जानें राज काज में क्या है खास

डीप इनसाइड स्टोरी से उड़ी नींद 

जानें राज काज में क्या है खास

सूबे में इन दिनों मौन कोल्ड की चर्चा जोरों पर है।

चर्चा में मौन कोल्ड :

सूबे में इन दिनों मौन कोल्ड की चर्चा जोरों पर है। इससे बड़ी चौपड से भारती भवन और सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों का ठिकाना भी अछूता नहीं है। चर्चा है कि भाई साहब लोग अपनी मातृ संस्था की सौवीं सालगिरह को बडेÞ स्तर पर मनाने के सपने देख रहे हैं, लेकिन कुछ स्थानों पर हुई अशांति रोड़ा बनती नजर आ रही है। राज से जुड़े गुजराती बंधुओं को बहम है कि हमारे बिना कुछ नहीं है, तो नागपुर वाले भाई साहबों की सोच है कि हमारे बिना राज की कुर्सी के सपने देखना भी बेईमानी से कम नहीं। इस मौन कोल्ड वार से किसको कितना लॉस होगा, यह तो समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है।

डीप इनसाइड स्टोरी से उड़ी नींद :

सूबे में पिछले दो महीनों से राज के रत्नों के साथ कई साहब लोगों की नींद उड़ी हुई है। नींद उड़ने का कारण कोई रोग नहीं बल्कि डीप इनसाइड स्टोरी है, जो इन लोगों को कतई सूट नहीं करती है। डीप इन साइडस्टोरी से दोनों बड़े दलों के ठिकाने भी अछूते नहीं है। राज का काज करने वाले भी लंच टाइम में डीप इनसाइडर को लेकर खुसरफुसर किए बिना नहीं रहते। डीप इनसाइड अटारी वाले भाई से ताल्लुक रखता है। भाई साहब ने अपने गुप्तचरों के जरिए जमीनी हकीकत जानने की कोशिश की, तो राज का काज करने वालों ने भी कई बहानों की आड़ ली, लेकिन गुप्तचरों से जो ग्राउण्ड रियलिटी पता चली, तो राज करने वाले भी चकरा गए। एसी कमरों में कागजी आंकड़े बना कर राज के सामने पेश करने वालों के चेहरे भी शर्म से झुक गए। अब राज के रत्नों और साहब लोगों को कौन समझाए कि बाबोसा की तर्ज पर अटारी वाले भाई साहब ने भी ग्राउण्ड रियलिटी जानने की ठान ली, तो कागजी घोड़ों को दौडाने में कोई फायदा नहीं है।

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कुछ तो गड़बड़ है :

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सूबे में चार खेमों में बंटे भगवा वाले भाई लोगों में सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। हर खेमा अपनी ताकत का असर दिखाने में कोई कमी नहीं छोड़ रहा, तभी तो सुबह कुछ और रात आठ बजे के बाद कुछ और बातें होती है। पिंकसिटी में बने भगवा वालों के बड़े ठिकाने पर आने वाला हर कोई वर्कर स्टेट टीम को लेकर आठ महीनों से पसोपेश में है। हर वीक में किसी न किसी खेमे से नए नाम सामने आ जाते हैं। खेमों के फेर में फंसे सुमेरपुर वाले भाई साहब को समझ में नहीं आ रहा कि आखिर माजरा क्या है। अब भाई साहब को कौन समझाए कि जब मामला बड़े पटेलों तक पहुंच जाता है, तो खुद की मंशा पूरी होने की आस करना दिन में सपने देखने से कम नहीं है।

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एक जुमला यह भी :

सूबे में पिछले दो दिन से एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं बल्कि सिस्टम से जुड़े बड़े लोगों से ताल्लुकात रखता है। बड़े लोगों में खादी और खाकी वालों के साथ ही ब्यूरोक्रेट्स भी शामिल है। इस जुमले ने पूरे सिस्टम की पोल को इस तरह खोल दिया, जैसे प्याज से छिलके उतारे जाते हंै। जुमला है कि सिस्टम के फेर में फंसे अपने जवान बेटे को गंवाने वाला एक बाप बडेÞ लोगों से लड़ने की हिम्मत नहीं कर पाया और साम, दाम दण्ड और भेद के चलते डेढ़ दिन में ही बैक हो गया और सिस्टम को चलाने वालों ने मंद-मंद मुस्करा कर देखने में ही अपनी भलाई समझी।

-एल.एल. शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)

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