उल्का पिंड के रूप में धरती की ओर बढ़ी आ रही है आफत : 80 लाख टन टीएनटी के बराबर होगी इसकी विध्वंस की क्षमता, वैज्ञानिक सतर्क
अंतरिक्ष एजेंसियों में हड़कंप मच गया।
एस्टरॉयड टेरेस्ट्रियल इंपैक्ट लास्ट अलर्ट सिस्टम (एटलस) ने इस उल्कापिंड के खतरे को लेकर चेतावनी जारी की तब दुनिया की अंतरिक्ष एजेंसियों में हड़कंप मच गया।
न्यूयॉर्क। धरती की ओर एक आफत दौड़ती आ रही है। वैज्ञानिक सतर्क हो रहे हैं। कोई तो सूरत निकले, इस आफत को रोकने की। आज से करीब 7 साल बाद अंतरिक्ष से पृथ्वी पर एक जबरदस्त खतरे के आने के आसार हैं। दुनिया की अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसियां फिलहाल इस खतरे से निपटने के लिए योजना तैयार करने में जुटी हैं। फिर चाहे वह अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी- नासा हो या चीन, जो कि इस खतरे से निपटने के लिए सुरक्षाबल की अलग टुकड़ी तक बनाने की तैयारी कर रहा है। यह खतरा है एक उल्कापिंड का, जो कि 2032 में पृथ्वी से टकरा सकता है। उल्कापिंड का पूरा नाम 2024 वाइआर फोर रखा गया है। इस उल्कापिंड को अपोलो-टाइप यानी पृथ्वी को पार करने वाली वस्तु के तौर पर चिह्नित किया गया। वाईआर4 की पहली बार खोज चिली के रियो हुतार्दो में स्थित एक उल्कापिंड की निगरानी रखने वाले स्टेशन 27 दिसंबर 2024 को की। बताया जाता है कि जब एस्टरॉयड टेरेस्ट्रियल इंपैक्ट लास्ट अलर्ट सिस्टम (एटलस) ने इस उल्कापिंड के खतरे को लेकर चेतावनी जारी की तब दुनिया की अंतरिक्ष एजेंसियों में हड़कंप मच गया।
वैज्ञानिकों का कहना है कि एक संभावना यह भी है कि धरती से टकराने से पहले यह उल्कापिंड हवा में ही आग से खत्म हो जाए। हालांकि, अगर ऐसा नहीं होता है तो इसके टकराने से होने वाला ब्लास्ट भारी तबाही मचा सकता है। इसकी ताकत 80 लाख टन टीएनटी (विस्फोटक) के बराबर होगी, जो कि हिरोशिमा में गिरे परमाणु बम से 500 गुना ज्यादा ताकतवर होगा। इस तरह का विस्फोट 50 किलोमीटर के दायरे में भारी तबाही मचा सकता है। अगर उल्कापिंड समुद्र या महासागर में गिरता है तो इससे सुनामी का खतरा हो सकता है। इसके बाद से ही अंतरिक्ष एजेंसियों ने वाईआर4 को अंतरिक्ष से गिरने वाली वस्तुओं के जोखिम की लिस्ट में नंबर-1 पर रख दिया।
मौजूदा समय में वाईआर4 उल्कापिंड पृथ्वी से करीब 6.5 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर है। हालांकि, यह तेजी से आगे बढ़ रहा है। वाईआर4 के बढ़ते खतरे पर जेम्स वेब टेलीस्कोप की मदद से लगातार नजर रखी जा रही है और इसके बदलती कक्षा को समझने और उसके भविष्य के प्रभावों को भी परखा जा रहा है।
पृथ्वी के वातावरण में पहुंचने के बाद उल्कापिंड छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट सकता है: लुका कॉन्वर्सी
यूरोपीय स्पेस एजेंसी (ईएसए) में नियर-अर्थ आॅब्जेक्ट कॉर्डिनेशन सेंटर के प्रबंधक लुका कॉन्वर्सी के मुताबिक अब तक यह उल्कापिंड चट्टानी पदार्थों से बना नजर आता है। इसमें लोहे और अन्य धातुओं की पहचान नहीं की जा पाई है। यानी पृथ्वी के वातावरण में पहुंचने के बाद यह तेज गति की वजह से छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट सकता है और धरती से टकराने की स्थिति में इसका प्रभाव भी कम हो सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगर वाईआर4 उल्कापिंड धरती से टकराने की तरफ बढ़ता है तो इसकी गति में गुरुत्वाकर्षण बल भी जुड़ जाएगा। यानी धरती से यह करीब 17 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से टकरा सकता है। हालांकि, इसका धरती पर प्रभाव कितना ज्यादा होगा, यह इसके टकराने वाली सतह पर निर्भर करता है। अगर इस उल्कापिंड की 130 फीट चौड़ाई वाली सतह धरती से टकराती है तो यह एक बड़े धमाके की तरह होगा। इससे धरती पर बड़ा ब्लास्ट हो सकता है।
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