कांग्रेस सांसद ने राज्यसभा में उठाया रुपए में गिरावट का मुद्दा : कंपनियों और निर्यातकों को कर रहा प्रभावित, 25 प्रतिशत कम हुई लोगों की खरीदने की क्षमता 

पिछले पांच साल में रुपया 20-27 प्रतिशत टूट चुका 

कांग्रेस सांसद ने राज्यसभा में उठाया रुपए में गिरावट का मुद्दा : कंपनियों और निर्यातकों को कर रहा प्रभावित, 25 प्रतिशत कम हुई लोगों की खरीदने की क्षमता 

राज्यसभा में कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने रुपए में ऐतिहासिक गिरावट पर चिंता व्यक्त की, बताते हुए कि पिछले पांच साल में यह 20–27% टूटा है और 90.43 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया। उन्होंने कहा कि इससे आम लोगों की क्रय क्षमता घट रही है, आयात महंगा हो रहा है, एमएसएमई की लागत बढ़ रही है और व्यापार घाटा तथा पूंजी निकासी की समस्या गहरा रही है।

नई दिल्ली। कांग्रेस सांसद विवेक के तन्खा ने राज्यसभा में रुपए में ऐतिहासिक गिरावट का मुद्दा उठाते हुए कहा कि यह आम लोगों, कंपनियों और निर्यातकों तथा आयातकों को एक समान प्रभावित कर रहा है। उन्होंने शून्यकाल में कहा कि पिछले पांच साल में रुपया 20-27 प्रतिशत टूट चुका है। इसका मतलब यह हुआ कि अब लोगों की खरीदने की क्षमता 25 प्रतिशत कम हो चुकी है। इसी साल रुपये में पांच प्रतिशत की गिरावट रही है जो साल 2022 के बाद सबसे अधिक है और यह एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन गया है।

उल्लेखनीय है कि रुपया मंगलवार को पहली बार 90 रुपये प्रति डॉलर के निचले स्तर तक उतरा था। आज सुबह यह 90.43 रुपये प्रति डॉलर तक टूट गया था।

तन्खा ने कहा कि जब रुपया कमजोर होता है आयात महंगा हो जाता है। ईंधन, रसोई गैस, इलेक्ट्रॉनिक मशीनरी और दवाएं महंगी हो जाती हैं। इसका मतलब है कि हर परिवार को जरूरी दैनिक वस्तुओं के लिए अधिक पैसा खर्च करना पड़ता है। खाने-पीने के सामान और परिवहन भी महंगे हो जाते हैं। एक श्रृंखला शुरू होती है जो गरीबों को सबसे अधिक प्रभावित करती है। मध्यम वर्ग के लिए स्मार्टफोन, लैपटॉप, चिकित्सा उपकरण, स्टेशनरी, कपड़े और घरेलू उपकरण महंगे हो जाते हैं क्योंकि लगभग हर सामान के लिए कंपोनेंट आयात किये जाते हैं। उन्होंने कहा, Þआम आदमी के लिए रुपये में गिरावट बिना सूचना के वेतन में की गयी कटौती जैसा है।

कांग्रेस सांसद कहा कि कमजोर रुपए का असर सूक्षम, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) और निर्यातकों पर भी पड़ता है। आयात पर निर्भर एमएसएमई की लागत 20-30 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। आयातित मशीनरी भी महंगी होती है जिससे कंपनियों को विस्तार करने में परेशानी होती है और रोजगार खतरे में पड़ता है।

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उन्होंने कहा कि कपड़ा, रसायन इंजीनियरिंग उत्पाद जैसे सेक्टरों में इंटरमीडियरी वस्तुओं पर निर्भरता के कारण उनका लाभ कम होता है। छोटे विनिर्माताओं को एक तरफ ऊंची लागत और दूसरी तरफ कमजोर मांग से जूझना पड़ता है। जिन कंपनियों ने विदेशी मुद्रा में ऋण ले रखा है, उनके लिए ऋण भुगतान महंगा हो गया है।  

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अर्थव्यवस्था के आंकड़े पेश करते हुए उन्होंने कहा कि एक ही महीने में देश का व्यापार घाटा 40 अरब डॉलर से अधिक रहा। यह दिखाता है कि निर्यात की तुलना में आयात किस कदर अधिक है। विदेशी निवेशकों ने 17 अरब डॉलर भारतीय पूंजी बाजार से निकाले हैं। इससे पूंजी की कमी का खतरा है। विदेशों से ऋण प्राप्ति में सुस्ती आयी है। 

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