मुकाबले से पहले काफी नर्वस थी लेकिन डेनिश घोड़े एड्रेनालाइन ने साथ दिया और हमने रच दिया इतिहास
एशियन गेम्स की घुड़सवारी में स्वर्ण जीत जयपुर लौटी दिव्यकृति का शानदार स्वागत
एशियन गेम्स के लिए अपनी तैयारियों के संबंध में दिव्यकृति ने कहा कि चीन में भारतीय घोड़ों को इजाजत नहीं मिल रही थी। ऐसे में डेनमार्क से घोड़ा खरीदा।
खेप्र/नवज्योति, जयपुर। घुड़सवारी के खेल में पदक जीतना कोई आसान नहीं है। अपने कौशल के साथ खिलाड़ी को घोड़े के साथ भी आपसी समझ और तालमेल बनाना पड़ता है। हांगझाऊ में मुकाबले से पहले मैं काफी नर्वस थी लेकिन मेरे पसंदीदा डेनिस घोड़े एड्रेनालाइन ने मेरा खूब साथ दिया और हमारी टीम ने गोल्ड जीतकर नया इतिहास रच दिया। यह कहना है एशियाई खेलों में घुड़सवारी की ड्रेसाज स्पर्धा में स्वर्ण पदक विजेता दिव्यकृति सिंह राठौड़ का। दिव्यकृति बुधवार को ही चीन से जयपुर लौटी हैं। दिव्यकृति का एयरपोर्ट पर उनके परिजनों, शुभचिन्तकों और खेल प्रेमियों ने शानदार स्वागत किया। भारत ने घुड़सवारी की ड्रेसाज स्पर्धा में पहली बार एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता है। घुड़सवारी में भारत का यह 40 साल बाद पहला स्वर्ण है। इससे पहले 1982 के एशियाई खेलों की इवेंटिंग स्पर्धा में राजस्थान के रघुवीर सिंह ने स्वर्ण पदक जीता था। दिव्यकृति ने कहा कि अपने घोड़े के साथ आपसी समझ बनाना बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि घोड़े के पास अपना दिमाग और अपना व्यक्तित्व होता है। दिव्यकृति कहा कि घोड़े के साथ ऐसी बांडिंग बनाना बड़ी मेहनत का काम है। उनके दिन की शुरुआत घोड़ों को चारा खिलाने और साफ-सफाई से होती थी और रात में चाहे मैं कितनी भी थकी हुई क्यों न हूं, अपने घोड़े की निगरानी करना जरूरी रहता है।
भारत में बढ़ी हैं खेल की सुविधाएं
दिव्यकृति ने कहा कि स्कूल और कालेज स्तर पर घुड़सवारी भारत में ही सीखी। लगातार दो साल जूनियर चैंपियन बनी। इसके बाद ट्रेनिंग के लिए तीन साल विदेश में रही। इस दौरान भारत में भी इस खेल की सुविधाओं में तेजी से इजाफा हुआ है। इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ा है और बहुत घोड़े इम्पोर्ट किए गए हैं। यह काफी महंगा खेल है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए काफी खर्च करना पड़ता है। ऐसे में इस खेल को सरकारी और निजी स्पांसर की बड़ी जरूरत है।
तीन साल परिवार से दूर ट्रेनिंग एक मुश्किल काम था
एशियन गेम्स के लिए अपनी तैयारियों के संबंध में दिव्यकृति ने कहा कि चीन में भारतीय घोड़ों को इजाजत नहीं मिल रही थी। ऐसे में डेनमार्क से घोड़ा खरीदा। अपने घर-परिवार से दूर तीन साल विदेश में बिलकुल नये शहर में ट्रेनिंग की, जो एक कठिन काम था। उन्होंने कहा कि इस दौरान हमने यूरोप की मजबूत टीमों के साथ मुकाबले खेले, जिससे हमें एक्सपोजर मिला और आत्मविश्वास बढ़ा। जब हम एशियन गेम्स के लिए चीन पहुंचे तो पूरी तरह कान्फिडेंट थे कि गोल्ड हमारा ही होगा, हालांकि अन्दर ही अन्दर एक डर था, जिसकी वजह से कुछ बोल नहीं पा रहे थे। दिव्यकृति ने कहा कि यह स्वर्ण पदक उनका अकेले नहीं बल्कि सामूहिक प्रयास का नतीजा है।
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