मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती चुनौती
रणथंभौर में बाघों की संख्या अब 80 से अधिक हो चुकी
राजस्थान का रणथंभौर टाइगर रिजर्व कभी बाघ संरक्षण की मिसाल माना जाता था।
राजस्थान का रणथंभौर टाइगर रिजर्व कभी बाघ संरक्षण की मिसाल माना जाता था, परंतु अब यह सफलता संकट में बदलती प्रतीत हो रही है। हाल के दिनों में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं, जो इस बात की ओर इशारा करती हैं कि रिजर्व की वहन क्षमता कैरीइंग कैपेसिटी पर दबाव बढ़ता जा रहा है। रणथंभौर में बाघों की संख्या अब 80 से अधिक हो चुकी है। सीमित क्षेत्र में इतनी अधिक संख्या के कारण खासकर युवा बाघों में आक्रामकता बढ़ रही है। वे एक-दूसरे से टेरिटरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मानव बस्तियों के नजदीक पहुंचने की घटनाएं भी लगातार बढ़ रही हैं। इसी साल बाघ द्वारा मानव पर हमलों की दो घटनाओं से हर किसी का दिल दहल गया। पूर्व की घटना में रणथम्भौर किला स्थित त्रिनेत्र गणेश जी के दर्शन कर वापस लौट रहे एक परिवार के सात वर्षीय बच्चे को टाइगर ने मौत के घाट उतार दिया, तो हालिया घटना में आक्रामक बाघ ने वन विभाग के रेंजर को ही किले के मुख्य द्वार के सामने स्थित जोगी महल के पास शिकार बनाया। बाघ ने रेंजर के मुंह और गर्दन पर नाखूनों और मुंह से वार कर मार डाला। टेरिटरी की लड़ाई युवा बाघों की बेचैनी बढ़ा रही है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि युवा बाघों को अपना क्षेत्र स्थापित करने के लिए जब पर्याप्त जगह नहीं मिलती, तो उनमें तनाव और हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ती है। वर्ष 2019 में बाघ टी-104 द्वारा मानव पर हमले की घटना के बाद उसे स्थायी निगरानी में रखा गया। यह उदाहरण बताता है कि केवल संख्या में वृद्धि ही सफलता नहीं मानी जा सकती, जब तक उनके लिए सुरक्षित और उपयुक्त आवास न हो। पर्यटन का दबाव और निगरानी की सीमाएं भी कारण बने हैं। रणथंभौर में प्रतिदिन लगभग 100 वाहन पर्यटकों को जंगल में ले जाते हैं। यह अनियंत्रित पर्यटन बाघों के स्वाभाविक व्यवहार में बाधा डालता है। दूसरी ओर बाघों की निगरानी के लिए आवश्यक तकनीकी संसाधनों जैसे रेडियो कॉलर या सघन ट्रैकिंग प्रणाली का अभाव गंभीर चिंता का विषय है। हालिया समाचार रिपोर्टों के अनुसार, दो युवा बाघों के बीच हुए संघर्ष में एक की मृत्यु हो गई।
वन विभाग अब ऐसे बाघों को स्थानांतरित करने पर विचार कर रहा है, जो बार-बार संघर्ष में शामिल हो रहे हैं या मानव बस्तियों के निकट देखे जाते हैं। समस्या का समाधान जरूरी है, इसके लिए बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है। संरक्षित क्षेत्रों का नेटवर्क निर्माण-रणथंभौर से लगे संरक्षित क्षेत्र जैसे कैलादेवी, मुकुंदरा, रामगढ़ विषधारी और कुंभलगढ़ को आपस में जोड़ने की आवश्यकता है, जिससे बाघों को विस्तृत गलियारे मिल सकें। इन क्षेत्रों में शिकार प्रजातियों की संख्या बढ़ाना और मानवीय हस्तक्षेप को सीमित करना आवश्यक है। वैज्ञानिक पुनर्वास एवं स्थानांतरण-अत्यधिक घनत्व वाले क्षेत्रों से युवा और संघर्षशील बाघों को अन्य उपयुक्त अभयारण्यों में स्थानांतरित किया जाना चाहिए। यह कार्य राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण एनटीसीए की देखरेख में किया जाए। मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन-संघर्ष संभावित क्षेत्रों की पहचान के लिए कैमरा ट्रैप, जीपीएस कॉलर और स्थलीय सर्वेक्षण की व्यवस्था हो। त्वरित कार्यवाही हेतु विशेष दल, ड्रोन निगरानी और फास्ट मुआवजा प्रणाली की स्थापना जरूरी है।
ईको-टूरिज्म का संतुलन-अनियंत्रित पर्यटन पर रोक लगाकर ग्राम स्तर पर ईको-टूरिज्म को बढ़ावा दिया जाए। इससे स्थानीय लोगों को आजीविका मिलेगी और संरक्षण में उनकी भागीदारी भी सुनिश्चित होगी। पुनर्वास और भूमि नियमन-रणथंभौर से सटे संवेदनशील गांवों को ईको-सेंसिटिव जोन घोषित कर निर्माण गतिविधियों को नियंत्रित किया जाए। प्रेरित पुनर्वास योजनाओं से इच्छुक परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जाए। तकनीकी निगरानी और रिपोर्टिंग-आधुनिक तकनीकों जैसे एआई आधारित कैमरा विश्लेषण, मोबाइल एप द्वारा त्वरित रिपोर्टिंग और सभी संवेदनशील बाघों की जीपीएस निगरानी से स्थिति पर नियंत्रण संभव है। नीतिगत सुझाव और आगे की राह-अब समय आ गया है कि राजस्थान एक समग्र बाघ संरक्षण नीति बनाए, जिसमें वहन क्षमता आधारित प्रबंधन मॉडल को अपनाया जाए।
साझा प्रबंधन प्रणाली विकसित की जाए, जिसमें वन विभाग, पंचायतें, गैर-सरकारी संगठन और समुदाय मिलकर कार्य करें। प्रभावित ग्रामीणों के लिए बीमा योजनाएं, वैकल्पिक आजीविका और संरक्षण-केन्द्रित शिक्षा कार्यक्रम लागू किए जाएं, ताकि संरक्षण और सहअस्तित्व एक साथ आगे बढ़ सकें। रणथंभौर में बाघों की बढ़ती संख्या एक अवसर भी है और एक चेतावनी भी। यदि इसे समुचित योजना, संवेदनशील नीति और स्थानीय सहभागिता के साथ न संभाला गया, तो यह सफलता जल्द ही संकट में तब्दील हो सकती है।
-प्रकाश चंद्र शर्मा
यह लेखक के अपने विचार हैं।
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