हमें एकजुट होकर मलेरिया से निपटना होगा 

मानव में पांच प्रमुख प्लाज्मोडियम प्रजातियां पाई जाती 

हमें एकजुट होकर मलेरिया से निपटना होगा 

मलेरिया केवल एक चिकित्सा समस्या नहीं है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों पर भी गहरा प्रभाव डालने वाला एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मलेरिया केवल एक चिकित्सा समस्या नहीं है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों पर भी गहरा प्रभाव डालने वाला एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है। मानव में पांच प्रमुख प्लाज्मोडियम प्रजातियां पाई जाती हैं, फाल्सिपारम, विवैक्स, ओवैले, मलेरिया और नोक्लेसिय इनमें फाल्सिपारम सबसे अधिक घातक है। ये परजीवी संक्रमित मच्छर के काटने से मानव शरीर में प्रवेश करते हैं। मच्छर द्वारा प्रचलित परजीवी लिवर में पहुंचकर वहां अपना विकास आरंभ करता है और रक्त कोशिकाओं में आक्रमण करता चला जाता है। इसी रक्त प्रवाह के माध्यम से यह शरीर के पूरे भाग में फैलता है, जिससे प्रभावित व्यक्ति को बुखार, ठंड लगना और सिरदर्द जैसे लक्षण महसूस होने लगते हैं। ये परजीवी हल्के से लेकर गंभीर स्तर तक मलेरिया उत्पन्न कर सकते हैं। कुछ हल्के मामले भी रोगी को महीनों तक पीड़ा दे सकते हैं और यदि समय पर निदान न हो तो जानलेवा अवस्था तक भी पहुंचा सकते हैं। संक्रमण के शुरुआती दिनों में मलेरिया के लक्षण अक्सर सामान्य सर्दी-जुकाम या फ्लू से मिलते-जुलते होते हैं।

 तेज बुखार के साथ अचानक ठंड लगना, पसीना आना, सिर भारी होना, मांसपेशियों में खिंचाव और थकान जैसे लक्षण फ्लू के समान दिखते हैं। कई बार उल्टी और दस्त जैसी समस्याएं भी हो जाती हैं। व्यक्ति अपनी सामान्य गतिविधि जारी नहीं रख पाता और कमजोरी के चलते बिस्तर पर रह जाता है। यदि समय पर सही परीक्षण और उपचार न मिले तो यह परजीवी आगे बढ़कर लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट कर सकता है, जिससे गंभीर एनीमिया, अंगों की अनुकूलता में कमी और मल्टी-आॅर्गन फेल्योर जैसी जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में मलेरिया के लगभग दो सौ तिरेसठ मिलियन मामले दर्ज किए गए, जो पिछले वर्ष के मुकाबले फिर से बढ़त दिखाते हैं। इसी साल पांच लाख सत्तानवे हजार केआसपास मौतें मलेरिया से हुईं। यह आंकड़ा किसी एक वर्ष में मलेरिया के कारण होने वाली जानों की एक दुखद स्थिति है। 

2000 के दशक की शुरुआत में मलेरिया के खिलाफ वैश्विक प्रयासों ने जबरदस्त सफलता दर्ज की थी। उस समय विश्वभर में हर साल लाखों मामले और लाखों मौतें टली जा रही थीं। लेकिन कोविड-19 महामारी ने रुकावटें पैदा कर दीं, स्वास्थ्य तंत्र पर दबाव बढ़ा, स्वच्छता अभियान कमजोर पड़े और वित्तीय संसाधन कहीं और केंद्रित हो गए। परिणामस्वरूप 2019 के बाद से मलेरिया के मामले फिर से बढ़ने लगे हैं। इस बीच दवाओं और कीटनाशकों के प्रति परजीवियों तथा मच्छरों में प्रतिरोध बढ़ा है, जिससे पारंपरिक उपायों की प्रभावकारिता पर सवाल खड़े हो गए हैं। इसी कारण से अब वित्तीय संसाधनों की कमी भी बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। अंतर्राष्टÑीय राशि आवश्यकता के मुकाबले करीब साढ़े चार अरब डॉलर तक कम है, जिससे नई तकनीक और व्यापक वितरण पर काम प्रभावित हुआ है। 

बचाव के लिए अनुपालन वाली मच्छरदानी, दीवारों पर दी जाने वाली कीटनाशक स्प्रे एवं अन्य कीटनाशक तकनीकों ने मलेरिया संक्रमण के जोखिम को बहुत हद तक कम किया है। साथ ही पानी जमा होने वाले स्थानों की सफाई और निगरानी, गंदे पानी के तालाबों का सुखाना और निकासी सुनिश्चित करना बेहद महत्वपूर्ण है। जब तक मच्छर नियंत्रण योजनाएं सख्ती से नहीं अपनाई जाएंगी, बीमारी का चक्र नहीं टूटेगा। सामुदायिक जागरूकता ही वह पहला कदम है, जो घर-घर तक पहुंचकर लोगों को सफाई और मच्छरदानी के उपयोग के प्रति प्रेरित करती है। निदान एक और अहम कड़ी है। 

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तीव्र निदान परीक्षण किट और माइक्रोस्कोप से किए गए रक्त परीक्षणों ने बीमारी की पहचान में क्रांतिकारी बदलाव किया है। कुछ ही मिनटों में परिणाम मिलने से मरीज समय पर एंटीमलेरियल दवाएं ले सकता है, जिससे गंभीर जटिलताओं का खतरा कम हो जाता है। ग्रामीण व दूरदराज के इलाकों में यह सुविधा विशेष रूप से जीवनदायिनी साबित होती है, जहां लैब संसाधन सीमित होते हैं। उपचार के क्षेत्र में अब भी प्रमुख दवा आर्टेमिसिनिन आधारित सम्मिश्रित थेरेपी बनी हुई है, जो परजीवी को तेजी से खत्म कर देती है। हालांकि, दवा प्रतिरोध के मामलों में वृद्धि ने शोधकों को नए संयोजनों और औषधीय नमूनों की खोज के लिए प्रेरित किया है। अनुसंधान संस्थान नए मॉलिक्यूलर लक्ष्य खोज रहे हैं और प्राकृतिक स्रोतों से भी संभावित दवाओं पर काम कर रहे हैं, ताकि भविष्य मेंअधिक प्रभावी उपचार उपलब्ध हो सकें। टीकाकरण ने मलेरिया नियंत्रण के क्षेत्र में एक नया युग खोल दिया है।

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आरटीएसएएस टीका पहले से प्रयोग में है, जिसने गंभीर मलेरिया के जोखिम में तीस प्रतिशत तक कमी दिखाई है। ड्रोन से पानी जमा होने वाले दूरस्थ क्षेत्रों का सर्वे, मोबाइल ऐप्स द्वारा बीमारी का नक्शा तैयार करना और बड़े डेटा एनालिटिक्स से उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करना अब संभव हो गया है। ये उपाय सीमित संसाधनों वाले देशों में बचाव योजनाओं को अधिक लक्षित और प्रभावी बना रहे हैं। मलेरिया से होने वाला सामाजिक-आर्थिक बोझ भी बहुत भारी है।

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परिवारों पर उपचार का खर्च, काम और पढ़ाई छूटने से भोजन व आय में कमी इन सभी का मिलकर समुदाय की प्रगति पर असर पड़ता है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां किसान काम पर नहीं जा पाता, वहां रोजी-रोटी प्रभावित होती है। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां इस लड़ाई को और जटिल बना रही हैं। अतिवृष्टि से बाढ़ के दौरान पानी जमा होने वाले नए आवास बनते हैं, सूखे के समय तालाब सूखने के बाद पानी रुक जाने से मच्छर पनपते हैं। विस्थापन के कारण लोग नए क्षेत्रों में जा बसते हैं, जहां मलेरिया वायरस की जानकारी नहीं होती, इसलिए वहां तेजी से संक्रमण फैलता है।

-रंजना मिश्रा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

 

 

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