सतरंगी सियासत
विधानसभा चुनाव में बाजी ही पलट गई
पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया भले ही पिछले साल विधानसभा चुनाव में हार गए हों। लेकिन अब संगठन में उनका कद बढ़ना तय।
कद बढ़ेगा...
पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया भले ही पिछले साल विधानसभा चुनाव में हार गए हों। लेकिन अब संगठन में उनका कद बढ़ना तय। उन्होंने इसके लिए अपने को साबित कर दिया। वैसे वह प्रदेश में सीएम का चेहरा माने जा रहे थे। लेकिन हार के कारण वह संभावनाएं जाती रहीं। इधर, केन्द्रीय नेतृत्व ने उनके संगठन कौशल एवं व्यापक अनुभव को देखते हुए हरियाणा में प्रभारी बनाया। हालांकि लोकसभा चुनाव में यथोचित परिणाम नहीं रहा। लेकिन विधानसभा चुनाव में बाजी ही पलट गई। दिन रात दौड़ते रहे। ऑपरेशन हो जाने के बावजूद कर्मक्षेत्र में डटे रहे। सो, अब भाजपा का वह एक बड़ा जाट चेहरा। अब उन्हें केन्द्रीय संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिले। इसकी संभावना प्रबल। वहीं, यूपी जैसे राज्य में विधानसभा चुनाव के दौरान बड़ी भूमिका संभव। क्योंकि भाजपा के लिए यूपी में कील कांटे दुरूस्त करना जरूरी।
खुल गई पोल
हरियाणा में तमाम चुनावी सर्वेक्षण और एग्जिट पोल में कांग्रेस को जीतता हुआ दिखाया गया। लेकिन परिणाम इसके ठीक उलट रहे। असल में, राजनीतिक दलों के बीच यही नेरैटिव और परसेप्शन की लड़ाई। एक बात जरुर माननी होगी। नेरैटिव बनाने के मामले में कांग्रेस का ईको सिस्टम अभी जिंदा ही नहीं, कारगर भी। इसीलिए ओपिनियन मैकिंग में वह भाजपा से कहीं आगे। सो, चुनाव परिणाम से पहले सर्वे और एग्जिट पोल में भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले पीछे दिखाया गया। लेकिन परिणाम के दिन जनता का निर्णय अलग। हां, एक बात और। भारतीय मतदाता हमेशा से बहुत समझदार और दूरदर्शी। लोकतांत्रिक प्रक्रिया के दौरान उसके मन की थाह लेना इतना आसान नहीं। हो भी क्यों? क्योंकि यह मामला सरकार चुने का। और दुकानदारी चला रहे लोगों के यह बात समझ नहीं आएगी! जिनकी साख गिरने में ही लोकतंत्र की भलाई।
असर!
हरियाणा एवं जम्मू-कश्मीर के चुनाव परिणाम का असर सबसे ज्यादा दो दलों पर। हालांकि क्षेत्रीय दल भी इसके प्रभाव से अछूते नहीं। लेकिन राष्ट्रीय परिदृश्य में तो सबसे ज्यादा प्रभावित केन्द्र में सत्ताधारी भाजपा एवं मुख्य विपक्षी कांग्रेस। असल में, आम चुनाव- 2024 के बाद यह पहली परीक्षा। जहां जनता ने एक बार फिर से पीएम मोदी पर विश्वास जताया। मानो कह रहे हों। लोकसभा चुनाव में 272 नहीं देकर गलती कर दी। वहीं, आम चुनाव में सीटें सौ के करीब हो जाने से आत्मविश्वास से लबरेज दिख रहे राहुल गांधी निराश। शायद अब उनकी आक्रामकता भी कम हो। हां, संघ की महत्ता भाजपा को अब समझ आ गई होगी। विपक्षी आइएनडीआइए गठबंधन में कांग्रेस का रूतबा कम ही नहीं होगा। बल्कि सहयोगी उसकी परेशानी बढ़ाएंगे। यह महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव में सीटों के बंटवारे में दिखेगा! इतना तय।
बदलेगी तस्वीर
जम्मू-कश्मीर की तस्वीर बदलेगी। क्योंकि वहां अब निर्वाचित सरकार सत्ता में होगी। जो जनता के प्रति जवाबदेह होगी। आम जनता भी अपने चुने हुए नुमाइंदों के पास जाकर अपने शिकवे शिकायत कर सकेगी। यानी प्रशासन पर जनप्रतिनिधियों का नियंत्रण होगा। जो अब तक उपराज्यपाल के जरिए बाबुओं के पास था। सीटों के संख्याबल को देखें। तो भविष्य में राजनीतिक उठापटक से इनकार नहीं किया जा सकता। वहीं, प्रदेश सरकार की केन्द्र पर निर्भरता पहले से ज्यादा रहेगी। सो, केन्द्र एवं राज्य सरकार में तालमेल सबसे जरुरी। भले ही उमर अब्दुल्ला कमान संभालेंगे। लेकिन काम करने की आजादी पहले जैसी बिल्कुल नहीं होगी। क्योंकि असली बॉस उपराज्यपाल ही होंगे। नई दिल्ली का नियंत्रण एवं पर्यवेक्षण पूरा होगा। एक-एक पैसे का हिसाब भी देना होगा। और हां, पुलिस पर नियंत्रण भी केन्द्र का होगा। यानी राज्य सरकार कोई मनमानी नहीं कर सकती।
समीकरण दर समीकरण...
हरियाणा और जम्म-कश्मीर के चुनाव परिणाम से विपक्ष में हलचल। सबसे बुरी हालत कांग्रेस की। अब तो उसके साथी दल ही पीछे पड़ गए। इसमें नेशनल कांफ्रेंस, आम आदमी पार्टी, उद्धव ठाकरे की शिवसेना यूबीटी और समाजवादी पार्टी इसमें शामिल। सो, कांग्रेस मानो बैकफुट पर। अभी महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव होने बाकी। ऐसे में यह तय। कांग्रेस से सहयोगी दल सीट बंटवारे में ज्यादा मोल भाव करेंगे। जब तक अगले साल फरवरी में राजधानी दिल्ली के विधानसभा चुनाव निपटेंगे। तब तक बिहार का माहौल बनने लगेगा। जहां कांग्रेस का गठजोड़ राजद से। पिछली बार कांग्रेस को गठबंधन में 70 सीटें मिलीं थी। जो इस बार संभव नहीं। फिर सीएम नीतीश कुमार की यह अंतिम पारी जैसी। भाजपा अपना मौका देख रही। तो लालूजी अपने बेटे तेजस्वी यादव के लिए क्यों न देखें? सो, समीकरण दर समीकरण बदल रहे।
भारत की ताकिद
बांग्लादेश में हालात जस के तस। खासकर अल्पसंख्यक हिन्दुओं एवं उनके पूजा स्थालों पर हमले हो रहे। लेकिन अमरीका और यूएनओ चुप्पी साधे हुए। लोकतंत्र और मानवाधिकारों के नाम पर कई देशों एवं सरकारों को बदनाम करने वाली ताकतों को बांगलादेश में सब कुछ ठीकठाक लग रहा। लेकिन भारत उम्मीद से ज्यादा सक्रियता दिखा रहा। बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार को भारत द्वारा ताकिद किया जा रहा। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा चाक चौबंद रखें। भारत एक साथ कई को संकेत और संदेश दे रहा। बीते कुछ समय से बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार का टोन डाउन जरुर हुआ। लेकिन जमीन पर असर दिख नहीं रहा। असामाजिक तत्व अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे। ऐसे में, एक संभावना यह बन रही। अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव के बाद वैश्विक हालात बदलेंगे! फिर दक्षिण एशिया क्षेत्र में भारत का प्रभाव और बढ़ने की भी उम्मीद।
-दिल्ली डेस्क
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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