एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई, बीच में मगरमच्छ से भरी चंद्रलोही आई
आबादी के बीच बसी मगरमच्छ की बस्ती
हाल ही में बुजुर्ग पर हमला कर चबा दिया था हाथ।
कोटा। एक तरफ कुआ तो दूसरी तरफ खाई...यह कहावत इन दिनों चंद्रलोही नदी के किनारों पर बसी कॉलोनियों के बाशिंदों पर चरितार्थ हो रही है। नदी के एक तरफ आबादी क्षेत्र हैं तो दूसरी तरफ खेत हैं और बीच से मगरमच्छों से भरी चंद्रलोही है। नदी किनारे सुरक्षा दीवार या फेंसिंग नहीं होने से मगरमच्छ खेतों व कॉलोनियों में घुसकर लोगों पर हमले कर रहे हैं। इससे इंसान व वन्यजीवों के बीच टकराव होने से संघर्ष बढ़ गया। हाल ही में बुजुर्ग पर हुए मगरमच्छ के हमले के बाद भी वन विभाग नहीं चेता। दरअसल, सुरक्षा दीवार के अभाव में मगरमच्छ खेतों में पहुंच जाते हैं। पूर्व में धोरों पर फसल धोते समय मगरमच्छ एक किसान पर जानलेवा हमला कर चुका है। इसके बावजूद विभाग न तो लोगों की जिंदगी और न ही वन्यजीव के संरक्षण के प्रति गंभीर है।
सर्दी आते ही किनारों पर डेरा
नेचर प्रमोटर जैदी ने बताया कि सर्दी आने के साथ ही ये किनारे पर आ जाते हैं। हाथीखेड़ा, मानसगांव में एक साथ 10 से 12 मगरमच्छों का झुंड देखा जा सकता है। नदी के बीच-बीच में जहां पानी सूख जाता है, वहीं आकर बैठ जाते हैं। दिनभर धूप सेकते हैं। कई बार तो ये बस्ती की ओर भी रुख कर लेते हैं।
श्रद्धालुओं पर हमले का रहता खतरा
वन्यजीव प्रेमी शेख जुनैद ने बताया कि चन्द्रलोई नदी मानस गांव के पास चंबल में मिल जाती है, लेकिन इससे पहले करीब 15 से 16 किमी में मगरमच्छों की तादात काफी ज्यादा है। रायपुरा, राजपुरा, देवलीअरब, जग्गनाथपुरा, बोरखंडी हाथीखेड़ा, अर्जुनपुरा में इन्हें बड़ी तादाद में देखा जा सकता है। हालांकि यहां मगरमच्छों की गिनती कभी नहीं हुई है। उन्होंने बताया कि चन्द्रेसल गांव में प्राचीन मठ है,जिसमें शिव मंदिर है, जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। जबकि, मठ के पास नदी किनारों पर मगरमच्छों का मूवमेंट बना रहता है। ऐसे में श्रद्धालुओं पर हमले का खतरा बना रहता है।
हर साल 80 से ज्यादा मगरमच्छों का रेस्क्यू
वन विभाग के रेस्क्यू टीम के सदस्य वीरेंद्र सिंह बताते हैं, साल में करीब 70 से 80 मगरमच्छों का आबादी क्षेत्रों से रेस्क्यू किया जाता है। शहर के विभिन्न रिहायशी इलाकों में आए दिन मगरमच्छ के आने के मामले सामने आ रहे हैं। एक ही दिन में बोरखेड़ा व स्टेशन क्षेत्र के भदाना इलाके में तीन-तीन मगरमच्छों का रेस्क्यू किया गया। बोरखेड़ा क्षेत्र में तो आए दिन कॉलोनियों में मगरमच्छों की मौजूदगी बनी रहती है।
चंद्रलोही किनारे बसे इन गांवों को खतरा
ग्रामीण दीनदयाल शर्मा, पंकज गौतम ने बताया कि चंद्रलोही केबल नगर के उपरी क्षेत्र मंदिरगढ़ से शुरू हो रही है। नदी के दोनों किनारों पर कई गांव बसे हैं। जिनमें काला तलाब, खेडली पांड्या, मांदलिया, केबल नगर, मवासा, जामपुरा, नगपुरा, भीमपुरा, कैथून, संजय नगर, चैनपुरा, जालीखेड़ा, आरामपुरा, खेड़ारसूलपुर, भोजपुरा, रामराजपुरा, अर्जुनपुरा, बोरखंडी, हाथीखेड़ा, जगदीशपुरा व मानसगांव होते हुए चंबल नदी में मिल जाती है। तार फेंसिंग नहीं होने से इन इलाकों में हर पल अनहोनी का डर सताता है।
सैंकड़ों मगरमच्छ से भरी चंद्रलोही
चंद्रलोही की कोख में सैंकड़ों मगरमच्छ पनप रहे हैं, जो जगह-जगह पानी के बीच चट्टानों पर झुंड के रूप में धूप सेंकते नजर आ रहे हैं। नदी में 5 से 12 फीट लंबे मगरमच्छ मौजूद हैं। जिनसे अनहोनी का डर बना रहता है। क्योंकि, नदी किनारे खेती-बाड़ी है, जहां काम करने वाले किसानों को हादसे का डर सताता है। क्षेत्रवासियों ने पूर्व में भी नदी किनारों पर तार फेंसिंग करवाने की मांग की थी लेकिन प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया। पूर्व में कई हादसे भी हो चुके हैं।
खेतों में जाने से लगता डर
नदी के आसपास बसे क्षेत्रवासियो में मगरमच्छों का खौफ है। किसान खेतों में जाने से डरते हैं। लोगों ने नदी में नहाना व सब्जियां धोना भी बंद कर दिया है। हाल ही में हुई घटना के अलावा पूर्व में भी मगरमच्छ के हमले की कई जानलेवा घटनाएं हो चुकी हैं। इसके बावजूद विभाग द्वारा सुरक्षा के इंतजाम नहीं किए गए। जिम्मेदारों की लापरवाही से मगरमच्छ व इंसानों के बीच संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
बालक व किसान का पैर खा गया मगरमच्छ
नेचर प्रमोटर जैदी ने बताया कि गत वर्षों में एक महिला नदी के घाट पर कपड़े धो रही थी। उसका बच्चा पास में ही खेल रहा था। इसी दौरान नदी से निकला मगरमच्छ ने बालक पर हमला कर नदी में ले गया। जिससे उसकी मौत हो गई। वहीं, फसल धोते समय किसान का पैर मगरमच्छ खा गया। उसे नदी में खींचने लगा लेकिन किसान ने पेड़ को पकड़ शोर मचाया। आसपास के खेतों में काम कर रहे अन्य किसान मौके पर पहुंचे तो वह नदी में चला गया। लेकिन, किसान का एक पैर पूरा शरीर से अलग हो गया। इसके अलावा मवेशियों को भी शिकार बना चुका है।
- नदी व नाले किनारे चारों तरफ चेन फेंसिंग कर इंसान व वन्यजीवों के बीच टकराव रोका जाए।
- वन विभाग को लोगों के बीच जागरूकता फैलानी चाहिए।
- शहर में ज्यादा से ज्यादा हेल्पलाइन नम्बर बांटना चाहिए।
- एक से ज्यादा क्रोकोडाइल रेस्क्यू टीम बनाई जाए।
- वन्यजीव विभाग रेस्क्यू के दौरान मगरमच्छों पर टेगिंग जरूर करवाएं।
- नहर व नालों में मृत जीव-जंतु, जानवर, मटन-चिकन के अवशेष व खाद्य सामग्री न फेंकी जाएं।
- जब मगरमच्छों को भोजन नहीं मिलेगा तो वह आबादी क्षेत्रों से सटे नहर-नालों में नहीं आएंगे।
- इनके प्राकृतिक आवास को सुरक्षित रखा जाए।
- रायपुरा नाले से मगरमच्छों को सावनभादो डेम में शिफ्ट किया जाए।
- इनके संरक्षण व भोजन की नियमित व्यवस्था हो।
इनका कहना है
शहरी सीमा में चंद्रेसल नदी किनारे चैन फेंसिंग के प्रस्ताव भेजे गए हैं, हालांकि स्वीकृति नहीं मिली है। लोगों को जागरूक करने के लिए नदी किनारे संकेतक व चेतावनी बोर्ड लगवाए जाएंगे।
- अपूर्व कृष्ण श्रीवास्तव, उप वन संरक्षक, कोटा वन मंडल
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