सतरंगी सियासत

सतरंगी सियासत

विपक्षी गठबंधन आएनडीआईए में भले ही एकजुअता के साथ आम चुनाव में उतरने के दावे किए जा रहे। लेकिन इसके घटक दलों में पश्चिम बंगाल, केरल, पंजाब एवं राजधानी दिल्ली को लेकर पेंच फंसा हुआ।

ट्रूडो के बहाने...
जी- 20 शिखर सम्मेलन के बाद भारत और कनाडा के बीच जो चल रहा। उसकी असली वजह अब धीरे-धीरे बाहर आ रही। असल में, बात वहीं तक सिमित नहीं, जैसा दिख रहा। कारण इससे आगे के। वैसे कूटनीति में सभी चीजें कभी बाहर नहीं आतीं लेकिन इतना तय हो गया। भारत को घेरने की रणनीति पर कुछ देश काम कर रहे। हां, वह बाहर से ऐसा दिखा रहे जैसे अनजान हों। लेकिन कनाडा के बहाने घेरने एवं नीचा दिखाने का प्रयास भारत भी समझ गया। इसीलिए सरकार ने सीधा एक्शन लिया। आरोप-प्रत्यारोप लग रहे। लेकिन भारत का रूख एकदम सीधा-सपाट। गलत बात कतई बर्दाश्त नहीं होगी। अब न भारत और न उसका नेतृत्व पहले जैसा। जहां जैसी जरुरत होगी। कार्रवाई होगी। फिर सामने कोई भी हो। फिर आतंकवाद के खिलाफ तो वैसे भी वैश्विक सहमती। फिर कनाडा के मामले में दोगलापन कैसे चलेगा?

क्या होगा असर?
साल- 2024 के आम चुनाव से पहले दक्षिण में भाजपा के पक्ष अच्छा हो ही रहा था कि तमिलनाडु में सहयोगी एआईएडीएमके ने नाता तोड़ लिया। वैसे, एआईएडीएमके में अंदरूनी खींचतान अभी भी खत्म नहीं हुई। सो, इसी का शायद असर। वैसे पिछले आम चुनाव के बाद किसान बिलों के फेर में शिरोमणि अकाली दल भाजपा से अलग हो गई। जबकि उससे भी पहले नीतीश कुमार की जद-यू भी अपनी राह पर चल पड़ी। सो, अगले आम चुनाव में इसका भाजपा पर क्या असर पड़ेगा? हां, एक तो इन तीनों ही राज्यों में भाजपा पहले से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। दूसरा, उसे नए साथी तलाशने होंगे। ताकि सामाजिक समीकरणों को दुरूस्त कर सके। तीसरा, इन तीनों ही दलों के असंतुष्ट नेताओं के लिए भाजपा में आने का रास्ता खुल जाएगा। जो अब तक गठबंधन धर्म के कारण नहीं हो पाया होगा।

इंतजार दिल्ली का!
तो पीएम मोदी के बीते सोमवार जयपुर दौरे के तुरंत बाद भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह और संगठन मंत्री बीएल संतोष अचानक जयपुर आ पहुंचे। इससे राजस्थान भाजपा में मानो हलचल सी मच गई। बुधवार रात से चला बैठकों का दौर गुरुवार तड़के तक चला। जाते-जाते फिर से सुबह एक बैठक और। अब जानकार कयास पर कयास लगा रहे। टिकटों की घोषणा का सभी को बेसब्री से इंतजार हो रहा। उसके पहले भाजपा केन्द्रीय चुनाव समिति की रविवार को बैठक हो गई। जिसमें तमाम प्रमुख नेता मौजूद रहे। हां, इसके पहले की कवायद जयपुर में लगभग हो गई। बस दिल्ली की मुहर का इंतजार। जो शायद महज औपचारिकता हो। सारे सामाजिक एवं राजनीतिक समीकरण का क्रॉस चैक जयपुर में कोर कमेटी के सामने हो चुका। लेकिन इसी बीच, शनिवार को दिल्ली में कई बैठकें हो गईं। मतलब मंथन बाकी?

ताबड़तोड़ दौरे
भाजपा की घोषणा। राजस्थान में इस बार विधानसभा चुनाव पीएम मोदी की अगुवाई में लड़ा जाएगा। इसी का नतीजा। साल-2023 की शुरूआत से पीएम मोदी अब तक आठ बार राजस्थान दौरे पर आ चुके। शुरूआत 28 जनवरी को भीलवाड़ा दौरे से हुई। तब वह गुर्जर समाज के आराध्य देव देवनारायण जी के 1111 अवतरण दिवस पर आयोजित समारोह में शामिल हुए। इसके बाद दस मई को वह नाथद्वारा और आबूरोड आए। वहीं, अजमेर में उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में नौ साल का कार्यकाल पूरा होने के अवसर पर 30 मई को बड़ी सभा को संबोधित किया। इसके बाद आठ जुलाई को पीएम मोदी ने बीकानेर में अमृतसर जामनगर एक्सप्रेस वे का उद्घाटन किया। फिर 27 जुलाई को उनकी सीकर में जनसभा हुई। आखिर में 25 सितंबर को पीएम जयपुर आए। यानी मोदी चुनावी अभियान पूरा होने तक प्रदेश का हर कोना नाप डालेंगे।

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पेंच बना हुआ!
विपक्षी गठबंधन आएनडीआईए में भले ही एकजुअता के साथ आम चुनाव में उतरने के दावे किए जा रहे। लेकिन इसके घटक दलों में पश्चिम बंगाल, केरल, पंजाब एवं राजधानी दिल्ली को लेकर पेंच फंसा हुआ। टीएमसी, वामदल एवं आम आदमी पार्टी की बयानबाजी बता रही। यह सभी दल, कांग्रेस की परेशानी बढ़ाने वाले। सो, कांग्रेस के लिए ऐसी स्थिति में कोई भी निर्णय लेना मुश्किल। आखिर वह गठबंधन धर्म निभाए या प्रदेश कांग्रेस कमेटियों का मान रखे। दोनों ही स्थितियों में पेंच! फिर बिहार को कैसे छोड़ा जाए? जहां लालू यादव लगातार सीएम नीतीश कुमार की उलझनें बढ़ा रहे। बिहार में कांग्रेस तो जैसे तैसे मान जाएगी। लेकिन राजद एवं जद-यू के बीच पेंच। लोकसभा चुनाव-2019 में सीट बंटवारे का नीतीश ने जो फार्मूला भाजपा के साथ अपनाया। लालू यादव अब वही फार्मूला नीतीश पर लागू करना चाह रहे। जिससे नीतीश असहज!

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चुनावी बयार!
जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी जैसे क्षेत्रीय दलों को चुनावी बयार का इंतजार। क्योंकि यह आशा कि लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव भी होंगे। इसी बीच, ब्लॉक, ग्राम पंचायत एवं नगर निकायों के चुनाव अपेक्षित। लेकिन केन्द्र सरकार पूरी सफाई करने के मूड में। हालांकि कांग्रेस का व्यवहार कभी क्षेत्रीय तो कभी राष्ट्रीय दल जैसा। लेकिन ज्यादा जल्दी नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी को। उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के बयान बानगी। वह और इंतजार नहीं कर पाएंगे। क्योंकि केन्द्र सरकार लगातार ऐसा एक्शन कर रही कि एनसी एवं पीडीपी की राजनीतिक जमीन लगातार खिसक रही। वैसे भी राज्य में आतंकवाद अब अंतिम सांसे गिन रहा। तो अलगाववादी भी कहीं छुप से गए। उपर से आतंकवाद के दौर में सरकारी संपत्तियों पर किए गए कब्जे छुड़ाए जा रहे। जिससे कश्मीरियों का नुकसान करने वाले बिल्कुल असहाय। इसीलिए राज्य में चुनी हुई सरकार की मांग!

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-दिल्ली डेस्क
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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