एक देश, एक चुनाव से राष्ट्र का विकास
देशभर में दोनों चुनाव अलग-अलग समय पर कराए जाते
वन नेशन वन इलेक्शन मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में से एक है।
वन नेशन वन इलेक्शन मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में से एक है। वन नेशन वन इलेक्शन का आशय यह है कि एक समय पर पूरे देश भर में एक साथ लोकसभा और विधान सभाव चुनाव संपन्न करवाए जाए। फिलहाल वर्तमान हालात की बात करें, तो देशभर में दोनों चुनाव अलग-अलग समय पर कराए जाते हैं, लेकिन अब मोदी सरकार इसे एक ही समय पर कराने के लिए कवायद कर रही है। इसके लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी, इसमें 8 सदस्य थे। कमेटी का गठन 2 सितंबर 2023 को किया गया था। इसी कमेटी ने गत 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। इसके बाद अब इस बिल को कैबिनेट की बैठक में मंजूरी भी मिल चुकी है।आठ सदस्यों की इस कमेटी ने इस बिल के बारे में अपने सुझाव भी दिए थे। इसके अलावा, कई राजनैतिक पार्टियों ने इस चुनाव का समर्थन किया था। इतिहास की बात करें तो लोकसभा और विधानसभा चुनाव साल 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ हो चुके हैं। हालांकि, इसके बाद यह परंपरा कायम नहीं रह सकी।
भारत में 1951-52 से 1967 तक राज्य विधानसभाओं और लोक सभा के लिए चुनाव एक साथ होते थे। यह चक्र टूट गया और वर्तमान में चुनाव हर वर्ष और कभी-कभी एक वर्ष के भीतर अलग-अलग समय पर होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप भारी सरकारी व्यय होता है, चुनावों में लगे सुरक्षा बलों और निर्वाचन अधिकारियों को लंबे समय तक अपने प्राथमिक कर्तव्यों से विमुख होना पड़ता है।भारत के विधि आयोग ने चुनाव कानूनों में सुधार पर अपनी 170वीं रिपोर्ट में कहा कि सरकार को ऐसी स्थिति पर विचार करना चाहिए, जहां लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। भारत में एक राष्ट्र एक चुनाव को लागू करने में कई चुनौतियां हैं। देश के आकार और क्षेत्रों के बीच विशाल सांस्कृतिक और स्थलाकृतिक अंतर को देखते हुए चुनावी चक्रों को समन्वयित करने और उनमें फेरबदल करने, वित्तीय, तार्किक, वैचारिक, कानूनी और संवैधानिक पहलुओं में बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं।
संविधान में संशोधन के बिना भारत में एक राष्ट्र एक चुनाव को लागू करना संभव नहीं है और इस संशोधन को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों, प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा भी अनुमोदित किया जाना चाहिए। एक और बड़ी चुनौती तब पैदा होती है जब कोई राज्य या केंद्र सरकार अविश्वास प्रस्ताव में विफल हो जाती है या अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग हो जाती है। जब सरकार के तीनों स्तरों पर एक साथ चुनाव कराए जाएंगे, तो इससे उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला चक्र में व्यवधान से बचा जा सकेगा, क्योंकि इससे प्रवासी श्रमिकों को वोट डालने के लिए छुट्टी लेने से रोका जा सकेगा।
एक साथ चुनाव कराने से सरकारी खजाने पर वित्तीय बोझ कम होगा, क्योंकि इससे बीच-बीच में होने वाले चुनावों पर होने वाले व्यय का दोहराव नहीं होगा। एक राष्ट्र एक चुनाव से चुनाव संबंधी विवाद और अपराध कम होंगे, जिससे अदालतों पर बोझ कम होगा। एक राष्ट्र एक चुनाव के नुकसान मध्यावधि चुनाव या राष्ट्रपति शासन जैसी स्थितियों में, यदि कोई पार्टी बहुमत प्राप्त करने में विफल रहती है, तो एक राष्ट्र एक चुनाव अवधारणा के क्रियान्वयन के समय इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि इससे कैसे निपटा जाए। एक साथ चुनाव कराने से क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की संभावनाओं पर असर पड़ सकता है, क्योंकि वे स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता से नहीं उठा पाएंगे। वे पैसे और चुनावी रणनीतियों के मामले में राष्ट्रीय दलों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे।
एक राष्ट्र एक चुनाव को संविधान में बदलाव करने और अन्य कानूनी ढांचों का पालन करने के बाद ही लागू किया जा सकता है। एक राष्ट्र एक चुनाव को लागू करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है और इसे राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए। इसमें, क्षेत्रीय मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों पर हावी हो सकते हैं, जिससे राज्य स्तर पर चुनावी नतीजे प्रभावित हो सकते हैं। क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के पास सीमित संसाधन हैं। एक साथ चुनाव कराने पर विचार करने के लिए बनाई गई संयुक्त संसदीय समिति के कार्यकाल को विस्तार दे दिया गया है।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भाजपा सांसद एवं पूर्व विधि राज्यमंत्री पीपी चौधरी के नेतृत्व में 39 सदस्यीय समिति का गठन किया है। इसके तहत देशभर में वर्ष 2029 तक एक साथ चुनाव कराने का रास्ता तैयार करने का सरकार का लक्ष्य है। सरकार का मानना है कि एक साथ चुनाव कराने से समय और संसाधन दोनों की बचत होगी। रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति की रिपोर्ट का मकसद चुनावी प्रक्रिया में समय और संसाधनों की बर्बादी से बचाव करना है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित उच्चस्तरीय समिति की रिपोर्ट के आधार पर समिति ने इन दोनों प्रस्तावों को तैयार किया है।
-विकास सोमानी
(यह लेखक के अपने विचार हैं)
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