डेढ़ माह में परीक्षा, कक्षाएं खाली, बढ़ी धड़कनें

संभाग के 10 सरकारी कॉलेजों में आधा दर्जन विषयों की नहीं लग रही कक्षाएं

डेढ़ माह में परीक्षा, कक्षाएं खाली, बढ़ी धड़कनें

विद्या संबल पर भी नहीं लगा पा रहे फैकल्टी।

क ोटा। स्नातक प्रथम वर्ष के प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा का काउंट-डाउन शुरू हो गया है। इसी के साथ विद्यार्थियों की धड़कनें भी तेज हो गई है। क्योंकि, डेढ़ माह बाद सेमेस्टर एग्जाम शुरू होने हैं लेकिन संभाग के दस राजकीय महाविद्यालयों में आधा दर्जन से अधिक महत्वपूर्ण विषयों की कक्षाएं नहीं लग रही। ऐसे में परीक्षा से पहले सिलेबस पूरे नहीं होने की चिंता से विद्यार्थी तनाव से गुजर रही है।  दरअसल, हाड़ौती के चारों जिलों में करीब 44 सरकारी महाविद्यालय हैं। जिनमें से 10 ऐसे हैं जहां आधा दर्जन से अधिक महत्वपूर्ण विषयों के शिक्षक नहीं है। मजबूरन, विद्यार्थियों को महंगे दामों पर टयूशन का सहारा लेना पड़ता है। सरकार की अनदेखी का खामियाजा हर साल विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है। 

भूगोल से अर्थशास्त्र तक पढ़ाने वाला कोई नहीं
संभाग के 10 राजकीय महाविद्यालयों में आधा दर्जन विषयों के शिक्षक नहीं है। जिसकी वजह से उनकी कक्षाएं नहीं लगती है। जबकि, कॉलेज प्रशासन  द्वारा छात्रों से एडमिशन व एग्जाम फीस पूरी वसूली जाती है।  हालात यह हैं, प्रायोगिक विषयों के प्रेक्टिल करवाने से लेकर पेपर पैटर्न समझाने वाला तक कोई नहीं है। भूगोल से लेकर अर्थशास्त्र तक जैसे कठिन विषयों को पढ़ाने वाला नहीं है। ऐसे में विद्यार्थियों को परीक्षा परिणाम बिगड़ने का डर सता रहा है।

यहां इन विषयों की नहीं लगती कक्षाएं 
कोटा जिले के राजकीय महाविद्यालय इटावा में राजनेतिक राजनेतिक विज्ञान, हिन्दी, संस्कृत, सांगोद में राजनेतिक विज्ञान, ज्योग्राफी, रामगंजमंडी में अंगे्रजी, अटरू में भूगोल, अंगे्रजी, बारां गवर्नमेंट कॉलेज में इतिहास, केलवाड़ा में अंग्रेजी, शाहबाद में अर्थशास्त्र,गवर्नमेंट कॉलेज बारां में बिजनेस एडमिनेस्ट्रेशन व इतिहास, अटरू व शाहबाद कन्या महाविद्यालय में अंगे्रजी तथा राजकीय कला महाविद्यालय मांगरोल में भी अंगे्रजी के शिक्षक नहीं होने से कक्षाएं नहीं लग पाती।

नियमों की पेचीदगी ने बिगाड़ा शिक्षा का गणित
राजकीय महाविद्यालयों के शिक्षकों का कहना है, अधिकतर महाविद्यालयों में उन्हीं विषयों के पद खाली हैं, जिनके शिक्षक प्रतिनियुक्ति पर कहीं दूसरे जिलों के कॉलेजों में सेवाएं दे रहे हैं। ऐसे में संकट यह है कि उनकी जगह पर संबंधित महाविद्यालय विद्या संबल पर शिक्षक भी नहीं लगा सकते। क्योंकि, प्रतिनियुक्ति पर गए शिक्षकों की जगह खाली होती हुई भी सरकार की नजरों में खाली नहीं है। ऐसे में आयुक्तालय से उनकी जगहों पर विद्या संबल पर शिक्षक लगाने का भी मंजूरी नहीं मिल रही। ऐसे में संभाग के इन दस कॉलेजों में राजनेतिक विज्ञान से लेकर संस्कृत तक की कक्षाएं खाली रहती हैं, यहां विद्यार्थियों को पढ़ाने वाला कोई नहीं है। 

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एक माह में 6 दिन ही मिलती उधार की फैकल्टी
राजकीय महाविद्यालय इटावा के प्राचार्य डॉ. रामदेव मीणा ने बताया कि गवर्नमेंट कॉलेज कोटा को आयुक्तालय द्वारा रेस-सेंटर का नोडल बनाया गया है। जिन महाविद्यालयों में शिक्षकों की कमी होती है, वहां उस कॉलेज की डिमांड पर रेस-सेंटर से मात्र 6 दिन के लिए फैकल्टी भेजी जाती है। इसके बाद उस कॉलेज का दोबारा से नम्बर आने में करीब दो से तीन माह तक लग जाते हैं। ऐसे में एक कॉलेज को एक माह में एक बार ही 6 दिन के लिए फैकल्टी मिल पाती है। क्योंकि, रेस-सेंटर को रोटेशन के आधार पर दूसरे कॉलेजों में भी फैकल्टी भेजनी होती है। 

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हर स्तर पर शिकायत, समाधान कहीं नहीं
गवर्नमेंट कॉलेज बारां के प्राचार्य भगवान कुमार ने बताया कि यहां शिक्षकों के 60 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 12 ही कार्यरत हैं। वहीं, कॉमर्स में बिजनेस एडमिनेस्ट्रेशन व इतिहास के शिक्षक प्रतिनियुक्ति पर होने से उनकी जगह विद्या संबल पर भी शिक्षक नहीं लगा सकते। वहीं, कार्यरत शिक्षकों को जिले के अन्य कॉलेजों की व्यवस्था का भी चार्ज है।  शिक्षकों के अभाव से सेमेस्टर स्कीम में और परेशानी हो गई है। समाधान के लिए आयुक्तालय, उच्च शिक्षा विभाग,  जिला कलक्टर तक पत्र भेज गुहार लगाई लेकिन समाधान  कहीं से नहीं मिला। 

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क्या कहते हैं प्राचार्य
राजकीय महाविद्यालय सांगोद की प्राचार्य अनिता वर्मा का कहना है, करीब 7-8 माह से हमारे यहां से दो शिक्षक प्रतिनियुक्ति पर बाहर हैं, जिनकी खाली जगहों पर हम चाहकर भी विद्या संबल पर शिक्षक नहीं लगा सकते। हालांकि, आयुक्तालय को इस संबंध में लिखा भी है। ऐसे में रेस-सेंटर से फैकल्टी मांगनी पड़ती है। वहीं, अटरू कॉलेज के प्राचार्य बुद्धि प्रकाश मीणा ने बताया कि अटरू ब्यॉय में ज्योग्राफी व अंग्रेजी के शिक्षक नहीं है। ऐसे में राजसेस के अधीन अटरू गर्ल्स कॉलेज में अंगे्रजी के शिक्षक हैं, ऐसे में दोनों कॉलेजों के विद्यार्थियों की संयुक्त कक्षाएं लगानी पड़ती है लेकिन इसमें काफी परेशानी होती है। इधर, भूगोल की तो कक्षाएं लगाना ही चुनौतिपूर्ण है। 

क्या कहते हैं विद्यार्थी 
महाविद्यालय में राजनीति विज्ञान और भूगोल के शिक्षक नहीं हैं। कक्षाएं खाली रहती हैं, सिलेबस पूरा नहीं हो पाने से परीक्षा परिणाम बिगड़ने का डर सताता है। वहीं, प्रेक्टिकल विषय के मिडटर्म करने में भी भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।  
- हिमांशु कुमार, छात्र सांगोद

रेस-सेंटर कोटा से कभी कबार 6 दिन के लिए टीचर आते हैं लेकिन 6 दिन में कोर्स पूरा होना  एक तिहाई सिलेबस भी पूरा नहीं हो पाता। इसके बाद अगली बार नंबर आने में ही 3 से 4 माह लग जाते हैं, जब तक तो एग्जाम ही शुरू हो जाते हैं। पूर्व में भी बिना पढ़े ही परीक्षा देनी पड़ी थी। 
- अंजलि, छात्रा 

कॉलेज में इतिहास व इंग्लिश साहित्य विषय नहीं है। जबकि, विद्यार्थी इन विषयों लेना चाहते हैं। पूर्व में इसकी मांग भी कर चुके हैं, फिर भी यह विषय आवंटित नहीं हो रहे। रिक्त पदों को भरने की व्यवस्था करनी चाहिए। 
- खुशी मीणा, छात्रा 

इनका कहना है
महाविद्यालयों में जिन विषयों के शिक्षक नहीं है, वहां रेस-सेंटर से शिक्षक की व्यवस्था कर शिक्षण व्यवस्था सुचारू करवा रहे हैं। विद्यार्थियों का कोर्स समय पर पूरा करवाने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं, प्रनियुक्ति निरस्त करने या इनकी खाली जगहों पर विद्या संबल शिक्षक लगाने का मामला सरकार के स्तर का है। 
- प्रो. गीताराम शर्मा, क्षेत्रीय सहायक निदेशक, आयुक्तालय कोटा

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