इजरायल के जीपीएस हमले से भारतीय विमानों के क्रैश होने का खतरा : 15 माह में स्पूफिंग के 465 हादसे, पाकिस्तान सीमा पर असर

नकली सिग्नल प्रसारित किया जाता है

इजरायल के जीपीएस हमले से भारतीय विमानों के क्रैश होने का खतरा : 15 माह में स्पूफिंग के 465 हादसे, पाकिस्तान सीमा पर असर

ज्यादातर घटनाएं अमृतसर और जम्मू के पाकिस्तान की सीमा से लगने वाले क्षेत्रों में हुई हैं। 

तेल अवीव। क्या इजरायल के जीपीएस हमलों का भारत पर गंभीर असर हो रहा है? और क्या इन हमलों की वजह से भारतीय विमानों की सुरक्षा पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है? दरअसल, भारत में नवंबर 2023 से लेकर फरवरी 2025 के बीच, यानि करीब 15 महीनों के दौरान विमानों के नेविगेशन सिस्टम में हस्तक्षेप की 465 घटनाएं दर्ज की गईं हैं। जो काफी चिंताजनक हैं। इनमें से ज्यादातर घटनाएं अमृतसर और जम्मू के पाकिस्तान की सीमा से लगने वाले क्षेत्रों में हुई हैं। 

आपको बता दें कि जीपीएस स्पूफिंग वो प्रक्रिया है, जिसमें ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम रिसीवर को धोखा देने के लिए नकली सिग्नल प्रसारित किया जाता है। ये दुनिया के एविएशन सेक्टर के लिए खतरा तो है ही, लेकिन भारत की विमान इंडस्ट्री के लिए ये एक बहुत बड़ा खतरा बन गया है। जीपीएस स्पूफिंग की वजह से फ्लाइटों को गलत जानकारियां मिलती हैं, जैसे उन्हें गलत नेविगेशन मिलता है, रियल टाइम डेटा नहीं मिलता, जिससे विमानों के नेविगेशन सिस्टम की विश्वसनीयता से समझौता होता है।

यानि ये परिस्थिति विमानों के आॅपरेशन पर सीधा असर डालती है। रिपोर्ट के मुताबिक ओपीएस ग्रुप की तरफ से जारी सितंबर 2024 की रिपोर्ट में कहा गया है कि जीपीएस स्पूफिंग से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में उत्तर-पश्चिम नई दिल्ली और लाहौर (पाकिस्तान) के आस-पास के स्थान शामिल हैं। 15 जुलाई से 15 अगस्त 2024 के बीच जीपीएस स्पूफिंग के मामले में ये पूरा क्षेत्र दुनियाभर में नौवें स्थान पर रहा है, जिससे 316 विमान प्रभावित हुए हैं।

भारत की विमान इंडस्ट्री की सुरक्षा को खतरा
रिपोर्ट से पता चलता है कि 2024 में स्पूफिंग की घटनाओं में 500% का इजाफा दर्ज किया गया है, जो काफी ज्यादा चिंताजनक है। इस दौरान सर्वेक्षण किए गए फ्लाइट क्रू में से 70% ने इसको लेकर गंभीर चिंता जताई है। पूर्वी भूमध्य सागर, काला सागर और एशिया के कुछ हिस्से जीपीएस स्पूफिंग के लिए प्रमुख हॉटस्पॉट बन गए हैं, जहां अगस्त 2024 में 1000 से ज्यादा उड़ानें प्रभावित हो चुकी हैं। इन क्षेत्रों में विमानों को उड़ाने वाले पायलटों ने जीपीएस जामिंग और स्पूफिंग को लेकर बार बार शिकायतें की हैं। एक पायलट ने कहा है कि ईरान-पाकिस्तान सीमा पार करने के बाद हस्तक्षेप शुरू हो गया और ये तब तक जारी रहा, जब तक कि फ्लाइट तुर्की के हवाई क्षेत्र से बाहर नहीं निकल गया। रिपोर्ट के मुताबिक गाजा युद्ध शुरू होने के बाद से, इजराइल डिफेंस फोर्स कथित तौर पर जीपीएस स्पूफिंग नाम की एक स्ट्रैटजी का इस्तेमाल कर रहा है, जिससे दुश्मनों के गतिविधियों पर सख्त नजर रखी जाती है। 

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जीपीएस स्पूफिंग का विमानों पर क्या असर होता है?
जीपीएस स्पूफिंग के जरिए विमानों के नेविगेशन सिस्टम को हैक कर लिया जाता है। इसकी वजह से विमानों को गलत सूचना मिलती है। इससे पायलट को गलत सिग्नल मिलता है। जैसे अगर कोई फ्लाइट इराक के हवाई अड्डे पर है, लेकिन उसे पता ही नहीं चलेगा कि वो किस हवाई अड्डे पर है। आसमान में उड़ान भरने के दौरान फ्लाइट सटीक जीपीएस डेटा पर निर्भर करती हैं, लेकिन जीपीएस स्पूफिंग होने से उन्हें रियल टाइम जानकारी नहीं मिल पाती है, जिससे दुर्घटना का खतरा बन जाता है। वहीं पायलटों को इस दौरान मैन्युअल रूप से नेविगेट करना पड़ता है, यानि पुराने जमाने में जैसे विमानों को ऑपरेट किया जाता था।

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जीपीएस स्पूफिंग को काउंटर करने भारत ने क्या किया
यूरेशियन टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक नवंबर 2023 में भारत के नागरिक उड्डयन महानिदेशालय ने संदिग्ध स्पूफिंग घटनाओं की तत्काल रिपोर्टिंग करना अनिवार्य कर दिया। इसके अलावा भारत ने विमानन सुरक्षा को बढ़ाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन और यूरोपीय संघ विमानन सुरक्षा एजेंसी के दिशा-निर्देशों को अपनाने का फैसला किया है। इन नियमों को अपनाना शुरू कर दिया गया है। इसके अलावा भारत ने आईसीएओ के स्टैंडर्ड को शामिल करते हुए राष्ट्रीय विमानन सुरक्षा योजना 2024-2028 भी प्रकाशित की है। इसका मकसद फ्लाइटों के ऑपरेशन के समय जोखिम को कम करने, सुरक्षा को मजबूत करने और फ्लाइटों के ऑपरेशन के दौरान ट्रैफिक क्षमताओं को मजबूत करना है।

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