अली-गनी बंधुओं ने दी मांड गायन को नई ऊंचाइयां

अली-गनी बंधुओं ने दी मांड गायन को नई ऊंचाइयां

बीकानेर के दूरदराज के गांव तेजरासर से निकलकर  गायकी के क्षेत्र में सितारे बनकर चमकने वाले अली और गनी को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

विविधताओं का देश भारत अपनी लोक परंपराओं,  गीत- संगीत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में जाना जाता है। लोकगायन समाज की संस्कृति को प्रतिबिंबित करता है। राजस्थान के लोक नृत्य, लोकगीत, लोक परंपराएं तथा लोक साहित्य अपनी समृद्ध संस्कृति के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। भारत सरकार द्वारा राजस्थान के  मांड गायक अली मोहम्मद और गनी मोहम्मद को पद्मश्री से सम्मानित करना इसी लोक संस्कृति को सशक्त बनाने  और रचनात्मकता को बढ़ावा देने वाला माना जाना चाहिए। 

मांड गायकी को नई पहचान देने वाले बीकानेर के तेजरासर गांव के अली मोहम्मद-गनी मोहम्मद दो भाइयों को भारत सरकार ने देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया है। अली बंधुओं को संयुक्त रूप से यह पुरस्कार मिलेगा। लहरदार बालू के टीलों वाले बीकानेर की धरती और यहां की विभूतियों ने हर क्षेत्र में चाहे वह संगीत हो, कला हो या साहित्य-चित्रकारी, हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवाया है और  देश दुनिया को प्रतिभा के अनगिनत हीरे दिए हैं। 

बीकानेर के तेजरासर गांव के अली-गनी भी देश के लिए हीरे हैं।  दोनों भाइयों को गायकी का हुनर उनके दादा देवकरण खां  और  पिता सिराजुद्दीन से मिला। उनके पिता सिराजुद्दीन खुद संगीत के बड़े ज्ञाता थे जिन्हें लोग सुरजे खां या सूरजाराम भी कहा करते थे। सिराजुद्दीन उर्फ  सुरजाराम भजन वाणी और कबीर वाणी के उस्ताद माने जाते थे। उनके पिता ने जहां उन्हें एक अच्छा इंसान बनने की तालीम दी, वहीं गायकी की बारीकियों से भी उन्हें अवगत कराया। संगीत के प्रति लगन के कारण अली बंधु शिखर के पायदान पर चढ़ते गए। संगीत से समृद्ध परिवार में जन्म लेने और पद्मश्री से नवाजे जाने तक का दोनों भाइयों का सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है। 

संगीत के प्रति लगन के चलते अली बंधुओं ने गायन कला में बहुत जल्द महारत हासिल कर ली। दोनों भाइयों ने गांव तेजरासर से कोलकाता का रुख किया। कोलकाता में दोनों भाइयों ने गजलों और राजस्थानी मांड गीतों के कई कार्यक्रम पेश किए और 7-8 साल बाद वहां से मुंबई का रुख किया। बचपन से ही गांव में कठिन जीवन जीने वाले अली और गनी के लिए मुंबई में संघर्ष करना कोई नई बात नहीं थी। मुंबई में अपने संघर्ष को उन्होंने खुद पर हावी नहीं होने दिया। दोनों भाइयों ने एक साथ गाना शुरू किया और अपने गायन का आधार मांड राग को बनाया। मेहदी हसन जैसे गजल गायकी के बादशाह ने भी मांड को अपनी गजल का आधार बनाया है। उनसे प्रेरित होकर अली और गनी ने भी अपनी हुनर को मांड राग की खूबसूरती से सजाया।

संगीत की बुनियादी शिक्षा अपने पिता सिराजुद्दीन से हासिल करने वाले अली गनी का शास्त्रीय संगीत में भी बड़ा दखल है। दोनों भाइयों ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा उस्ताद मुनव्वर अली खान और उस्ताद बड़े गुलाम अली खान से प्राप्त की। दोनों भाई 1981 से आॅल इंडिया रेडियो से जुड़े। अली बंधुओं ने हिन्दी, राजस्थानी और पंजाबी फिल्मों समेत कई कई फिल्मों में संगीत निर्देशन किया है। उनके नात (इस्लामी पद्य साहित्य में एक पद्य रूप, जिसे पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब की तारीफ  करते लिखा जाता है), भजन और राजस्थानी लोकगीतों के कई एल्बम भी रिलीज हो चुके हैं। अली और गनी ने पंकज उदास, साधना सरगम, चंदन दास, अलका याग्निक, अनुराधा पौडवाल, रूप कुमार राठौर, अनूप जलोटा और हंसराज हंस जैसे बड़े गायकों की गजलों को भी अपने संगीत से सजाया है। स्वर कोकिला लता मंगेशकर और आशा भोंसले ने भी अली गनी की खुलकर तारीफ की है। लगभग एक दर्जन से ज्यादा नए गजल गायकों के एल्बम्स को इन्होंने अपने सूफियाना संगीत से ऊंचाइयां दी हैं।

अब आइए, जानते हैं मांड या मांड गायन शैली है क्या? यह श्रृंगार प्रधान शैली गायन शैली है। जो मारवाड़ क्षेत्र में लोकप्रिय है। मांड गायन शैली लगभग राजस्थान के हर क्षेत्र में गाई जाती है। परिवारों के विभिन्न समारोहों, आयोजनों और सामूहिक कार्यक्रमों में मांड गाया जाता है। यह सर्वमान्य तथ्य है कि मांड गायकी के बादशाह अली मोहम्मद और गनी मोहम्मद ने गजल गायकी को हर व्यक्ति के दिल तक पहुंचाया है। राजस्थान की पारंपरिक मांड गायकी को आम जनता के बीच तथा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने का श्रेय भी उन्हें को जाता है। इन्हें गायकी के क्षेत्र में अली गनी बंधु नाम से शोहरत हासिल है।

बीकानेर के दूरदराज के गांव तेजरासर से निकलकर  गायकी के क्षेत्र में सितारे बनकर चमकने वाले अली और गनी को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। दोनों को देश और विदेश में फिल्म संगीतकार और गायक के तौर पर जाना जाता है। साठ वर्षीय अली और बासठ साल के गनी का कहना है कि अभी बहुत कुछ करना बाकी है। वह यह भी कहते हैं कि भाजपा सरकार ने हमारी प्रतिभा को मान्यता दी है, सराहा है। इस पुरस्कार से उनको बहुत संतुष्टि और खुशी मिली है। यह सम्मान मिलने का श्रेय वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देते हैं।

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