शिमला संधि के निलंबन से भारत-पाक संबंधों में मुश्किलों का शुरू होगा नया दौर : ढकोसला है पाक का नया पैतरा, तीसरे पक्ष की दखलंदाजी कभी नहीं हुई थी खत्म
युद्धविराम रेखा बनी थी नियंत्रण रेखा
पाकिस्तान की ओर से शिमला समझौते को निलंबित करना केवल पाकिस्तान का ढकोसला है
नई दिल्ली। पाकिस्तान की ओर से शिमला समझौते को निलंबित करना केवल पाकिस्तान का ढकोसला है। वास्तव में उसने कभी इस समझौते का सम्मान नहीं किया था। वह पहले भी कश्मीर पर विवाद का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने का प्रयास करता रहा है। जबति इस समझौते का मुख्य क्लॉज यही था कि दोनों पक्ष आपसी विवदों में तीसरे पक्ष की भागदारी नहीं होने देंगे। उल्लेखनीय है कि भारत और पाकिस्तान द्वारा दो जुलाई 1972 को हस्ताक्षरित इस समझौते में गारंटी दी गई थी कि भारत और पाकिस्तान के
विवाद में तीसरे पक्ष की दखलंदाजी की कोई जगह नहीं होगी। जम्मू कश्मीर स्थित पहलगाम में 22 अप्रैल को बर्बर आतंकी हमले के बाद भारत और इस्लामाबाद के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया है। इस आतंकी हमले में 26 लोगों की जान गई थी, जिसके एक दिन बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ बड़े उठाए थे। इनमें सिंधु जल संधि को निलंबित करना, पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा निरस्त करना और राजनयिक संबंधों को कम करना अहम रूप से शामिल है। पाकिस्तान ने इसके जवाब में शिमला समझौते को निलंबित कर दिया। इसके साथ ही सभी व्यापार पर रोक के साथ ही भारतीय विमानों के लिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया। पाकिस्तान ने जो कदम उठाए हैं, उनमें सबसे अहम शिमला समझौता है। ऐसे में सवाल उठता है कि समझौते के रद्द होने के बाद क्या नियंत्रण रेखा यानी एलओसी अब खत्म हो जाएगी।
शिमला समझौता 2 जुलाई 1972 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हस्ताक्षरित हुआ था। इस समझौते का मुख्य उद्येश्य उन सिद्धांतों को निर्धारित करना था, जो दोनों देशों के भविष्य को निर्धारित करेंगे। इसमें कहा गया कि दोनों देश बिना किसी तीसरे पक्ष को शामिल किए अपने विवादों का शांतिपूर्ण तरीके से निपटारा करेंगे। इसमें कश्मीर विवाद प्रमुखता से शामिल है। लेकिन पाकिस्तान मामले को विश्व मंच पर उठाता ही रहा।
युद्धविराम रेखा बनी थी नियंत्रण रेखा
इस समझौते के तहत ही युद्धविराम रेखा को नियंत्रण रेखा के रूप में मान्यता मिली। दोनों देशों ने सहमति जताई कि कोई भी एकतरफा तरीके से स्थिति को नहीं बदलेगा। इसमें कहा गया, कोई भी पक्ष आपसी मतभेदों और कानूनी व्याख्याओं के बावजूद इसे एकतरफा रूप से बदलने की कोशिश नहीं करेगा। दोनों पक्ष इस रेखा के उल्लंघन में धमकी या बल के प्रयोग से परहेज करने का वचन देते हैं।
करगिल घुसपैठ से समझौता तोड़ा था
अब पाकिस्तान ने शिमला समझौते को स्थगित कर दिया है, तो सवाल उठ रहा है इसका क्या असर होगा। हालांकि, पाकिस्तान पहले भी शिमला समझौते का उल्लंघन करता रहा है। एलओसी के स्पष्ट रूप से बताए जाने के बावजूद पाकिस्तान ने 1999 में करगिल में घुसपैठ की और बड़े जमीन पर कब्जा कर लिया, जो राष्ट्रीय राजमार्ग-1 की तरफ जाती थी। भारत ने कारगिल में बड़ा सैन्य अभियान चलाया और जमीन को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त कराया।
सियाचिन पर कब्जे की लगातार कोशिश करता रहा पाक
इसके पहले पाकिस्तान ने सियाचिन ग्लेशियर पर भी कब्जा करने की कोशिश की, जो शिमला समझौते का उल्लंघन था। पाकिस्तान की इस हरकत के खिलाफ 1984 में भारत ने ऑपरेशन मेघदूत शुरू किया और इस तरह ग्लेशियर पर पूरा नियंत्रण हासिल कर लिया। कारगिल युद्ध के चार साल बाद 2003 में भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर फिर से युद्धविराम को लेकर सहमति बनी। हालांकि, 2006 से पाकिस्तान ने कई बार समझौते का उल्लंघन किया है।

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