प्रेमचंद का रचनात्मक अवदान एवं वैशिष्ट्य
प्रेमचंद का विश्वस्तरीय रचनात् मक साहित्य उनके साहित्यिक योगदान का प्रभावक्षम परिचायक है
प्रेमचंद के रचना-संसाार में चौदह उपन्यास, तीन सौ कहानियां, तीन नाटक एवं अनेक निबंध या लेख सम्मिलित हैं। उनके प्रमुख उपन्यास हैं - सेवा-सदन, निर्मला, प्रेमाश्रम, गबन, रंगभूमि, कर्मभूमि एवं गोदान आदि।
हिन्दी साहित्य के हजार वर्ष के इतिहास में यदि कुछ शीर्षस्थ साहित्यकारों के नाम प्रस्तुत करने हों तो आधुनिक हिन्दी साहित्य के विश्व विख्यात कथाकार प्रेमचंद का नाम भी उनमें अग्रगण्य होगा। साहित्य के सामाजिक सरोकार, परिवर्तन एवं सुधारपरक प्रभाव की दृष्टि से प्रेमचंद की महत्ता मध्यकालीन महाकवियों कबीर और तुलसी के समकक्ष है। कबीर ने अपनी प्रखर वाग्धारा से मध्यकालीन समाज को झकझोर दिया था, तुलसी ने सामाजिक-सांस्कृतिक आदर्शों की लोकपरक प्रतिष्ठापना की। आधुनिक काल में प्रेमचंद ने सामाजिक जीवन के यथार्थ एवं परिवर्तमान परिवेश को साहित्यिक संवेदना में ढालकर जन-जीवन को प्रेरित-प्रभावित किया है। प्रेमचंद का सबसे बड़ा रचनात्मक अवदान यह है कि उन्होंने अपने तत्कालीन सामाजिक परिवेश के जीवन्त और प्रमाणिक स्वरूप को अपने कथा साहित्य में मूर्त किया है। यदि किसी को बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध के भारत के जनजीवन और सामाजिक परिवेश को जानना-समझना हो, उसके अंतर्मन में झांकना हो, उसके मटमैले अभावों, बेबसी और संघर्षों से रू-ब-रू होना हो तो वह सब प्रेमचंद के उपन्यासों और कहानियों में आज भी जीवित है। इतिहास सिर्फ बाह्य घटनाओं और स्थितियों का तथ्यपरक विवरण देता है, जबकि प्रेमचंद का कथा-साहित्य उसके बहिरंग एवं अंतरंग दोनों रूपों का साक्षात्कार कराता है। प्रेमचंद का कथा साहित्य अपने युगीन परिवेश एवं आम आदमी के जीवन का जीवन्त एवं प्रामाणिक दस्तावेज है।
प्रेमचंद का जीवन बचपन से ही संघर्षों में गुजरा। उन्होंने जीवन की गरीबी, संघर्ष और चुनौतियों को स्वयं महसूस किया और बहुत समीप से देखा था। उन्होंने अपने साहित्य में मुख्यत: निम्न और मध्य वर्ग तथा ग्राम्य भारतीय जन-जीवन की रचनात्मक झांकियां प्रस्तुत की हैं। उनके ज्यादातर पात्र गरीब किसान, मजदूर, दलित-शोषित वर्ग, पारिवारिक-सामाजिक समस्याओं से जूझती स्त्रियां हैं। उनके साहित्य में अपने देश-काल के समग्र परिवेश का रचनात्मक भावांकन है। आम आदमी का दुख-दर्द, संघर्ष, सपने, आशा-निराशा, शोषण, गरीबी, अभाव, चुनौतियां, बेबसी, जीवट की संवेदना तरल एवं यथार्थपरक छवियों से स्पंदित उनका कथा साहित्य युगीन प्रतिबिंब के साथ आज भी उतना ही प्रासंगिक है - ऊपरी रूप-रंग बदले हैं, लेकिन आम आदमी की व्यथा-कथा का मर्मस्पर्शी प्रभाव आज भी वैसा ही है। सामाजिक परिवेश के साथ तत्कालीन राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं आर्थिक स्थितियों का भी प्रेमचंद के कथा-साहित्य में प्रभावपूर्ण, चित्रण हुआ है। स्वाधीनता आंदोलन, महात्मा गांधी का देशव्यापी प्रभाव, धार्मिक रूढ़ियां और आडंबर, साहूकारों द्वारा किसानों का शोषण, दहेज प्रथा, बेमेल विवाह, ग्राम्य जीवन पर शहरी प्रभाव आदि का प्रेमचंद के कथा-साहित्य में प्रभावपूर्ण समावेश है।
प्रेमचंद का विश्वस्तरीय रचनात् मक साहित्य उनके साहित्यिक योगदान का प्रभावक्षम परिचायक है। प्रेमचंद के रचना-संसाार में चौदह उपन्यास, तीन सौ कहानियां, तीन नाटक एवं अनेक निबंध या लेख सम्मिलित हैं। उनके प्रमुख उपन्यास हैं - सेवा-सदन, निर्मला, प्रेमाश्रम, गबन, रंगभूमि, कर्मभूमि एवं गोदान आदि। ‘सेवा-सदन’ नारी-पराधीनता एवं अशिक्षा से जुड़ी वेश्यावृत्ति की समस्या आौर सुधार से संबंद्ध है। ‘प्रेमाश्रम’ किसानों पर आधृत हिन्दी का पहला उपन्यास है, इसमें सामंती व्यवस्था में जकड़े किसानों के अंतर्विरोध, जमींदार, पुलिस, शहरी मध्यवर्ग आदि का चित्रण है। ‘रंगभूमि’ में अंधे भिखारी सूरदास को केंद्र में रखकर तत्कालीन परिवेश एवं गांधीवादी विचारों की व्यंजना है। ‘निर्मला’ में अनमेल विवाह की समस्या से उत्पन्न पारिवारिक समस्याओं का मार्मिक अंकन है। ‘कर्मभूमि’ अपनी क्रांतिकारी चेतना के कारण विशिष्ट है। जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि ‘कर्मभूमि’ इस अशांत काल की प्रतिध्वनियों से भरा हुआ उपन्यास है। ‘गबन में नारियों की आभूषण-प्रियता एवं मध्यमवर्गीय आडंबरों से बुनी उलझनों का रुचिकर चित्रण है। ‘गोदान’ हिन्दी ही नहीं विश्व के कथा साहित्य की महान् और कालजयी रचना है। इसमें होरी और धनिया को केन्द्र में रखकर सामाजिक रूढ़ियों एवं धार्मिक संस्कारों से जकड़े कृषक जीवन की गरीबी, लाचारी, शोषण और संघर्ष की व्यथा-कथा का जीवंत, निर्मम, तटस्थ एवं यथार्थपरक चित्रण है। यह प्रेमचंद की उपन्यास कला का चरमोत्कर्ष है। गोदान का फलक इतना विराट और विस्तीर्ण है कि इसमें तत्कालीन भारतीय युगीन परिवेश, विशेषत: ग्राम्य जीवन का समग्र एवं सर्वांगीण चित्रांकन प्रतिफलित हुआ है।
प्रेमचंद की कहानियां ‘मानसरोवर’ के आठ भागों में प्रकाशित हुई हैं। पंच परमेश्वर, ईदगाह, नशा, बडेÞ घर की बेटी, नमक का दारोगा, बूढ़ी काकी, पूस की रात और कफन आदि इनकी कुछ उल्लेख्य कहानियां हैं। सभी कहानियों में जीवन, जगत और मानवीय संवेदना के विविध रूपों की मार्मिक व्यंजना है। पंच परमेश्वर में अलगू और जुम्मन शेख अनबनी होने पर भी न्यायिक पद की नैतिकता का निर्वाह करते हैं। ‘ईदगाह में’ एक छोटे बालक द्वारा मेले में खर्चे के लिए दिए पैसों से अपनी बूढ़ी दादी के लिए चिमटा खरीदने की मार्मिक व्यंजना है। ‘नशा’ में रईस मित्र के घर के ठाठ-बाट के गरीब मित्र पर चढेÞ नशे की मनोवैज्ञानिक प्रस्तुति है। ‘नमक का दारोगा’ में नायक की कर्तव्य-निष्ठा और ईमानदारी के सत्कर्मों का अप्रत्याशित सुफल व्यंजित है।
-डॉ. नवलकिशोर भाभड़ा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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