जानें राज काज में क्या है खास
आस लाल पट्टी की
सूबे में इन दिनों सबकी नजरें अंता की तरफ टिकी हुई हैं।
अब नजरें अंता की तरफ :
सूबे में इन दिनों सबकी नजरें अंता की तरफ टिकी हुई हैं। टिके भी क्यों नहीं, मामला सीनियर लीडर्स के भाग्य से ताल्लुक जो रखता है। अंता में होने वाले उपचुनाव को लेकर सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने के साथ ही इंदिरा गांधी भवन में हाथ वालों के दफ्तर में भी कई तरह की चचार्एं हो रही हैं। राज का काज करने वाले भी लंच केबिनों में इस उपचुनाव को लेकर बतियाए बिना नहीं रहते। चर्चा है कि यह उप चुनाव अटारी वाले भाई साहब के साथ ही पूर्व मैडम सीएम और हाथ वाले जादूगर जी के पॉवरगेम के साथ सियासत भी जुड़ी है। तभी तो अपने-अपने कैंडिडेट की फतह के लिए दिन-रात पसीने बहा रहे हैं, वरना दूसरे लीडर्स की तरह पल्ला झाड़कर आराम फरमाते रहते ।
दाद पाचन शक्ति की :
हाथ वाले भाई लोगों की पाचन शक्ति का कोई सानी नहीं है। वे हर बात को इस तरह पचाते हैं कि सामने वालों को समझ में आने तक चकरघिन्नी हुए बिना नहीं रहता। अब देखो न, पहले सूबे और बाद में दिल्ली में जो कुछ हुआ, उसके बाद भी उनका हाजमा नहीं बिगड़ा। अभी भी सीना तान कर जोर से बोलने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे कि पब्लिक में ग्राफ तो हमारा ही बढ रहा है। यह दावा कोई छोटा-मोटा नेता नहीं बल्कि खुद सूबे के सदर कर रहे हैं। अब उनको कौन समझाए कि नकटे आदमी नीचे पड़ने के बाद भी टांग ऊंची कर जीत का इषारा करते ही रहते हैं।
भगवा वाले पुजारी और भगवान :
भगवा वाले भाई लोगों का भी कोई जवाब नहीं है। जब भी मन में आए हर किसी को उपमा दे देते हैं। वे न आगा सोचते हैं और नहीं पीछा। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर दायीं तरफ बने एक कमरे में बैठने वाले भाई लोग सिर्फ उपमा देने का ही काम करते हैं। अब देखो न गुजरे जमाने में दोनों गुजराती बंधुओं को राम-श्याम बनाकर फेमस किया था, तो अब दोनों को पुजारी और भगवान बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ठिकाने पर आने वाले हर किसी वर्कर को समझाने में कोई कमी नहीं छोड़ते कि अमित भाई ऐसे पुजारी हंै, जो साम, दाम, दंड और भेद से नमोजी को भगवान बनाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ रहे। गांधीजी की बराबरी के लिए रही सही कसर श्रीराम की कृपा से आने वाले तीन साल में पूरी कर देंगे।
आस लाल पट्टी की :
इन दिनों सिविल लाइंस में स्थित बंगला नंबर आठ में एकाएक भीड बढने लगी है। सुबह-शाम लंबी कतारें दिखाई देती है। कई तो आधी रात तक खडे रहते हैं। सूंघासांघी करने पर पता चला कि भीड़ तो पहले वाले राज में भी इतनी ही थी, फर्क इतना है कि पहले सिफारिशों हाथ वाले लेटर एड पर आती थी और अब कमल वाले पर आ रही है। भीड़ में शामिल लोगों की नजरें बोर्ड, निगमों और आयोगों की कुर्सी और लाल पट्टी की तरफ है। यह दीगर बात है कि नए राज में इस बार कुछ अलग ही करने की सोच रखी है। वह पैराशूटर के बजाय जमीनी वर्कर को तवज्जो देने के मूड में कुछ ज्यादा ही हैं।
-एल. एल. शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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