेस सहानूभूति लहर पर सवार है। उपचुनाव में गठबंधन नहीं करके कांग्रेस ने दूरगामी सोच दिखाई है। पार्टी खुद को अन्य दलों के भरोसे नहीं दिखाकर मजबूत दिखाना चाहती है। साथ ही नए प्रयोग में युवा चेहरों पर भरोसा देकर मैसेज देने की कोशिश की है। दो सीट झुंझुंनू और रामगढ़ में परिवारवाद में टिकट रणनीति के तहत दिए। सलूम्बर और खींवसर में महिलाओं को मौका देकर सोशल इंजीनियरिंग का प्रयोग किया है। उपचुनाव परिणाम मुख्य तौर पर पीसीसी चीफ गोविन्द सिंह डोटासरा की साख से जुड़ेंगे। दौसा, देवली-उनियारा और झुंझुनंू सीटें सचिन पायलट समर्थकों के पास रही हैं तो वे भी अपनी प्रतिष्ठा के सवाल से नहीं बच सकते। अशोक गहलोत का टिकट वितरण में ज्यादा दखल नहीं रहा,लेकिन मार्गदर्शक मंडल की भूमिका के चलते प्रतिष्ठा उनकी भी जुड़ी हुई है। हालांकि, गहलोत और पायलट का महाराष्टÑ चुनाव में पर्यवेक्षक होने के कारण यहां सीधा दखल नहीं है।
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