दुर्गम पर्वत माला के बीच बना उधमपुर-श्रीनगर रेल लिंक परियोजना : जम्मू से श्रीनगर के बीच ट्रेन दौड़ने को तैयार, कार्य पूरा

परियोजना में बने दुनिया के दो सबसे ऊंचे ब्रिज, इससे बढ़ेगा पर्यटन

दुर्गम पर्वत माला के बीच बना उधमपुर-श्रीनगर रेल लिंक परियोजना : जम्मू से श्रीनगर के बीच ट्रेन दौड़ने को तैयार, कार्य पूरा

जम्मू से कश्मीर के बीच दुर्गम पर्वत माला के बीच उधमपुर- श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक परियोजना का काम पूरा हो गया है

श्रीनगर। जम्मू से कश्मीर के बीच दुर्गम पर्वत माला के बीच उधमपुर- श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक परियोजना का काम पूरा हो गया है। इसका ट्रायल रन भी कर लिया गया है। अब अब बस प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हरी झंडी का इंतजार है। बड़ी बात यह है कि इस पहाड़ी के दुर्गम क्षेत्र में दुनिया के दो सबसे ऊंचे पुल भी बनाए गए हैं। उत्तर रेलवे ने इसे कोंकण रेलवे कॉरपोरेशन लिमिटेड की मदद से तैयार किया है। 
केंद्र सरकार का कश्मीर से कन्याकुमारी के बीच ट्रेन दौड़ाने का सपना अब साकार होता नजर आ रहा है। रेलवे प्रशासन जम्मू से कश्मीर के बीच ट्रेन दौड़ाने के लिए पूरी तरह से तैयार है। दरअसल उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक परियोजना की घोषणा वर्ष 1999 में की गई थी और इसी वर्ष 2002 में राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया। पिछले 25 वर्षों में इस प्रोजेक्ट को इंजीनियरिंग की कुशलता से पूरा किया गया है। दरअसल सबसे बड़ी चुनौती जम्मू से बनिहाल के बीच पड़ने वाले दो ब्रिज तैयार करना था। यहां दुर्गम हिमालय की पहाड़ियों में अंजी पुल और चिनाब पुल सहित कुल 4 मेगा पुल तैयार किए गए हैं। दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल चिनाब और भारतीय रेल का पहला केबल आधारित रेल पुल अंजी पुल इस परियोजना में बनाए गए हैं। 136 किलोमीटर लंबे बनिहाल-बारामूला रेल सेक्शन में विद्युतीकरण का कार्य भी पूरा हो चुका है। यहां ट्रेनें डीजल इंजन की बजाय इलेक्ट्रिक ट्रेक्शन पर संचालित होंगी। इससे पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील हिमालय क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा। कटरा से बनिहाल तक 111 किलोमीटर लंबे रेलमार्ग में 96 किलोमीटर हिस्से में सुरंग बनी हुई हैं। यहां 7 किलोमीटर ब्रिज और करीब 8 किलोमीटर खुला एरिया है। इसके बीच 7 स्टेशन हैं, जो टनल, ब्रिज ओर खुले में बने हुए हैं। टनल के अंदर 3 लाइन के यार्ड भी बने हुए हैं।

परियोजना में बनाई कुल 38 सुरंगें
इस 119 किमी लंबे सेक्शन में कुल 38 सुरंगें बनाई गई है। सुम्बर से अरपिंचला के बीच 12.75 कि.मी. लंबी सबसे बड़ी सुरंग है और पीरपंजाल टी- 80 सुरंग की लंबाई 11.2 किमी है। इस पूरे प्रोजेक्ट में कुल 931 छोटे-बड़े पुल बनाए गए, जिनकी लंबाई करीब 13 किलोमीटर है।  

सुरक्षा को लेकर जगह-जगह बनाए कमांड सेंटर 
इस परियोजना में सुरक्षा को लेकर जगह- जगह कमांड सेंटर बनाए गए है। प्रमुख सुरंगों में प्रत्येक में 100 से ज्यादा कैमरे लगाए गए, जिनकी 24 घंटे मॉनिटरिंग की जा रही। 
 
पुल से अगले 120 वर्ष तक ट्रेन संचालन संभव
इस परियोजना में सबसे बड़ा चिनाब पुल बनाया गया है। पुल की कुल लंबाई 1315 मीटर और नदी के तल से डेक की ऊंचाई 369 मीटर है। पुल से अगले 120 वर्ष तक ट्रेन संचालन संभव होगा। पुल पर करीब 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पुल से ट्रेनों का संचालन संभव है। 266 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तूफान में भी पुल को नुकसान नहीं होगा। इस पुल पर करीब 1486 करोड रुपए की लागत आई है। इसमें फिनलैंड, जर्मनी के विशेषज्ञों और आईआईएससी बैंगलोर और आईआईटी दिल्ली के विशेषज्ञों की मदद ली गई है। वहीं आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने इसका भूकंपीय विश्लेषण किया है। 

रेलवे का पहला केबल आधारित रेलवे पुल
चिनाब पुल के अलावा अंजी पुल भी भारतीय रेलवे के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण रहा है। इसका निर्माण जम्मू कश्मीर के रियासी जिले में किया गया है। यह पुल जम्मू से सड़क मार्ग से करीब 80 किलोमीटर दूरी की पर स्थित है। अंजी पुल भारतीय रेलवे का पहला केबल आधारित रेलवे पुल है। दुर्गम पहाड़ियों के बीच इसे केवल एक आधार पर खड़ा किया गया है। यह भूकंपरोधी पुल आईआईटी रुड़की और आईआईटी दिल्ली की टीमों के सहयोग से बनाया गया है। 

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अंजी ब्रिज की बड़ी बातें 
पुल की कुल लंबाई है 725 मीटर और इसे चार भागों में विभाजित किया गया।रियासी की तरफ 120 मीटर लंबा अप्रोच पुल बनाया गया। कटरा छोर की तरफ 38 मीटर लंबा अप्रोच ब्रिज। केंद्रीय तटबंध की लंबाई 94 मीटर है। इसके अलावा गहरी घाटी को पार करता हुआ 473 मीटर लंबा केबल आधारित हिस्सा है। यह पुल दो सुरंग टी- 20 और टी-3 को जोड़ता है। नींव के शीर्ष से 193 मीटर ऊंचा मुख्य पायलन है, यह नदी तल से 331 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पुल की चौड़ाई 15 मीटर, इसमें 295 मीटर तक लंबाई की कुल 96 केबलों का उपयोग हुआ। 

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इनका कहना है... 
इस पूरे रेल सेक्शन में 100 किलोमीटर प्रति घंटा की क्षमता से ट्रेनों का संचालन संभव है। यहां पर सभी तरह के विंड, टनल टेस्ट और लोड स्पीड टेस्ट हो चुके हैं। रेलवे प्रशासन की तरफ से तैयारी पूरी हो चुकी है। अब केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से हरी झंडी दिखाए जाने का इंतजार है। इसके बाद जम्मू और कश्मीर आसान एवं सुगम ट्रेन संचालन से जुड़ सकेंगे।
-आरके मलिक, डिप्टी चीफ इंजीनियर, कोंकण रेलवे

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