भाजपा गठबंधन धर्म निभाएगी, सिर नहीं झुकाएगी, कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी से जुड़ा एक पद भी सहयोगी दलों को नहीं 

दोनों दल इस बार किंग मेकर बन कर उभरे हैं

भाजपा गठबंधन धर्म निभाएगी, सिर नहीं झुकाएगी, कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी से जुड़ा एक पद भी सहयोगी दलों को नहीं 

देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अन्य देशों के साथ समझौते से संबंधित मामले भी यह समिति संभालती है। 

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने अपने बड़े सहयोगी दलों टीडीपी और जेडीयू को साफ कह दिया कि वह गठबंधन धर्म निभाएगी, लेकिन सिर झुका कर सरकार नहीं चलाएगी। ये दोनों दल इस बार किंग मेकर बन कर उभरे हैं, लिहाजा वे केंद्र में मंत्रालय भी बड़ा चाहते थे। लेकिन  बीजेपी ने दृढ़ता से अपनी बात रखते हुए सहयोगी दलों से कहा कि वह गठबंधन धर्म निभाएगी, लेकिन सिर झुकाकर सरकार चलाने से बेहतर विपक्ष में बैठना पसंद करेगी।  इसीलिए भाजपा ने कैबिनेट कमेटी आॅन सिक्योरिटी (सीसीएस) से जुड़े चारों मंत्रालय अपने पास रखने का फैसला किया है। ये चारों मंत्रालय हैं गृह, रक्षा, वित्त और विदेश। किसी भी पार्टी के लिए एक मजबूत सरकार के लिए इन चारों मंत्रालयों पर उसका कंट्रोल होना बहुत जरूरी होता है। 
यही मंत्रालय मिलकर सीसीएस अर्थात कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटीका गठन करते हैं और सभी बड़े मामलों पर निर्णय लेते हैं। कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी केंद्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति सुरक्षा के मामलों पर निर्णय लेने वाली देश की सर्वोच्च संस्था होती है। प्रधानमंत्री इस कमेटी के अध्यक्ष होते हैं और गृह मंत्री, वित्त मंत्री, रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री इसके सदस्य। देश की सुरक्षा संबंधी सभी मुद्दों से जुड़े मामलों में अंतिम निर्णय कैबिनेट कमेटी आॅन सिक्योरिटी का ही होता है। इसके अलावा कानून एवं व्यवस्था और आंतरिक सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर भी सीसीएस ही अंतिम निर्णय लेता है। कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी विदेशी मामलों से संबंधित ऐसे नीतिगत निर्णयों से निपटती है, जिनका आंतरिक या बाहरी सुरक्षा पर प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अन्य देशों के साथ समझौते से संबंधित मामले भी यह समिति संभालती है। 

राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव डालने वाले आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों और परमाणु ऊर्जा से संबंधित सभी मामलों से निपटना सीसीएस का काम होता है। राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े निकायों या संस्थानों में अधिकारियों की नियुक्ति पर फैसला भी कैबिनेट कमिटी आॅन सिक्योरिटी का ही होता है। जैसे देश का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कौन होगा इसका निर्णय सीसीएस लेता है। रक्षा उत्पादन विभाग और रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के संबंध में 1000 करोड़ रुपये से अधिक के पूंजीगत व्यय वाले सभी मामलों पर सीसीएस का निर्णय ही आखिरी होता है। उहारण के लिए हाल ही में सीसीएस ने भारतीय नौसेना के लिए 200 ब्रह्मोस मिसाइलों के लिए 19000 करोड़ के डील को मंजूरी दी है। इस साल मार्च में केंद्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा संबंधी समिति ने 5वीं पीढ़ी के स्वदेशी स्टील्थ फाइटर प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी थी।

ऐसी खबरें सामने आईं कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू गृह, रक्षा, वित्त और विदेश मंत्रालय में से किसी एक की जिम्मेदारी चाह रहे थे, लेकिन बीजेपी ने इससे साफ इनकार कर दिया। क्योंकि ये चारों कैबिनेट के सबसे महत्वपूर्ण पोर्टफोलियों हैं। इसके साथ ही चर्चा है कि बीजेपी सड़क एवं परिवहन मंत्रालय और रेल मंत्रालय, लोकसभा स्पीकर का पद भी अपने किसी अलायंस पार्टनर को नहीं देने जा रही। इसके पीछे एकमात्र कारण यही है कि गठबंधन सरकार होने के बावजूद बीजेपी कहीं से भी यह नहीं चाहती कि पीएम मोदी को आगे चलकर बड़े नीतिगत मामलों में निर्णय के लिए अपने अलायंस पार्टनरों पर निर्भर होना पड़े। 

लोकसभा स्पीकर का पद भी नहीं छोड़ेगी भाजपा
लोकसभा स्पीकर का पद नहीं छोड़ने के पीछे यह कारण बताया जा रहा है कि गठबंधन सरकार में किसी सहयोगी दल के समर्थन वापस लेने की स्थिति में उसका रोल अहम हो जाता है। इसलिए टीडीपी और जेडीयू की नजर स्पीकर पद पर थी, ताकि सत्ता की कुंजी उनके पास रहे और भाजपा शायद यह पद अलायंस पार्टनर को देने से इनकार कर रही है। वहीं सड़क एवं परिवहन मंत्रालयए रेल मंत्रालय में मोदी सरकार ने पिछले 10 वर्षों में बहुत काम किया है। चाहे हाइवे और एक्सप्रेस वे, पुल, टनल का निर्माण हो या फिर रेल पटलियों का दोहरीकरण, विद्युतीकरण, बुलेट ट्रेन या वंदे भारत ट्रेन प्रोजेक्ट हो।

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