लापरवाही से राष्ट्रीय त्रासदी बनते सड़क हादसे
जिम्मेदारी का पालन
सड़क सुरक्षा पर जारी हाल ही में एक रिपोर्ट कहती है कि दुनिया में भारत सड़क दुर्घटनाओं में सबसे अधिक मौतों वाले देशों में शामिल है।
सड़क सुरक्षा पर जारी हाल ही में एक रिपोर्ट कहती है कि दुनिया में भारत सड़क दुर्घटनाओं में सबसे अधिक मौतों वाले देशों में शामिल है। यहां हर वर्ष लाखों लोग घायल होते हैं और लगभग डेढ़ लाख लोग जान गंवा देते हैं। ये आंकड़े किसी सूखे तथ्य की तरह नहीं, बल्कि उन परिवारों की टूटती दुनिया का बयान हैं, जिन्हें एक पल की गलती उम्र भर का दर्द दे जाती है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इन दुर्घटनाओं में 70 फीसदी से अधिक मौतें 18 से 45 वर्ष की उम्र के युवाओं की होती हैं यानी समाज की सबसे उत्पादक, सपनों से भरी और भविष्य गढ़ने वाली पीढ़ी सड़क पर अपनी ही गलतियों के कारण मर रही है। यह एक ऐसी राष्ट्रीय त्रासदी है, जिसकी जड़ कहीं बाहर नहीं बल्कि हमारे बीच ही है।
एक गंभीर समस्या :
देश में सड़क दुर्घटनाओं की स्थिति 2024-2025 में और गंभीर हो गई है। हाई-स्पीड कॉरिडोर देश के लिए सबसे बड़ा जोखिम क्षेत्र बने हुए हैं। कई शहरों में रैश ड्राइविंग सड़क दुर्घटनाओं का सबसे बड़ा कारण बना है। यह स्पष्ट है कि भारत में सड़क हादसों के पीछे सड़क इंजीनियरिंग की समस्याएं, कानूनों का कमजोर प्रवर्तन और सबसे अधिक लोगों का गैरजिम्मेदाराना व्यवहार जैसे तेज रफ्तारए गलत दिशा में वाहन चलाना, ओवरटेकिंग, हेलमेट और सीट बेल्ट की अनदेखी, नशे में ड्राइविंग और मोबाइल फोन का इस्तेमाल दुर्घटनाओं की जड़ में हैं। यह चेतावनी हैं कि सड़कें तभी सुरक्षित होंगी, जब लोग स्वयं नियमों का पालन करेंगे।
व्यक्ति के लिए खतरा :
आज भी तेज रफ्तार सड़क दुर्घटनाओं की जड़ों में छिपा एक मौन हत्यारा मोबाइल फोन का बढ़ता उपयोग। यह ड्राइविंग के दौरान ध्यान को विभाजित कर देता है, जिससे डिस्ट्रेक्टेड ड्राइविंग एक गंभीर समस्या के रूप में उभर रहा है। एक पल की अनदेखी न केवल चालक, बल्कि सड़क पर मौजूद हर अन्य व्यक्ति के लिए खतरा बन जाती है। वहीं नशे में वाहन चलाना भी दुर्घटनाओं का एक अत्यंत चिंताजनक कारण है। इसके अतिरिक्त ट्रैफिक नियमों के प्रति लोगों की उदासीनता भी सड़क हादसों के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है। दुर्घटनाओं में इजाफे का बड़ा कारण ट्रैफिक पुलिस की सीमित क्षमता और नियमों के ढीला पालन भी है। जब लोग यह महसूस करते हैं कि उन पर नजर रखने वाला कोई नहीं है, तो वे नियम तोड़ने में संकोच नहीं करते। पैदल यात्रियों की अनदेखी भी बड़ी समस्या है। बहुत से लोग जेब्रा क्रॉसिंग की बजाय बीच सड़क से ही पार होते हैं, मोबाइल देखते हुए चलते हैं सड़क पर उतर पड़ते हैं, जिससे दुर्घटनाएं अनजाने में जन्म लेती हैं।
संयुक्त सुधार हो :
देश में सड़क दुर्घटनाओं का वास्तविक निराकरण केवल कड़े कानूनों से नहीं, बल्कि लोगों की सोच, सड़क संरचना और प्रशासनिक व्यवस्था तीनों के संयुक्त सुधार से संभव है। सबसे पहले आवश्यक है कि देश में जीरो टॉलरेंस रोड सेफ्टी पॉलिसी लागू की जाए, जिसमें किसी भी प्रकार का नियम उल्लंघन चाहे वह ओवरस्पीडिंग हो, नशे में ड्राइविंग, मोबाइल का उपयोग या बिना हेलमेट पर सख्त दंड दिए जाएं। कई देशों जैसे जापान और स्वीडन में सड़कों पर मृत्यु लगभग शून्य के स्तर तक इसलिए पहुंची, क्योंकि उन्होंने सजा में कड़ाई और निगरानी में 100 प्रतिशत प्रतिबद्धता अपनाई। भारत में भी हाईवे और शहरों में आधुनिक कैमरों, स्पीड ट्रैकर्स, इंटेलिजेंट ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम और नंबर प्लेट रिकग्निशन जैसी आधुनिक तकनीक मानव निर्भर न होकर तकनीक आधारित होनी चाहिए। साथ ही सभी राजमार्गों पर इमरजेंसी लेन और शहरी इलाकों में पैदल यात्री फर्स्ट डिजाइन लागू करनी चाहिए।
जिम्मेदारी का पालन :
यदि लोग धैर्य, सभ्यता और जिम्मेदारी का पालन करें, तो दुर्घटनाएं आधी से भी कम हो सकती हैं। हेलमेट और सीट बेल्ट के प्रति मानसिकता बदलना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन्हें पुलिस से डरकर पहनने की बजाय स्वयं की सुरक्षा के लिए अपनाना होगा। बच्चों और किशोरों में सड़क सुरक्षा की समझ बढ़ाने के लिए स्कूल स्तर से ही अनिवार्य रोड सेफ्टी एजुकेशन लागू की जानी चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण निराकरण आपातकालीन सेवाओं की गति और गुणवत्ता से जुड़ा है। देश में कई दुर्घटनाएं इसलिए मौत में बदल जाती हैं, क्योंकि एम्बुलेंस समय पर नहीं पहुंचती और प्राथमिक उपचार देर से मिलता है। इसके लिए 112 इमरजेंसी रिस्पॉन्स को हाईवे पर अनिवार्य बनाना, एम्बुलेंस की संख्या बढ़ाना और सभी जिलों में ट्रॉमा सेंटर विकसित करना आवश्यक है। कुल मिलाकर देखा जाए तो सड़क सुरक्षा का निराकरण केवल किसी एक उपाय में नहीं, बल्कि व्यवहार, तकनीक, कानूनए संरचना, जागरूकता जैसे पांच स्तंभों पर आधारित है। यदि भारत इन सभी क्षेत्रों को एक साथ सुधारता है, तो आने वाले वर्षों में सड़क दुर्घटनाओं को कम किया जा सकता है।
-डॉ. नीलू तिवारी
यह लेखक के अपने विचार हैं।

Comment List