जानिए राजकाज में क्या है खास
सूबे में इन दिनों पस्त और मस्त को लेकर चर्चा जोरों पर है। हो भी क्यों ना, जिन भाई लोगों को अपने राज में मस्त रहना था, वो अपनों के फेर में फं स कर पस्त है।
चर्चा में पस्त और मस्त
सूबे में इन दिनों पस्त और मस्त को लेकर चर्चा जोरों पर है। हो भी क्यों ना, जिन भाई लोगों को अपने राज में मस्त रहना था, वो अपनों के फेर में फंस कर पस्त है। उनकी किसी भी ठिकाने पर सुनवाई नहीं है। और जिनको पस्त होना था, वे सामने वालों की पोल से मस्त है। अब देखो ना, ठाले बैठे कुछ भाइयों ने अपने ही दल के डिप्टी को रशियन से जोडकर परेशानी में डाल दिया। बेचारे डिप्टी को दिल्ली तक जवाब देना पड़ रहा है और तो और हर कोई उनकी तरफ कटु मुस्कान के साथ देख रहा है। नौ महीने से मस्ती से चल रहे भाई साहब अपनों के फेर में एकदम पस्त हो गए। संगठन के सदर सुमेरपुर वाले भाई साहब अपनों के बचाव में कूदे भी, मगर जब तक काफी देर हो चुकी थी।
ऑल इज वेल
सूबे में राज के रत्नों के फेरबदल की अफवाहों के बीच भगवा वाले कुछ भाई लोग ऑल इज वेल का मैसेज देने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर आने वाले हर वर्कर को रटाया जा रहा है कि ऑल इज वेल का हर गली मौहल्ले और चौराहों पर मैसेज देने में कोई कंजूसी नही करें। अब बेचारे वर्कर्स को यह समझ में नहीं आ रहा कि जो खुद ही नौ महीने से दूसरों का मुंह ताक रहे हैं, तो वे अपने किस मुंह से ऑल इज वेल का मैसेज दे। वैसे अटारी वाले भाई साहब भी दिल्ली दरबार में हाजरी देने के बाद दिन-रात ऑल इज वेल का मैसेज देकर ढांढस बंधाने में कोई कंजूसी नहीं कर रहे, लेकिन भाई लोग है कि यह मानने को कतई तैयार नहीं है कि सूबे में ऑल इज वेल है।
मछलियां और मगरमच्छ
सूबे में पिछले दो दिनों से मछलियां और मगरमच्छ फिर से लोगों की जुबान पर है। राज के रत्न तक इनकी चर्चा किए बिना न तो खाते हैं और नहीं पीते हैं। एसओजी की तर्ज पर काम कर रही मीनेश वंशज डॉक्टर साहब की केओजी विंग ने ठाले बैठे भाई लोगों को मछलियों और मगरमच्छों पर अपनी जुबान चलाने का काम सौंप दिया। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने के साथ ही इंदिरा गांधी भवन में बने पीसीसी के ऑफिस में भी भाई लोग मछलियों और मगरमच्छों की अंगुलियों पर गिनती में जुटे हैं। अब इन भाई लोगों को कौन समझाए कि टारगेट तो सिर्फ मछलियां ही पकड़ना है, मगरमच्छ तो खुद ही जाल में फंसते नजर आ रहे हैं।
एक जुमला यह भी
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं बल्कि राज की चौकड़ी से ताल्लुक रखता है। वैसे तो हर राज में राजा अपने खास और विश्वासपात्र लोगों को चौकड़ी में शामिल करते हैं और ज्यादातर काम उनकी सलाह से ही करते हैं, लेकिन कई बार चौकड़ी के लोग भी दगा देने में कोई कसर नहीें छोड़ते। जुमला है कि जब से पहले वाले राज के सलाहकारों ने उन्हीं के खिलाफ मुंह खोल दिया, तो अभी वाले राज ने भी फूंक-फूंत कर कदम रखने और चौकड़ी से मन की बात नहीं करने में ही भलाई समझी है।
-एल एल शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)
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